Get Mystery Box with random crypto!

Aasan hai !!

टेलीग्राम चैनल का लोगो aasanhai008 — Aasan hai !! A
टेलीग्राम चैनल का लोगो aasanhai008 — Aasan hai !!
चैनल का पता: @aasanhai008
श्रेणियाँ: कोटेशन
भाषा: हिंदी
ग्राहकों: 32.77K
चैनल से विवरण

असंभव की खोज ।।।
➡ आस्था
➡ साहस
➡ नम्रता
Admin 👉 @aasanhaii

Ratings & Reviews

3.33

3 reviews

Reviews can be left only by registered users. All reviews are moderated by admins.

5 stars

1

4 stars

1

3 stars

0

2 stars

0

1 stars

1


नवीनतम संदेश 5

2023-05-10 07:31:27
7.5K views04:31
ओपन / कमेंट
2023-05-10 07:31:19 जून की प्रचंड गर्मी वह महुये का वृक्ष बर्दाश्त नहीं कर सका...जुलाई में बरसात आने से सब तऱफ हरियाली थी, मग़र उस महुये के वृक्ष में न तो नये पत्ते आये, न नई बयार..उस महुये के वृक्ष ने दम तोड़ दिया था। इसी दौरान आये छोटे से तूफ़ान को भी वह वृक्ष झेल न सका और स्वतः ही उखड़कर गिर गया।

इस घटना से हैरान परेशान भोला ने अपने पिता कालूराम से पूछा तो उन्होंने कहा, यह महुये का वृक्ष जंगली वृक्ष है, किसी भी तरह के मौसम में बदलाव को सहन करने के बाद ही इतना बड़ा हुआ है, हर गर्मी में इसकी जड़ें पानी के जलस्तर के अनुरूप नीचे ही बढ़ती जाती हैं, जिससे यह वृक्ष कभी भी नहीं सूख सकता था, परन्तु जब तुमने इसे ठंड के मौसम से ही खाद और पानी देना शुरू कर दिया, तो यह वृक्ष अपनी मेहनत की आदत छोड़कर मुफ्त में मिले खाद पानी के ऊपर निर्भर होता गया, जिससे इसकी जड़ें क्षेत्रीय जल स्तर के अनुरूप नीचे की और न बढ़कर, ऊपर से तुम्हारे द्वारा मिल रहे जल की तरफ़ अग्रसर हो गई.. यह स्वावलंबी वृक्ष, तुम्हारे द्वारा मिल रहे खाद पानी पर निर्भर होने से परावलम्बी हो गया, और जब तुमनें अचानक मई के मध्यान्ह में इस महुये को खाद पानी देना बंद कर दिया, इसकी जड़ें मौजूदा जलस्तर से बहुत दूर हो चुकी थी, जिससे यह वृक्ष बिना पानी के सूखकर स्वयं ही नष्ट हो गया।

=====================
कहानी लिखनें का तात्पर्य यह है कि हम सभी क़भी न क़भी उस जंगली महुये के वृक्ष की तरह स्वावलंबी थे, जो राह चलते कुँए, नकलुप या नदी से बिना छना पानी पीकर भी बीमार नहीं होते थे, मिट्टी सने हाथ बिना डेटॉल के धोएं भी स्वस्थ रहते थे, मीलों पैदल चलकर भी थकान महसूस नहीं होती थी।

●आज हम "आर-ओ और मिनरल वाटर" पीकर खुद को महुये के उस वृक्ष की दशा में लाकर खड़े कर चुके हैं कि यदि आर-ओ पानी या मिनरल वाटर न मिलें तो हम बीमार हो जाएंगे। यही वजह है कि इन फ़िल्टर बनाने वाली कम्पनियों ने 10-15 हज़ार के फिल्टर का सालाना मेंटिनेंस 5-6 हज़ार रुपये कर दिया है। यानी अपनी ही बिजली अपना ही पानी होने के बावजूद लगभग 20 रुपये प्रतिदिन का सिर्फ पानी पर ही इन कंपनियों को देतें हैं।

● इन मेहनतकश मजदूरों को भी सरकार मुफ्त या 1-2 रुपये किलो राशन देकर, इसी प्रकार महुये के वृक्ष के समान परावलम्बी बना चुकी है शहरों में यही हाल मुफ्त के बिजली-पानी के लालच का दिया जा रहा है, जो मुफ्त का खाने का आदि होने की वजह से उसी सरकार को वोट देंगे जो उन्हें मुफ़्त का अनाज दे, चाहे उसके एवज में सरकार राष्ट्र विरोधी गतिविधियों में ही लिप्त क्यों न हो जाये, इन्हें कोई फ़र्क नहीं पड़ता।

