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Hindi Grammer Quiz

टेलीग्राम चैनल का लोगो hindi_grammar_quiz — Hindi Grammer Quiz H
टेलीग्राम चैनल का लोगो hindi_grammar_quiz — Hindi Grammer Quiz
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नवीनतम संदेश 11

2021-05-08 13:35:00 11- असंगति - कारण और कार्य में संगति न होने पर असंगति
अलंकार होता है ! जैसे -
हृदय घाव मेरे पीर रघुवीरै ।
घाव तो लक्ष्मण के हृदय में हैं , पर पीड़ा राम को है
, अत: असंगति अलंकार है !

12- प्रतीप - प्रतीप का अर्थ है उल्टा
या विपरीत । यह उपमा अलंकार के विपरीत
होता है । क्योंकि इस अलंकार में उपमान को लज्जित , पराजित या
हीन दिखाकर उपमेय की श्रेष्टता बताई
जाती है ! जैसे -
सिय मुख समता किमि करै चन्द वापुरो रंक ।
सीताजी के मुख ( उपमेय )की
तुलना बेचारा चन्द्रमा ( उपमान )नहीं कर सकता ।
उपमेय की श्रेष्टता प्रतिपादित होने से यहां
प्रतीप अलंकार है !

13- दृष्टान्त - जहां उपमेय , उपमान और साधारण धर्म का बिम्ब
-प्रतिबिम्ब भाव होता है,जैसे-
बसै बुराई जासु तन ,ताही को सन्मान ।
भलो भलो कहि छोड़िए ,खोटे ग्रह जप दान ।।
यहां पूर्वार्द्ध में उपमेय वाक्य और उत्तरार्द्ध में उपमान वाक्य
है । इनमें ' सन्मान होना ' और ' जपदान करना ' ये दो भिन्न -भिन्न
धर्म कहे गए हैं । इन दोनों में बिम्ब -प्रतिबिम्ब भाव है । अत:
दृष्टान्त अलंकार है !

14- अर्थान्तरन्यास - जहां सामान्य कथन का विशेष से या विशेष
कथन का सामान्य से समर्थन किया जाए , वहां अर्थान्तरन्यास
अलंकार होता है ! जैसे -
जो रहीम उत्तम प्रकृति का करि सकत कुसंग ।
चन्दन विष व्यापत नहीं लपटे रहत भुजंग ।।

15- विरोधाभास - जहां वास्तविक विरोध न होते हुए भी
विरोध का आभास मालूम पड़े , वहां विरोधाभास अलंकार होता है ! जैसे
-
या अनुरागी चित्त की गति समझें
नहीं कोइ ।
ज्यों -ज्यों बूडै स्याम रंग त्यों -त्यों उज्ज्वल होइ ।।
यहां स्याम रंग में डूबने पर भी उज्ज्वल होने में विरोध
आभासित होता है , परन्तु वास्तव में ऐसा नहीं है ।
अत: विरोधाभास अलंकार है !

16- मानवीकरण - जहां जड़ वस्तुओं या प्रकृति पर
मानवीय चेष्टाओं का आरोप किया जाता है , वहां
मानवीकरण अलंकार है ! जैसे -
फूल हंसे कलियां मुसकाई ।
यहां फूलों का हंसना , कलियों का मुस्कराना मानवीय
चेष्टाएं हैं , अत: मानवीकरण अलंकार है!

17- अतिशयोक्ति - अतिशयोक्ति का अर्थ है - किसी
बात को बढ़ा -चढ़ाकर कहना । जब काव्य में कोई बात बहुत बढ़ा -
चढ़ाकर कही जाती है तो वहां अतिशयोक्ति
अलंकार होता है !जैसे -
लहरें व्योम चूमती उठतीं ।
यहां लहरों को आकाश चूमता हुआ दिखाकर अतिशयोक्ति अलंकार होता है !

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2021-05-08 13:34:56 हिन्दी व्याकरण स्पेशल डोज़ अलंकार

अलंकार विस्तार सहित- " काव्य की शोभा बढ़ाने वाले तत्व अलंकार
कहे जाते हैं ! "

अलंकार के तीन भेद हैं -

1. शब्दालंकार - ये शब्द पर आधारित होते हैं ! प्रमुख शब्दालंकार
हैं - अनुप्रास , यमक , शलेष , पुनरुक्ति , वक्रोक्ति आदि !

