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काम का दमन गीता में भगवान कहते हैं नरक के तीन प्रचंड महाद्वार | Brahmacharya™ (ब्रह्मचर्य) Celibacy

काम का दमन

गीता में भगवान कहते हैं नरक के तीन प्रचंड महाद्वार रात दिन खुले हुए हैं।

सबसे पहला काम द्वार, जिसमें कि विषय के गुलाम बलात् खींचे और ठूसे जाते हैं।

दूसरा द्वार क्रोधी पुरुषों के लिए है और

तीसरा द्वार लोभियों के लिए है।

कामी पुरुष जीते जी नरक का अनुभव करने लगता है: वह जीते ही मुर्दा बन जाता है। जगद्गुरु श्री दत्तात्रेय मुनि कहते हैं "जो लोग गन्दगी से सदा भरे हुए मलमूत्र के स्थानों में रमण करते हैं, ऐसे नारकी जीव नरक से क्योंकर तर सकते हैं?

ऐ पुरुषो! तुम चर्ममयी नरक कुण्ड की और क्या ताकते हो? क्या नरक के कीट बनने के लिए? छी! छी! इनसे तुम्हारा कैसे उद्धार होगा? क्या यही स्वर्ग सुख है? जरा तुम्हीं सोचो कि वह स्वर्ग-भोग है या नरक भोग?" इस प्रकार तो शूकर, कूकर और गोबर के कीड़े भी आनन्द मानते हैं। इनसे फिर तुम्हारा दर्जा ऊँचा कैसे? ऊँचे दर्जे के लिए हमें अवश्य अपने आचार-विचार भी ऊँचे ही रखने चाहिए। मनुष्य की देह धारण कर लेने से कोई मनुष्य नहीं हो सकता। विद्या और विनय, तप व शान्ति, कान्ति व दान्ति (लावण्य तथा दमन शक्ति) गुण व अगर्व, धर्म व अदम्भ इत्यादि सद्गुणों से ही मनुष्य 'मनुष्य' बन सकता है और ईश्वर को प्राप्त कर सकता है।

परन्तु इन सब की जड़ में एकमात्र ब्रह्मचर्य है: यह सत्य बात कभी न भूलो।

कामान्ध मनुष्य तारुण्य के मद से विषय में प्रीति भले ही रखता हो और अपनी मनमानी भले ही करता हो, परन्तु वे ही विषय उसे आगे इस रीति से पटक देते हैं, जैसे पेड़ों को बाढ़ और आँधी ।

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