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नवीनतम संदेश 4

2021-06-09 06:55:53
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2021-06-09 06:55:43 पोस्ट को‌ पूरा पढ़ें आपको अवश्य प्रेरणा मिलेगी

150 की नौकरी से 1.5 करोड़ की कार का मालिक बनने तक, कभी ढाबे पर काम करने वाले राहुल की कहानी

किस्मत उस ऊंट की तरह है, जिसे देख कर आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि वह किस करवट बैठेगा. आज जो लोग, दूसरों के दुकान, मकान में चंद रुपयों के लिए उनकी हर बात मान रहे हैं, संभव है कि कल को इन्हीं में से कोई हैसियत में अपने मालिक से कई गुना ज्यादा बड़ा हो जाए. समय की गाड़ी का वैसे तो कोई सटेरिंग नहीं होता लेकिन इसे अगर कोई कंट्रोल कर सकता है तो वही शख्स जिसने अपने पैरों पर खड़े होने के बाद से ही जी तोड़ मेहनत की हो. राहुल तनेजा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. आइए जानते हैं कि एक दौर में लोगों की जूठन उठाने वाले राहुल ने कैसे अपनी मेहनत से अपनी किस्मत को बदल दिया और किस वजह से वह आए थे चर्चा में :

खरीदा था देश का सबसे महंगा नंबर :

मध्यप्रदेश के कटला में जन्में राहुल तनेजा 18 साल पहले एक ढाबे पर मात्र 150 रुपये की नौकरी करते थे.  जिस स्थिति में वे थे उस स्थिति से दुनिया के असंख्य लोग गुजरते हैं, जिसमें से अधिकांश लोग इन्हीं परिस्थितियों में अपनी पूरी ज़िंदगी काट लेते हैं लेकिन राहुल तनेजा की किस्मत अन्य लोगों जैसी नहीं थी. ढाबे पर काम करने वाला ये शख्स 2018 में देश भर के अखबारों की सुर्खियों में तब आया था जब इन्होंने अपनी डेढ़ करोड़ की गाड़ी के लिए 16 लाख की नंबर प्लेट खरीदी थी. इन्होंने अपनी लग्जरी कार के लिए 16 लाख का आरजे 45 सीजी 001 नंबर खरीदा था. यह पहली बार नहीं था जब तनेजा अपनी गाड़ी का नंबर खरीदने के लिए चर्चा में आए थे बल्कि इससे पहले उन्होंने 2011 में अपनी बीएमडब्ल्यू 7 सीरीज के लिए 10 लाख का वीआईपी 0001 खरीदा था. परिवहन अधिकारियों के मुताबिक उनके द्वारा खरीदा गया 16 लाख का नंबर उस समय तक देश का सबसे महंगा नंबर था. इससे पहले 11 लाख रुपए तक के नंबर बिके थे. 

कुछ बड़ा करने के लिए छोड़ दिया था घर 

स्वेज फॉर्म में रहने वाले राहुल तनेजा एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के मालिक हैं. एक टायर पंचर लगाने वाले पिता के इस बेटे की छोटी छोटी आंखों में बहुत पहले ही बड़े सपने तैरने लगे थे. यही वजह रही कि राहुल ने छोटी उम्र में ही घर छोड़ दिया और मध्य प्रदेश से राजस्थान के जयपुर में आ गए. अपना पेट पालने के लिए उन्होंने यहीं के आदर्शनगर के एक ढाबे पर नौकरी करनी शुरू कर दी. सारा दिन काम करने के बदले इन्हें इस ढाबे से महीने के अंत में 150 रुपये मिलते थे. राहुल के साथ एक बात ये अच्छी रही कि इन्होंने मुश्किल हालात में भी पढ़ाई नहीं छोड़ी. 