अपने आपको इस महुये के वृक्ष की तरह परावलम्बी बनायेंगे तो एक न एक दिन बेमौत मारें जाएंगे, इसलिए समय रहते स्वावलंबी बनने का प्रयास करें।
धन्यवाद
अविनाश स आठल्ये
7.1K views04:31
ओपन / कमेंट
2023-05-10 07:31:19 ★★वह महुये का पेड़ ★★

बस्तर के किसी गाँव में कालूराम नाम का एक किसान था, उसके पास लगभग 2 एकड़ का एक खेत था, जिसमें खेती करके वह अपने परिवार का जीवनयापन किया करता था। वह वृद्ध हो चला था इसलिए उसकी खेतीबाड़ी अब उसका इकलौता बेटा भोला देखा करता था।

भोला ने देखा कि उनके खेत के बीचोबीच एक बड़ा महुये का झाड़ है, जिसकी छाया के नीचे चारों तरफ लगभग आधा एकड़ की भूमि पर फ़सल नहीं उगा करती थी।
एक दिन भोला ने कुल्हाड़ी से उस वृक्ष को काटने की कोशिश की, तभी गाँव के कोटवार की शिकायत पर तुरंत ही वनविभाग के अधिकारी उसके घर आकर हिदायत देकर चले गये कि महुआ राज्य सरकार के" प्रतिबंधित वृक्षों की श्रेणी में आने वाली वनोपज हैं" इसे काटना कानूनन जुर्म हैं, अब दुबारा से ऐसी कोशिश की तो सीधा जेल में डाल दिये जाओगे..

डरा सहमा भोला उनके सामने कुछ न बोल सका, उसने बाद में सरपंच और ग्राम प्रधान से भी जानकारी प्राप्त की तो उसे पता चला कि इस प्रकार के वनोपज को काटने के लिए स्थानीय तहसीलदार की अनुमति आवश्यक है। भोला ने जैसे-तैसे अपने गाँव के पटवारी को अनुनय- विनय करके, महुआ का पेड़ काटने की तहसीलदार साहब से अनुमति प्राप्त करने के एवज में 1000 रुपये देकर कहा कि जब मैं यह झाड़ काटूंगा तो इसकी आधी लकड़ियां आपको ही दूँगा। भोला दो सप्ताह तक अनुमति की प्रतीक्षा करता रहा, मग़र अनुमति तो नहीं मिली, उलट उस पटवारी का ही दूसरे गाँव मे तबादला होने से भोला के पैसे पानी में चले गये।

मानसून सिर पर था, भोला को धान की फसल बोना था, लिहाजा उसने उस वृक्ष के छाया वाले स्थान सहित पूरे खेत की जुताई करके धान की रोपाई करना शुरू कर दिया। जिद्दी भोला आश्वस्त था कि कुछ न कुछ करके वह धान की फ़सल बड़ी होने से पहले इस वृक्ष को काट ही लेगा। भोला ने शहर से महंगा खरपतवार नाशक ज़हर एवम अन्य विषैले रसायन उस वृक्ष की जड़ों में डालकर महुये को नष्ट करनें का एक और प्रयास किया... मग़र वह महुआ तो जंगली वनोपज था, उसे इन सब जहरीले रसायनों का भी कोई असर न हुआ, वह महुये का पेड़ ज्यों का त्यों हरा भरा ही था। भोला धान की रोपाई करने के बावजूद भी उस महुये के छाया तले लगभग आधा एकड़ भूमि से कोई उत्पादन न कर पाने से हताश हो गया था।

भोला को यूँ हताश देखकर उसके पिता कालूराम ने कहा कि तुम यदि उस महुये के पेड़ को काटना चाहते हो तो मेरे अनुसार काम करो, पेड़ खुद ब खुद सूखकर गिर जायेगा.. भोला ने कहा ठीक है पिताजी मुझे बताइये क्या करना है.. कालूराम ने कहा कि सबसे पहले तो इस बार रबी की फसल को बाक़ी के भाग में ही बोना, अभी उस महुये के पेड़ के चारो तरफ गोल घेरा करके उसमे गोबर की खाद डालो और रोज ही उसे पानी देना शुरू कर दो,
अरे! सितम्बर अक्टोबर में कौन झाड़ो को पानी देता है, और वह भी उस महुए के पेड़ को जिसे मैं काटना चाहता हूँ, पिताजी आप उसे कटवाने का प्लान बता रहे हैं या संरक्षित करने का? भोला ने हैरत से अपने पिता से पूछा।

कालूराम ने मुस्कुराक़र कहा, तुम सारे प्रयत्न करके देख चुके हो, अब मेरे हिसाब से भी एक बार करके देख लो तुम्हें सफलता न मिले तो कहना।

