Get Mystery Box with random crypto!

'काम' और 'प्रेम' में अन्तर इस संसार में एक व्यक्ति का दूसरे व | Brahmacharya™ (ब्रह्मचर्य) Celibacy

'काम' और 'प्रेम' में अन्तर

इस संसार में एक व्यक्ति का दूसरे व्यक्ति से मृदुल नाता जोड़ने वाला जो मनोभाव है, उसी का नाम 'प्रेम' है। जैसे पृथ्वी का गुरुत्व आकर्षण चीज़ों को अपनी ओर आकर्षित करता है, वैसे ही एक व्यक्ति में दूसरे के प्रति जो आकर्षण होता है, उसी को ‘प्रेम' कहा जाता है। प्रेम ऐसी मनोस्थिति है अथवा एक ऐसा अनुभव है जो 'आनन्द' के अति निकट है, नहीं, नहीं, प्रेम तो आनन्द का सहगामी ही है अथवा आनन्द का उत्पादक ही है। यदि संसार में प्रेम न हो तो मनुष्य का जीना ही मुश्किल हो जायेगा क्योंकि तब मनुष्य किस लिए जीए, किसके साथ जीए ? अतः प्रेम जीवन को स्थिर रखने वाला, जीवन का सार है अथवा मनुष्य के मन को भाने वाला एक रस है ।

प्रेम ही का विरोधी मनोभाव घृणा है। घृणा से अनेकानेक अशान्तिकारी तथा दुःखोत्पादक संकल्प-विकल्प और विचार उत्पन्न होते हैं परन्तु प्रेम से मनुष्य के मन में एक-दूसरे के कल्याण की भावना पैदा होती है। प्रेम मनुष्य को दूसरे के लिए अपने सुख को त्यागने में भी सुख की अनुभूति करता है जबकि घृणा से मनुष्य के मन को एक दाह का अनुभव होता है और वह दूसरे के सम्बन्ध अथवा सम्पर्क को ही त्याग देना चाहता है। अतः प्रेम एक स्वाभाविक, आवश्यक और सात्विक गुण है। परमात्मा के प्रति मन में प्रेम का होना ही भक्ति तथा योग है। परमात्मा के प्रेम की एक बूँद प्राप्त करने के लिए भी प्रभु - प्रेमी व्यक्ति अपने जीवन की बाज़ी लगाने को तैयार हो जाता है। प्रेम एक बहुत ही उच्च, बहुत ही पवित्र गुण अथवा अनुभूति है । परन्तु मनुष्य ग़लती से इसके विकृत रूप को भी प्रेम मान बैठता है। वह मोह, काम और लोभ को भी 'प्रेम' समझ बैठता है। अतः वह इनकी दलदल में फँस कर जीवन को दुःखी - बना बैठता है।

ऐसे लेख पढ़ने के लिए टेलीग्राम पर जुड़े

https://t.me/+lyAYPPuFQAgxODU1