नौकरी करने के साथ साथ उन्होंने राजापार्क स्थित आदर्श विद्या मंदिर में दाखिला ले लिया और खुद के ही दम पर पढ़ाई करने लगे. रिपोर्ट्स बताती हैं कि राहुल ने दोस्तों की किताब, कॉपी और पासबुक मांग कर अपनी पढ़ाई जारी रखी और 92 प्रतिशत अंक हासिल किए. राहुल ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने दो साल तक ढाबे पर नौकरी की, इसके बाद उन्होंने कई तरह के काम किए, जैसे कि दिवाली पर पटाखे तो होली पर रंग बेचना. इसी तरह इन्होंने मकर संक्रांति पर पतंगें तथा रक्षाबंधन के समय राखियां बेचने का काम किया. अपनी जरूरतों और पेट की भूख के लिए इन्होंने घर घर जाकर तक अखबार पहुंचाया तो कभी ऑटो रिक्शा चलाया. 

दोस्तों ने दी मॉडलिंग करने की सलाह 

इसी तरह राहुल अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए तरह तरह के काम करते रहे. फिर 1998 में इन्हें वह रास्ता दिखा जो इन्हें बहुत आगे ले जाने वाला था. मेहनतकश होने के साथ साथ राहुल अपनी फिटनेस पर भी पूरा ध्यान देते थे. इनकी अच्छी लुक को देखते हुए इनके दोस्तों ने इन्हें मॉडलिंग करने की सलाह दी. राहुल ने भी उनकी सलाह मान कर मॉडलिंग शुरू कर दी और फिर इन्हें इसका चस्का सा लग गया. इसी दौरान इन्होंने एक फैशन  शो में भाग ले लिया. किस्मत अच्छी रही तथा 1998 में राहुल जयपुर क्लब द्वारा आयोजित एक फैशन शो में विजेता चुन लिए गए. इसके बाद इन्होंने 8 महीने तक फैशन शो किए. फैशन शो करने के साथ साथ राहुल इस बात पर भी नजर जमाए रखते थे कि ये शो ऑर्गेनाइज कैसे होते हैं. 

शो ऑर्गनाइजिंग के बारे में जानकारी प्राप्त करने के बाद इन्होंने फैसला किया कि ये अब स्टेज पर नहीं बल्कि बैक स्टेज परफ़ॉर्म करेंगे. यानी कि अब राहुल ने शो में भाग लेने का नहीं बल्कि ऐसे शोज का पूरा इवेंट संभालने का काम शुरू कर दिया. इसके बाद उन्होंने एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी खोल ली. राहुल इस कंपनी को अपने दम पर आगे बढ़ाते चले गए तथा फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा. 

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2021-05-27 07:21:41
#paperlessstudy_motivation
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2021-05-26 17:48:51 ‘प्रतीत्य समुत्पाद’ ही बुद्ध के उपदेशों का सार एवं उनकी संपूर्ण शिक्षाओं का आधार स्तम्भ है. इसका शाब्दिक अर्थ है: प्रतीत्य मतलब किसी वस्तु के होने पर और समुत्पाद का अर्थ है किसी अन्य वस्तु की उत्पत्ति.

‘प्रतीत्य समुत्पाद’ के 12 क्रम हैं जिसे द्वादश निदान कहा जाता है. जिसमें सम्बन्धित हैं:

जाति, जरामरण – भविष्य काल से

अविधा, संस्कार – भूतकाल से

विज्ञान, नाम-रूप, स्पर्श, तृष्णा, वेदना, षडायतन, भव, उपादान – वर्तमान काल से

बौध धर्म मूलत: अनीश्वरवादी है. बौध धर्म अनात्मवादी है. इसमें आत्मा की परिकल्पना नहीं की गई है. यह पुनर्जन्म में विशवास करता है. बौध धर्म ने जाति प्रथा और वर्ण व्यवस्था का विरोध किया. बौध धर्म का दरवाजा हर जातियों के लिए खुला था. सत्रियों को भी संघ में प्रवेश का अधिकार प्राप्त था. बौध संघ का संगठन गणतंत्र प्रणाली पर आधारित था. बौधों का सबसे पवित्र एवं महत्वपूर्ण त्यौहार वैशाख पूर्णिमा है जिसे ‘बुद्ध पूर्णिमा' के नाम से भी जाना जाता है. इसका महत्व इसलिए हैं क्योंकि इसी दिन बुद्ध का जन्म, ज्ञान की प्राप्ति एवं महापरिनिर्वाण की प्राप्ति हुई.