अपने पिता का कहना मानकर, भोला ने उस महुये के पेड़ के चारों तरफ गोल घेरा बनाकर उसमें गोबर की खाद डालकर रोज एक ड्रम पानी देना शुरू कर दिया, हालांकि ठंड के समय में किसी भी पौधे को पानी की आवश्यकता नहीं होता, फिर तो महुआ एक जंगली वृक्ष था, भोला नाहक ही उसे पानी दे रहा था, परन्तु वह पिताजी का कहना नहीं टाल सकता था।

ख़रीफ़ की फ़सल भी कट चुकी थी, अब गर्मी पड़ना शुरू हो चुकी थी, वह महुये का पेड़ अन्य वृक्षों के उलट और भी ज़्यादा हरा-भरा हो चुका था, परन्तु भोला ने अपने पिता की आज्ञानुसार उस महुये के वृक्ष को खाद पानी देना जारी रखा.. वन कर्मी रेंजर को यह संदेहास्पद लगा भी परन्तु किसी भी वृक्ष को खाद -पानी देना कोई जुर्म तो था नही, इसलिए वह रेंजर भोला के पर्यावरण के प्रति जागरूकता की प्रसंसा करके चला गया।
★★
मई के मध्यान्ह में जब पूरे क्षेत्र में प्रचंड गर्मी पड़ने लगी, कालूराम ने अपने बेटे भोला को बुलाकर कहा, अब उस पेड़ को पानी देना बंद कर दो, भोला ने असमंजस की स्थिति में पिताजी के कहने के अनुसार उस पेड़ पर खाद पानी देना बंद कर दिया.. वह सोच रहा था कि जब इससे पहले भी अति प्रचंड ग्रीष्मकाल में भी यह महुये का वृक्ष गर्मी के थपेड़े सहकर भी खड़ा था, तो अब पानी बन्द करनें से उस वृक्ष को क्या फ़र्क पड़ जायेगा..