2. अर्थालंकार - ये अर्थ पर आधारित होते हैं ! प्रमुख अर्थालंकार
हैं - उपमा , रूपक , उत्प्रेक्षा, प्रतीप , व्यतिरेक ,
विभावना , विशेषोक्ति ,अर्थान्तरन्यास , उल्लेख , दृष्टान्त, विरोधाभास
, भ्रांतिमान आदि !

3.उभयालंकार- उभयालंकार शब्द और अर्थ दोनों पर आश्रित
रहकर दोनों को चमत्कृत करते हैं!

1- उपमा - जहाँ गुण , धर्म या क्रिया के आधार पर उपमेय
की तुलना उपमान से की जाती
है
जैसे -
हरिपद कोमल कमल से ।
हरिपद ( उपमेय )की तुलना कमल ( उपमान ) से
कोमलता के कारण की गई ! अत: उपमा अलंकार है !

2- रूपक - जहाँ उपमेय पर उपमान का अभेद आरोप किया जाता
है ! जैसे -
अम्बर पनघट में डुबो रही ताराघट उषा
नागरी ।
आकाश रूपी पनघट में उषा रूपी
स्त्री तारा रूपी घड़े डुबो रही
है ! यहाँ आकाश पर पनघट का , उषा पर स्त्री का
और तारा पर घड़े का आरोप होने से रूपक अलंकार है !

3- उत्प्रेक्षा - उपमेय में उपमान की कल्पना या
सम्भावना होने पर उत्प्रेक्षा अलंकार होता है !
जैसे -
मुख मानो चन्द्रमा है ।
यहाँ मुख ( उपमेय ) को चन्द्रमा ( उपमान ) मान लिया गया है !
यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है !
इस अलंकार की पहचान मनु , मानो , जनु , जानो शब्दों
से होती है !

4- यमक - जहाँ कोई शब्द एक से अधिक बार प्रयुक्त हो और
उसके अर्थ अलग -अलग हों वहाँ यमक अलंकार होता है ! जैसे
-
सजना है मुझे सजना के लिए ।
यहाँ पहले सजना का अर्थ है - श्रृंगार करना और दूसरे सजना का
अर्थ - नायक शब्द दो बार प्रयुक्त है ,अर्थ अलग -अलग हैं !
अत: यमक अलंकार है !

5- शलेष - जहाँ कोई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हो ,
किन्तु प्रसंग भेद में उसके अर्थ एक से अधिक हों , वहां शलेष
अलंकार है ! जैसे -
रहिमन पानी राखिए बिन पानी सब सून ।
पानी गए न ऊबरै मोती मानस चून ।।
यहाँ पानी के तीन अर्थ हैं - कान्ति ,
आत्म - सम्मान और जल ! अत: शलेष अलंकार है , क्योंकि
पानी शब्द एक ही बार प्रयुक्त है तथा
उसके अर्थ तीन हैं !

6- विभावना - जहां कारण के अभाव में भी कार्य हो
रहा हो , वहां विभावना अलंकार है !जैसे -
बिनु पग चलै सुनै बिनु काना ।
वह ( भगवान ) बिना पैरों के चलता है और बिना कानों के सुनता है !
कारण के अभाव में कार्य होने से यहां विभावना अलंकार है !

7- अनुप्रास - जहां किसी वर्ण की अनेक
बार क्रम से आवृत्ति हो वहां अनुप्रास अलंकार होता है ! जैसे -
भूरी -भूरी भेदभाव भूमि से भगा दिया ।
' भ ' की आवृत्ति अनेक बार होने से यहां अनुप्रास
अलंकार है !

8- भ्रान्तिमान - उपमेय में उपमान की भ्रान्ति होने से
और तदनुरूप क्रिया होने से भ्रान्तिमान अलंकार होता है ! जैसे -
नाक का मोती अधर की कान्ति से ,
बीज दाड़िम का समझकर भ्रान्ति से,
देखकर सहसा हुआ शुक मौन है, सोचता है अन्य शुक यह कौन
है ?
यहां नाक में तोते का और दन्त पंक्ति में अनार के दाने का भ्रम
हुआ है , यहां भ्रान्तिमान अलंकार है !