महात्मा बुद्ध अपने जीवन के अंतिम पड़ाव में हिरण्यवती नदी के तट पर कुशिनारा पहुंचे. जहां पर 80 वर्ष की अवस्था में इनकी मृत्यु हो गई. इसे बुद्ध परम्परा में महापरिनिर्वाण के नाम से जाना जाता है. मृत्यु से पहले उन्होंने अपना अंतिम उपदेश कुशिनारा के परिव्राजक सुभच्छ को दिया. महापरिनिर्वाण के बाद बुद्ध के अवशेषों को आठ भागों में विभाजित किया गया.

अंत में महात्मा बुद्ध के अनमोल विचार या कोट्स

इसमें कोई संदेह नहीं है की महात्मा बुद्ध की शिशाओं और कथनों को अपने जीवन में उतार कर सुख-समृद्धि और सफलता प्राप्त कर सकते हैं. जीवन की कई समस्याओं से बच सकते हैं.

1. तीन चीजें ज्यादा देर तक नहीं छुप सकतीं, सूर्य, चंद्रमा और सत्य.

2. तुम अपने क्रोध के लिए नहीं दंड पाओगे, तुम अपने क्रोध के द्वारा दंड पाओगे.

3. मैं कभी नहीं देखता कि क्या किया जा चुका है. मैं हमेशा देखता हूँ कि क्या किया जाना बाकी है.

4. जिसने अपने को वश में कर लिया है, उसकी जीत को देवता भी हार में नहीं बदल सकते.

5. हजारो साल बिना समझदारी के बिना जीने से बेहतर है, एक दिन समझदारी के साथ जीना.

6. घ्रणा को घ्रणा से खत्म नहीं किया जा सकता है बल्कि इसे प्रेम से ही खत्म किया जा सकता है जो की एक प्रक्रतिक सत्य है.

7. हम अपने विचारों से ही अच्छी तरह ढलते है, हम वही बनते है जो हम सोचते है. जब मन पवित्र होता है तो खुशी परछाई की तरह हमेशा हमारे साथ चलती है.

8. अपने मोक्ष के लिए खुद ही प्रयत्न करें, दूसरों पर निर्भर ना रहे.

9. शारीरिक आकर्षण आँखों को आकर्षित करती है, अच्छाई मन को आकर्षित करती है.

10. आज हम जो कुछ भी हैं, वो हमने आज तक क्या सोचा इस बात का परिणाम है.

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2021-05-26 17:48:51 Buddha Jayanti 2021: भगवान बुद्ध की शिक्षाएं जो जीवन को बदल सकती हैं और सकारात्मकता की ओर ले जाती हैं

Buddha Jayanti 2021: बुद्ध पूर्णिमा, जिसे बुद्ध जयंती के रूप में भी जाना जाता है. इस दिन बौद्ध धर्म के संस्थापक 'भगवान गौतम बुद्ध' का जन्म हुआ था. इस साल 7 मई को बुद्ध जयंती या बुद्ध पूर्णिमा मनाई जा रही है. बुद्ध पूर्णिमा का त्यौहार भारत और अन्य एशियाई देशों के हिंदुओं और बौद्धों दोनों द्वारा मनाया जाता है.

गौतम बुद्ध का पारिवारिक जीवन

गौतम बुद्ध का जन्म कपिलवस्तु के निकट लुम्बिनी में हुआ था. उनके पिता शुद्धोधन शाक्यगण के प्रधान थे तथा माता माया देवी अथवा महामाया कोलिय गणराज्य (कोलिय वंश) की कन्या थीं. गौतम बुद्ध के बचपन का नाम सिद्धार्थ था. इनके जन्म के कुछ दिनों के बाद इनकी माता का देहांत हो गया था और इनका पालन उनकी मौसी प्रजापति गौतमी ने किया था. इनका विवाह 16 वर्ष की अल्पायु में शाक्य कुल की कन्या यशोधरा के साथ हुआ था. इनके पुत्र का नाम राहुल था.

