2021-07-11 12:06:56
मरणासन्न व्यक्ति के विचारग्लूकोज की टपकती बूंदों ने, ये एहसास कराया
बड़ा ही अनमोल जीवन, हमने भगवान से पाया
तन को जब लगा रोग, मुझे सच समझ में आया
भोग विलास में ही मैंने, ये सारा जीवन बिताया
मलने के लिए अपने पास, मन के हाथ रह गये
तन से बिछड़ते समय, आंसू नयनों से बह गये
फिसल रही मेरी ये, जिन्दगी जैसे हाथों से रेत
यही ख्याल आते ही, मन हो जाता मेरा अचेत
शायद ना रहे मेरा जीवन, किन्तु सुनो मेरी बात
जाने का समय आये, तब खाली हो जाते हाथ
अपने संग ना कुछ भी जाता, केवल जाते कर्म
छोड़ो करना पाप कर्म, हर कर्म बनाओ सुकर्म
पाप करो या पुण्य, तन को सब छोड़कर जायेंगे
लेकिन अपने संग केवल, हमारे कर्म ही जायेंगे
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