9- सन्देह - जहां उपमेय के लिए दिए गए उपमानों में सन्देह बना
रहे तथा निशचय न हो सके, वहां सन्देह अलंकार होता है !जैसे -
सारी बीच नारी है कि
नारी बीच सारी है ।
सारी ही की नारी
है कि नारी की ही
सारी है ।

10- व्यतिरेक - जहां कारण बताते हुए उपमेय की
श्रेष्ठता उपमान से बताई गई हो , वहां व्यतिरेक अलंकार होता है !
जैसे -
का सरवरि तेहिं देउं मयंकू । चांद कलंकी वह निकलंकू
।।
मुख की समानता चन्द्रमा से कैसे दूं ? चन्द्रमा में तो
कलंक है , जबकि मुख निष्कलंक है !

548 views𝙿 𝙺, 10:34
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2021-05-08 12:30:21
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2021-05-08 12:30:07 हिन्दी भाषा एवं साहित्य
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✦ आज के लिए प्रश्नोत्तर सीरीज़ : 90
✦ टॉप 5 MCQs प्रश्नोतर
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1. 'विज्ञान' शब्द में प्रयुक्त उपसर्ग है-

विज्ञ ज्ञान वि अन

2. विजयदेव नारायण साही की कविताएँ किस 'सप्तक' में संग्रहीत हैं?

तीसरा सप्तक चौथा सप्तक
तार सप्तक दूसरा सप्तक

3. 'अनायास' में कौन-सा समास है?

नञ् तत्पुरुष समास द्विगु
तत्पुरुष बहुव्रीहि

4. निम्न में से कौन-सा 'आम' का पर्यायवाची है?

अमृतफल आम्र रसाल पिक

5. 'सभा में बीसियों लोग थे' - इस वाक्य में विशेषण का कौन-सा भेद है?

समुदाय वाचक परिमाण वाचक
निश्चित संख्यावाचक अनिश्चित संख्यावाचक
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उत्तर : C A A D D
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अपने मित्रों के साथ अवश्य साझा करें।
535 views𝙿 𝙺, 09:30
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2021-05-08 07:46:23 ध्वनि सिद्धान्त

ध्वनि की परिभाषा – ध्वनिकार आनन्दवर्धन ने ध्वनि की परिभाषा इस प्रकार प्रस्तुत की है –

प्रतीयमानं पुरन्यदेवं वस्त्वस्ति वाणीषु महाकवीनाम्।
यत् तत् प्रसिद्धावयवातिरिक्तं विभाति लावण्यमिवांगनासु।।

अर्थात् महाकवियों की वाणियों में वाच्यार्थ से भिन्न प्रतीयमान कुछ और ही वस्तु है, जो प्रसिद्ध अलंकारों अथवा प्रतीत होने वाले अवयवों से भिन्न, सहृदय सुप्रसिद्ध अंगनाओं के लावण्य के समान (अलग) प्रकाशित होता है। जिस प्रकार सुन्दरियों का सौंदर्य पृथक् दिखाई देने वाला समस्त अवयवों से भिन्न सहृदय नेत्रों के लिए अमृत तुल्य कुछ और ही तत्त्व है, इसी प्रकार वह (प्रतीयमान अर्थ) है और यह प्रतीयमान अर्थ तभी प्राप्त होता है, जहाँ अर्थ स्वयं को तथा शब्द अभिधेय अर्थ को गौण बनाकर उस अर्थ को प्रकाशित करते हैं। उस काव्य विशेष को विद्वानों ने ’ध्वनि’ कहा है।

यथार्थः शब्दो वा तमर्थमुपसर्जनीकृत स्वार्थौ।
व्यक्तः काव्य विशेषः स ध्वनिरिति सुरिभिः कथितः।।

अर्थात् जहाँ पर वाच्यार्थ, वाच्य अथवा वाचक प्रधानीभूत व्यंग्यार्थ को व्यक्त करते हैं, उस काव्य विशेष को ध्वनि कहते है। यह व्यंग्यार्थ मुख्यार्थ से श्रेष्ठ होना चाहिए। यद्यपि ’व्यंजना’ शब्द व्याकरणों में बहुत पहले से प्रचलित था, परन्तु काव्य में उसका महत्त्व सर्वप्रथम आनन्दवर्धन द्वारा ही प्रतिपादित किया गया था।

◆ यह कार्य ध्वनिमत की स्थापना द्वारा सम्पन्न हुआ। आनन्दवर्धन इस व्यापार के मूल में शब्द की तीनों वृत्तियों को महत्त्व देकर व्यंग्यार्थ को मुख्यार्थ से श्रेष्ठ सिद्ध किया।

