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पोस्ट को‌ पूरा पढ़ें आपको अवश्य प्रेरणा मिलेगी 150 की नौकर | Motivation PaperLess Study

पोस्ट को‌ पूरा पढ़ें आपको अवश्य प्रेरणा मिलेगी

150 की नौकरी से 1.5 करोड़ की कार का मालिक बनने तक, कभी ढाबे पर काम करने वाले राहुल की कहानी

किस्मत उस ऊंट की तरह है, जिसे देख कर आप अंदाजा नहीं लगा सकते कि वह किस करवट बैठेगा. आज जो लोग, दूसरों के दुकान, मकान में चंद रुपयों के लिए उनकी हर बात मान रहे हैं, संभव है कि कल को इन्हीं में से कोई हैसियत में अपने मालिक से कई गुना ज्यादा बड़ा हो जाए. समय की गाड़ी का वैसे तो कोई सटेरिंग नहीं होता लेकिन इसे अगर कोई कंट्रोल कर सकता है तो वही शख्स जिसने अपने पैरों पर खड़े होने के बाद से ही जी तोड़ मेहनत की हो. राहुल तनेजा की कहानी भी कुछ ऐसी ही है. आइए जानते हैं कि एक दौर में लोगों की जूठन उठाने वाले राहुल ने कैसे अपनी मेहनत से अपनी किस्मत को बदल दिया और किस वजह से वह आए थे चर्चा में :

खरीदा था देश का सबसे महंगा नंबर :

मध्यप्रदेश के कटला में जन्में राहुल तनेजा 18 साल पहले एक ढाबे पर मात्र 150 रुपये की नौकरी करते थे.  जिस स्थिति में वे थे उस स्थिति से दुनिया के असंख्य लोग गुजरते हैं, जिसमें से अधिकांश लोग इन्हीं परिस्थितियों में अपनी पूरी ज़िंदगी काट लेते हैं लेकिन राहुल तनेजा की किस्मत अन्य लोगों जैसी नहीं थी. ढाबे पर काम करने वाला ये शख्स 2018 में देश भर के अखबारों की सुर्खियों में तब आया था जब इन्होंने अपनी डेढ़ करोड़ की गाड़ी के लिए 16 लाख की नंबर प्लेट खरीदी थी. इन्होंने अपनी लग्जरी कार के लिए 16 लाख का आरजे 45 सीजी 001 नंबर खरीदा था. यह पहली बार नहीं था जब तनेजा अपनी गाड़ी का नंबर खरीदने के लिए चर्चा में आए थे बल्कि इससे पहले उन्होंने 2011 में अपनी बीएमडब्ल्यू 7 सीरीज के लिए 10 लाख का वीआईपी 0001 खरीदा था. परिवहन अधिकारियों के मुताबिक उनके द्वारा खरीदा गया 16 लाख का नंबर उस समय तक देश का सबसे महंगा नंबर था. इससे पहले 11 लाख रुपए तक के नंबर बिके थे. 

कुछ बड़ा करने के लिए छोड़ दिया था घर 

स्वेज फॉर्म में रहने वाले राहुल तनेजा एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी के मालिक हैं. एक टायर पंचर लगाने वाले पिता के इस बेटे की छोटी छोटी आंखों में बहुत पहले ही बड़े सपने तैरने लगे थे. यही वजह रही कि राहुल ने छोटी उम्र में ही घर छोड़ दिया और मध्य प्रदेश से राजस्थान के जयपुर में आ गए. अपना पेट पालने के लिए उन्होंने यहीं के आदर्शनगर के एक ढाबे पर नौकरी करनी शुरू कर दी. सारा दिन काम करने के बदले इन्हें इस ढाबे से महीने के अंत में 150 रुपये मिलते थे. राहुल के साथ एक बात ये अच्छी रही कि इन्होंने मुश्किल हालात में भी पढ़ाई नहीं छोड़ी. 

नौकरी करने के साथ साथ उन्होंने राजापार्क स्थित आदर्श विद्या मंदिर में दाखिला ले लिया और खुद के ही दम पर पढ़ाई करने लगे. रिपोर्ट्स बताती हैं कि राहुल ने दोस्तों की किताब, कॉपी और पासबुक मांग कर अपनी पढ़ाई जारी रखी और 92 प्रतिशत अंक हासिल किए. राहुल ने अपने एक इंटरव्यू में बताया था कि उन्होंने दो साल तक ढाबे पर नौकरी की, इसके बाद उन्होंने कई तरह के काम किए, जैसे कि दिवाली पर पटाखे तो होली पर रंग बेचना. इसी तरह इन्होंने मकर संक्रांति पर पतंगें तथा रक्षाबंधन के समय राखियां बेचने का काम किया. अपनी जरूरतों और पेट की भूख के लिए इन्होंने घर घर जाकर तक अखबार पहुंचाया तो कभी ऑटो रिक्शा चलाया. 

दोस्तों ने दी मॉडलिंग करने की सलाह 

इसी तरह राहुल अपनी जरूरतें पूरी करने के लिए तरह तरह के काम करते रहे. फिर 1998 में इन्हें वह रास्ता दिखा जो इन्हें बहुत आगे ले जाने वाला था. मेहनतकश होने के साथ साथ राहुल अपनी फिटनेस पर भी पूरा ध्यान देते थे. इनकी अच्छी लुक को देखते हुए इनके दोस्तों ने इन्हें मॉडलिंग करने की सलाह दी. राहुल ने भी उनकी सलाह मान कर मॉडलिंग शुरू कर दी और फिर इन्हें इसका चस्का सा लग गया. इसी दौरान इन्होंने एक फैशन  शो में भाग ले लिया. किस्मत अच्छी रही तथा 1998 में राहुल जयपुर क्लब द्वारा आयोजित एक फैशन शो में विजेता चुन लिए गए. इसके बाद इन्होंने 8 महीने तक फैशन शो किए. फैशन शो करने के साथ साथ राहुल इस बात पर भी नजर जमाए रखते थे कि ये शो ऑर्गेनाइज कैसे होते हैं. 

शो ऑर्गनाइजिंग के बारे में जानकारी प्राप्त करने के बाद इन्होंने फैसला किया कि ये अब स्टेज पर नहीं बल्कि बैक स्टेज परफ़ॉर्म करेंगे. यानी कि अब राहुल ने शो में भाग लेने का नहीं बल्कि ऐसे शोज का पूरा इवेंट संभालने का काम शुरू कर दिया. इसके बाद उन्होंने एक इवेंट मैनेजमेंट कंपनी खोल ली. राहुल इस कंपनी को अपने दम पर आगे बढ़ाते चले गए तथा फिर कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.