बुद्ध के जीवन में चार द्रश्यों का अत्यधिक प्रभाव पड़ा:

- वृद्ध व्यक्ति

- बीमार व्यक्ति

- मृतक

- और प्रसन्नचित्त संन्यासी

इन सबके बारे में उन्होंने अपने सारथी से पूछा तो उसने कहा कि हर एक के जीवन में बुढ़ापा आने पर वह रोगी हो जाता है और रोगी होने के बाद वह मृत्यु को प्राप्त करता है. जब उन्होंने संन्यासी के बारे में पूछा तो सारथी ने कहा कि संन्यासी ही है जो मृत्यु के पार जीवन की खोज में निकलता है. जब उनकी पत्नी और बच्चा सो रहे थे तब उन्होंने ग्रह त्याग किया. यहीं आपको बता दें कि बौद्ध ग्रंथों में गृह त्याग को ‘महाभिनिष्क्रमण’ की संज्ञा दी गई है.


कैसे सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बने?

ग्रेह्त्याग के बाद सिद्धार्थ अनोमा नदी के तट पर अपने सिर को मुंडवा कर भिक्षुओं का काषाय वस्त्र धारण किया.

इधर से उधर वे लगभग 7 वर्ष तक भटकते रहे, सर्वप्रथम वैशाली के समीप अलार कलाम नामक संन्यासी के आश्रम में आये. उसके बाद वे उरुवेला (बोधगया) के लिए प्रस्थान किये जहां पर उन्हें कौडिन्य इत्यादि पांच साधक मिले.

6 वर्ष तक घोर तपस्या और परिश्रम के बाद 35 वर्ष की आयु में वैशाख पूर्णिमा की एक रात पीपल (वट) वृक्ष के निचे निरंजना (पुनपुन) नदी के तट पर सिद्धार्थ को ज्ञान प्राप्त हुआ. इसी दिन से वे तथागत हो गये. ज्ञान प्राप्ति के बाद गौतम बुद्ध के नाम से प्रसिद्ध हुए.

उरुवेला से गौतम बुद्ध सारनाथ आये जहां पर उन्होंने पांच ब्राह्मण संन्यासीयों को अपना प्रथम उपदेश दिया. जिसे बौध ग्रंथों में ‘धर्म चक्र परिवर्तन’ के नाम से जाना जाता है. यहीं से सर्वप्रथम बौध संघ में प्रवेश प्रारम्भ हुआ. तपस्सु और भाल्लिका नाम के शूद्रों को महात्मा बुद्ध ने सर्वप्रथम अनुयायी बनाया.

महात्मा बुद्ध ने अपने जीवन का सर्वप्रथम उपदेश कोशल देश की राजधानी श्रावस्ती में दिया. उन्होंने मगध को अपना प्रचार केंद्र बनाया.

बौध धर्म की शिक्षाएं एवं सिद्धांत

बौध धर्म के त्रिरत्न हैं – बुद्ध, धम्म और संघ.

बौध धर्म के चार आचार्य सत्य हैं:

1. दुःख

2. दुःख समुदाय

3. दुःख निरोध

4. दुःख निरोध गामिनी प्रतिपदा (दुःख निवारक मार्ग) अर्थार्त अष्टांगिक मार्ग.

साथ ही दुःख को हरने वाले तथा तृष्णा का नाश करने वाले अष्टांगिक मार्ग के आठ अंग हैं.