◆ जहाँ तक व्यंग्यार्थ का प्रश्न है, किसी भी शब्द अथवा वाक्य में व्यंग्यार्थ हो सकता है, परन्तु इस प्रकार के व्यंग्यार्थ को काव्य नहीं कह सकते। चमत्कारी अथवा चारुत्व युक्त व्यंग्य को ही काव्य कहा गया है।

◆ यह व्यंग्यार्थ एक विलक्षण-अर्थ ही हुआ करता है, यह वाच्यातिशायी होता है। यह तो कुछ और ही (अन्यत् एव) है। यह विशिष्ट अर्थ प्रतिभाजन्य है, सुस्वादु (सरस) है, वाच्य के अतिरिक्त कुछ दूसरी ही वस्तु है, यही ध्वनन व्यापार होता है। यह काव्यविशेष का अर्थ है, अर्थ या शब्द या व्यापार वाच्यार्थ भी ध्वनन करता है, और शब्द भी।

◆ इस प्रकार व्यंग्य (अर्थ) भी ध्वनित होता है अथवा शब्द, अर्थ, व्यापार भी ध्वनन व्यापार है। इस प्रकार समुदाय शब्द अर्थ-वाच्य (व्यंजक) अर्थ और व्यंग्य अर्थ तथा शब्द और अर्थ का व्यापार ध्वनि है। अतः लोचनकार द्वारा दी गयी इस व्याख्या के आधार पर ध्वनि के पाँच व्युत्पत्यर्थ स्वीकार किए गए है – ध्वनति ध्वनयति इति वा ध्वनि – जो ध्वनिवत करे व कराए, वह ध्वनि है। यह शब्द के लिए आता है। वाचक, लक्षक, व्यंजक तीनों प्रकार के शब्द जब किसी व्यंग्य अर्थ के व्यंजक होते हैं, तो ध्वनि कहे जाते हैं।

◆ ध्वन्यत इति ध्वनि – जो ध्वनित हो वह ध्वनि है। इस कर्मप्रधान व्युत्पत्ति से ध्वनि शब्द रसादि व्यंग्यों का वाचक होता है। वस्तु, रसादि और अलंकार ध्वनित होते हैं। ये सब ध्वनि है।

ध्वन्यते अनेन इति ध्वनि – जिस कारण अर्थात् शब्द व्यापार या शब्द शक्ति द्वारा ध्वनि की उत्पत्ति होती है, वह ध्वनि है। इस प्रकार करण प्रधान ध्वनि शब्द से व्यंजना आदि शक्तियों का बोध होता है। प्रत्येक शब्द और अर्थ के बीच सम्बन्ध स्थापित करने वाली एक-एक शक्ति होती है जो शब्द से अर्थ की उपस्थिति कराती है जिसका वर्णन क्रमशः अभिधा, लक्षणा और व्यंजना के नाम से हो चुका है।

ध्वननं ध्वनि – ध्वनित होना ध्वनि है। इस रूप में यह भाववाचक संज्ञा है। इससे वस्तु अलंकार और रसादि की सूचना समझी जाती है। अभिव्यंजन, ध्वनन, सूचन इसके समानार्थक शब्द है।

ध्वन्यत अस्मिन्निति ध्वनि – जिसमें वस्तु, अलंकार, रसादि ध्वनित हो, ध्वनि है। यह ध्वनि पद अधिकरण प्रधान है। यह शब्द गुणवाची विशेषण होकर काव्य शब्द के साथ समधिव्याव्हृत होता है। यह ध्वनि काव्य है, ऐसा व्यवहार इसी विग्रह पर अवलम्बित है।

इस प्रकार ध्वनि का प्रयोग पाँच अर्थों में होता है-व्यंजक शब्द, व्यंजक अर्थ, व्यंग्य शब्द, व्यंग्य अर्थ (व्यंजना-व्यंजना व्यापार) और व्यंग्य प्रधान काव्य। संक्षेप में ध्वनि का अर्थ है व्यंग्य, परन्तु पारिभाषिक रूप में यह व्यंग्य वाच्यातिशायी होना चाहिए। इस अतिशय्य अथवा प्राधान्य का आधार है चारुत्व अर्थात् रमणीयता का उत्कर्ष। अतएव वाच्यातिशायी का अर्थ हुआ वाच्य से अधिक रमणीय और ध्वनि का संक्षिप्त लक्षण हुआ-वाच्य से अधिक रमणीय व्यंग्य को ध्वनि कहते है।

पार्ट 1
333 views𝙿 𝙺, 04:46
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