अष्टांगिक मार्ग के तीन मुख्य भाग हैं: प्रज्ञा ज्ञान, शील तथा समाधि. इन तीन प्रमुख भागों के अंतर्गत जिन आठ उपायों की प्रस्तावना की गयी है वे इस प्रकार हैं:

- सम्यक दृष्टि: वस्तुओं के वास्तविक स्वरूप का ध्यान करना

- सम्यक संकल्प: आस्तिक, द्वेष तथा हिंसा से मुखत विचार रखना

- सम्यक वाणी: अप्रिय वचनों का सर्वदा परित्याग

- सम्यक कर्मान्त: दान, दया, सत्य, अहिंसा इत्यादि सत्कर्मों का अनुसरण करना

- सम्यक आजीव: सदाचार के नियमों के अनुकूल आजीविका का अनुसरण करना

- सम्यक व्यायाम: नैतिक, मानसिक एवं अध्यात्मिक उन्नति के लिये सतत प्रयत्न करना

- सम्यक स्मृति: अपने विषय में सभी प्रकार की मिद्या धारणाओं का त्याग करना

- सम्यक समाधि: मन अथवा चित को एकाग्रता को सम्यक समाधि कहते हैं.

अष्टांगिक मार्ग को भिक्षुओं का ‘कल्याण मित्र’ कहा गया है. बौध धर्म के अनुसार मनुष्य के जीवन का परम लक्ष्य है निर्वाण की प्राप्ति. यहीं आपको बता दें कि निर्वाण का अर्थ है दीपक का बुझ जाना और जीवन मरण के चक्र से मुक्त हो जाना. यह निर्वाण इसी जन्म से प्राप्त हो सकता है, किन्तु महापरिनिर्वाण मृत्यु के बाद ही संभव है.

बुद्ध ने दस शिलों के अनुशीलन को नैतिक जीवन का आधार बनाया है. जिस प्रकार दुःख समुदाय का कारण जन्म है उसी तरह जन्म का कारण अज्ञानता का चक्र है. इस अज्ञान रूपी चक्र को ‘प्रतीत्य समुत्पाद’ कहा जाता है.
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2021-05-24 09:32:17
महान मोटीवेशन
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2021-05-13 14:59:53 # प्रथम_आईएएस_अन्ना_जॉर्ज_
_राजम_मलहोत्रा: #एक_ प्रेरक _व्यक्तित्व

#"सभी_महिला_अभ्यर्थियों_को_ _समर्पित_पोस्ट"

एक साधारण परिवार में जन्म लेकिन सोच अलग। घर में इससे पूर्व कोई सामान्य से सरकारी पद पर भी नहीं। लेकिन उनके धड़कते दिल में अरमान अलग थे। संकल्प कठोर था। अन्ना जॉर्ज ने एक साक्षात्कार में स्वयं स्वीकार किया है कि उस वक्त के पुरुष प्रधान समाज में 1951 का यूपीएससी इंटरव्यू बोर्ड भी कई पूर्वाग्रहों से ग्रसित था। लेकिन अन्ना की प्रतिभा का लोहा उन्हें भी मानना पड़ा। 1951 में वे मद्रास कैडर की स्वतंत्र भारत की पहली महिला आईएएस बनी। बाद में रिज़र्व बैंक के पूर्व गवर्नर आर एन मल्होत्रा से उनका विवाह हुआ। पति पत्नी दोनों को पद्मभूषण सम्मान भी मिला। आज कई महिला अधिकारी भारत में है लेकिन अन्ना जॉर्ज के जीवन प्रसंग से कुछ बातें सीखने को अवश्य मिलती है। वे बातें निम्नानुसार है।

1. आत्मप्रचार से दूर रहना। सदैव विनम्र भाव से कर्तव्यपरायण बने रहना।

2. यदि आपको लगता है परिवार में कोई प्रेरणा देने वाला नहीं है तो कम से कम परिवार को यह लगना चाहिए कि परिवार आप से प्रेरणा पाता है।

3. महिला विकास और उत्थान में सामाजिक व्यवस्था दोषी है लेकिन संकल्प यह होना चाहिए कि इसी को तो दूर करने आप दृढ़ संकल्प लेकर निकले है।

4. सादगी और विनम्रता व्यक्तित्व के सबसे बड़े अलंकार है।

5. उम्मीदों का दीया जब जलता रहता है तो चारदीवारी की कैद भी सपनों को साकार करने में बाधा नहीं बनती।

6. अपने समय से दो दशक आगे की सोच रखो लेकिन तथाकथित 'मॉडर्न' बनने के बजाय राष्ट्रनिर्माता 'मॉडल' बनने की सोच होनी चाहिए।

7. आस पास की कमजोर करने वाली आवाजें सुन लो तो इच्छा शक्ति कमजोर मत करो। अपने चेहरे पर गाम्भीर्य भाव की मुस्कान जारी रखो।

8. एक महिला जब गली,मौहल्लों कस्बों और शहरों के लोगों की गलत धारणाओं सफल होकर गलत साबित कर देती है तो समझ लो उस दिन देश के संविधान में एक महत्वपूर्ण संशोधन हुआ है।

9. आपका लक्ष्य बहुत बड़ा है तो आपका हर दिन आम लोगों से बड़ा होना चाहिए उपयोगिता के दृष्टिकोण से।

10. अध्यापकों के प्रति सम्मान आपके व्यक्तित्व को अनायास ही महानता की ओर ले जाता है।
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2021-05-04 10:56:01 तू युद्ध कर

माना हालात प्रतिकूल हैं, रास्तों पर बिछे शूल हैं
रिश्तों पे जम गई धूल है
पर तू खुद अपना अवरोध न बन
तू उठ…… खुद अपनी राह बना………………
माना सूरज अँधेरे में खो गया है……
पर रात अभी हुई नहीं, यह तो प्रभात की बेला है
तेरे संग है उम्मीदें, किसने कहा तू अकेला है
तू खुद अपना विहान बन, तू खुद अपना विधान बन………………………..

सत्य की जीत हीं तेरा लक्ष्य हो
अपने मन का धीरज, तू कभी न खो
रण छोड़ने वाले होते हैं कायर
तू तो परमवीर है, तू युद्ध कर – तू युद्ध कर………………………..

इस युद्ध भूमि पर, तू अपनी विजयगाथा लिख
जीतकर के ये जंग, तू बन जा वीर अमिट
तू खुद सर्व समर्थ है, वीरता से जीने का हीं कुछ अर्थ है
तू युद्ध कर – बस युद्ध कर……

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2021-05-04 08:50:06 समय का सदुपयोग

एक बच्चा पैदा होता है, फिर समय बीतने
के साथ वह किशोर होता है, युवा होता है,
मध्य वय का होता है और फिर बूढ़ा हो जाता है।

ऋतुएं भी समय के अनुसार आती है।
पौधों में फूल आते हैं और फल लगते हैं।
एक महीने में धान नहीं उगता और न ही
एक साल में बच्चा वयस्क हो सकता है।
हर चीज का समय होता है, और
हर एक चीज़ अपने समय से होती है।

अगर आप समय को बर्बाद करते हैं,
तो समय आपको बर्बाद कर देगा।

भविष्य एक ऐसी चीज़ है जिसकी ओर
हर कोई साठ मिनट प्रति घंटे की गति से ही बढ़ता है, चाहे वह कुछ भी करे, चाहे वह कोई भी हो।

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2021-05-04 07:46:45 कहानियाँ जो जिंदगी बदल दे

""मदद""

उस दिन सबेरे आठ बजे मैं अपने शहर से दूसरे शहर जाने के लिए निकला । मैं रेलवे स्टेशन पँहुचा , पर देरी से पँहुचने के कारण मेरी ट्रेन निकल चुकी थी । मेरे पास दोपहर की ट्रेन के अलावा कोई चारा नही था । मैंने सोचा कही नाश्ता कर लिया जाए ।

बहुत जोर की भूख लगी थी । मैं होटल की ओर जा रहा था । अचानक रास्ते में मेरी नजर फुटपाथ पर बैठे दो बच्चों पर पड़ी । दोनों लगभग 10-12 साल के रहे होंगे .।बच्चों की हालत बहुत खराब थी ।

कमजोरी के कारण अस्थि पिंजर साफ दिखाई दे रहे थे ।वे भूखे लग रहे थे । छोटा बच्चा बड़े को खाने के बारे में कह रहा था और बड़ा उसे चुप कराने की कोशिश कर रहा था । मैं अचानक रुक गया ।दौड़ती भागती जिंदगी में पैर ठहर से गये ।

जीवन को देख मेरा मन भर आया । सोचा इन्हें कुछ पैसे दे दिए जाएँ । मैं उन्हें दस रु. देकर आगे बढ़ गया तुरंत मेरे मन में एक विचार आया कितना कंजूस हूँ मैं ! दस रु. का क्या मिलेगा ? चाय तक ढंग से न मिलेगी ! स्वयं पर शर्म आयी फिर वापस लौटा । मैंने बच्चों से कहा - कुछ खाओगे ?

बच्चे थोड़े असमंजस में पड़ गए ! जी । मैंने कहा बेटा ! मैं नाश्ता करने जा रहा हूँ , तुम भी कर लो ! वे दोनों भूख के कारण तैयार हो गए । मेरे पीछे पीछे वे होटल में आ गए । उनके कपड़े गंदे होने से होटल वाले ने डांट दिया और भगाने लगा ।

मैंने कहा भाई साहब ! उन्हें जो खाना है वो उन्हें दो , पैसे मैं दूँगा ।होटल वाले ने आश्चर्य से मेरी ओर देखा..! उसकी आँखों में उसके बर्ताव के लिए शर्म साफ दिखाई दी ।

बच्चों ने नाश्ता मिठाई व लस्सी माँगी । सेल्फ सर्विस के कारण मैंने नाश्ता बच्चों को लेकर दिया । बच्चे जब खाने लगे , उनके चेहरे की ख़ुशी कुछ निराली ही थी । मैंने भी एक अजीब आत्म संतोष महसूस किया । मैंने बच्चों को कहा बेटा ! अब जो मैंने तुम्हे पैसे दिए हैं उसमें एक रु. का शैम्पू ले कर हैण्ड पम्प के पास नहा लेना ।

और फिर दोपहर शाम का खाना पास के मन्दिर में चलने वाले लंगर में खा लेना ।मैं नाश्ते के पैसे चुका कर फिर अपनी दौड़ती दिनचर्या की ओर बढ़ निकला ।

वहाँ आसपास के लोग बड़े सम्मान के साथ देख रहे थे । होटल वाले के शब्द आदर में परिवर्तित हो चुके थे । मैं स्टेशन की ओर निकला , थोडा मन भारी लग रहा था । मन थोडा उनके बारे में सोच कर दु:खी हो रहा था ।

रास्ते में मंदिर आया । मैंने मंदिर की ओर देखा और कहा - हे भगवान ! आप कहाँ हो ? इन बच्चों की ये हालत ! ये भूख आप कैसे चुप बैठ सकते हैं !

दूसरे ही क्षण मेरे मन में विचार आया , अभी तक जो उन्हें नाश्ता दे रहा था वो कौन था ? क्या तुम्हें लगता है तुमने वह सब अपनी सोच से किया ? मैं स्तब्ध हो गया ! मेरे सारे प्रश्न समाप्त हो गए ।

ऐसा लगा जैसे मैंने ईश्वर से बात की हो ! मुझे समझ आ चुका था हम निमित्त मात्र हैं । उसके कार्य कलाप वो ही जानता है , इसीलिए वो महान है !

भगवान हमें किसी की मदद करने तब ही भेजता है , जब वह हमें उस काम के लायक समझता है ।यह उसी की प्रेरणा होती है । किसी मदद को मना करना वैसा ही है जैसे भगवान के काम को मना करना ।

खुद में ईश्वर को देखना ध्यान है ! दूसरों में ईश्वर को देखना प्रेम है ! ईश्वर को सब में और सब में ईश्वर को देखना ज्ञान है....!

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