परन्तु, आश्चर्यजनक रूप से पहले पंद्रह दिन में ही उस वृक्ष की सारी पत्तियां झड़ गई.. भोला ने पहले तो इसे पतझड़ के मौसम का असर समझा, परन्तु जब एक एक करके उस पेड़ की शाखें और तना भी पूर्णतया शुष्क हो गया, तो भोला को यकीन हो चला कि पिताजी की तरकीब काम कर गई है..
6.4K views04:31
ओपन / कमेंट
2023-05-08 11:01:07 एक गाँव में एक किसान रहता था उसके परिवार में उसकी पत्नी और एक लड़का था। कुछ सालों के बाद पत्नी की मृत्यु हो गई उस समय लड़के की उम्र दस साल थी। किसान ने दूसरी शादी कर ली। उस दूसरी पत्नी से भी किसान को एक पुत्र प्राप्त हुआ। किसान की दूसरी पत्नी की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई। किसान का बड़ा बेटा जो पहली पत्नी से प्राप्त हुआ था जब शादी के योग्य हुआ तब किसान ने बड़े बेटे की शादी कर दी। फिर किसान की भी कुछ समय बाद मृत्यु हो गई। किसान का छोटा बेटा जो दूसरी पत्नी से प्राप्त हुआ था और पहली पत्नी से प्राप्त बड़ा बेटा दोनों साथ साथ रहते थे। कुछ समय बाद किसान के छोटे लड़के की तबियत खराब रहने लगी। बड़े भाई ने कुछ आस पास के वैद्यों से इलाज करवाया पर कोई राहत ना मिली। छोटे भाई की दिन ब दिन तबियत बिगड़ती जा रही थी और बहुत खर्च भी हो रहा था। एक दिन बड़े भाई ने अपनी पत्नी से सलाह की कि यदि ये छोटा भाई मर जाए तो हमें इसके इलाज के लिए पैसा खर्च ना करना पड़ेगा। और जायदाद में आधा हिस्सा भी नहीं देना पड़ेगा। तब उसकी पत्नी ने कहा कि क्यों न किसी वैद्य से बात करके इसे जहर दे दिया जाए किसी को पता भी ना चलेगा किसी रिश्तेदारी में भी कोई शक ना करेगा कि बीमार था बीमारी से मृत्यु हो गई। बड़े भाई ने ऐसे ही किया एक वैद्य से बात की कि आप अपनी फीस बताओ ऐसा करना मेरे छोटे बीमार भाई को दवा के बहाने से जहर देना है ! वैद्य ने बात मान ली और लड़के को जहर दे दिया और लड़के की मृत्यु हो गई। उसके भाई भाभी ने खुशी मनाई की रास्ते का काँटा निकल गया अब सारी सम्पत्ति अपनी हो गई। उसका अंतिम संस्कार कर दिया गया। कुछ महीनों पश्चात उस किसान के बड़े लड़के की पत्नी को लड़का हुआ ! उन पति पत्नी ने खूब खुशी मनाई, बड़े ही लाड़ प्यार से लड़के की परवरिश की। कुछ ही गिने वर्षों में लड़का जवान हो गया। उन्होंने अपने लड़के की भी शादी कर दी! शादी के कुछ समय बाद अचानक लड़का बीमार रहने लगा। माँ बाप ने उसके इलाज के लिए बहुत वैद्यों से इलाज करवाया। जिसने जितना पैसा माँगा दिया सब कुछ दिया ताकि लड़का ठीक हो जाए । अपने लड़के के इलाज में अपनी आधी सम्पत्ति तक बेच दी पर लड़का बीमारी के कारण मरने की कगार पर आ गया। शरीर इतना ज्यादा कमजोर हो गया की अस्थि-पिंजर शेष रह गया था। एक दिन लड़के को चारपाई पर लेटा रखा था और उसका पिता साथ में बैठा अपने पुत्र की ये दयनीय हालत देख कर दुःखी होकर उसकी ओर देख रहा था! तभी लड़का अपने पिता से बोला कि भाई! अपना सब हिसाब हो गया बस अब कफन और लकड़ी का हिसाब बाकी है उसकी तैयारी कर लो। ये सुनकर उसके पिता ने सोचा की लड़के का दिमाग भी काम नहीं कर रहा है बीमारी के कारण और बोला बेटा मैं तेरा बाप हूँ भाई नहीं! तब लड़का बोला मैं आपका वही भाई हूँ जो आप ने जहर खिलाकर मरवाया था। जिस सम्पत्ति के लिए आप ने मरवाया था मुझे अब वो मेरे इलाज के लिए आधी बिक चुकी है आपकी शेष है हमारा हिसाब हो गया! तब उसका पिता फ़ूट-फूट कर रोते हुए बोला कि मेरा तो कुल नाश हो गया। जो किया मेरे आगे आ गया। पर तेरी पत्नी का क्या दोष है जो इस बेचारी को जिन्दा जलाया जाएगा। (उस समय सतीप्रथा थी जिसमें पति के मरने के बाद पत्नी को पति की चिता के साथ जला दिया जाता था) तब वो लड़का बोला की वो वैद्य कहाँ है, जिसने मुझे जहर खिलाया था। तब उसके पिता ने कहा की आप की मृत्यु के तीन साल बाद वो मर गया था। तब लड़के ने कहा कि ये वही दुष्ट वैद्य आज मेरी पत्नी रूप में है मेरे मरने पर इसे जिन्दा जलाया जाएगा।

हमारा जीवन जो उतार-चढ़ाव से भरा है इसके पीछे हमारे अपने ही कर्म होते हैं। हम जैसा बोएंगे, वैसा ही काटना पड़ेगा। कर्म करो तो फल मिलता है, आज नहीं तो कल मिलता है। जितना गहरा अधिक हो कुआँ, उतना मीठा जल मिलता है। जीवन के हर कठिन प्रश्न का, जीवन से ही हल मिलता है!!
7.5K views08:01
ओपन / कमेंट
2023-05-04 19:56:02
10.6K views16:56
ओपन / कमेंट
2023-05-02 13:42:16 मैंने सुना है कि कोलरेडो में जब सबसे पहली दफा सोने की खदानें मिलीं, तो सारा अमेरिका दौड़ पड़ा कोलरेडो की तरफ। खबरें आईं कि जरा सा खेत खरीद लो और सोना मिल जाए। लोगों ने जमीनें खरीद डालीं।
एक करोड़पति ने अपनी सारी संपत्ति लगाकर एक पूरी पहाड़ी ही खरीद ली। बड़े यंत्र लगाए। छोटे—छोटे लोग छोटे—छोटे खेतों में सोना खोद रहे थे, तो पहाड़ी खरीदी थी, बड़े यंत्र लाया था, बड़ी खुदाई की, बड़ी खुदाई की। लेकिन सोने का कोई पता न चला।

फिर घबड़ाहट फैलनी शुरू हो गई। सारा दांव पर लगा दिया था। फिर वह बहुत घबड़ा गया। फिर उसने घर के लोगों से कहा कि यह तो हम मर गए, सारी संपत्ति दांव पर लगा दी है और सोने की कोई खबर नहीं है! फिर उसने इश्तहार निकाला कि मैं पूरी पहाड़ी बेचना चाहता हूं जिसमे यंत्र और, खुदाई का सारा सामान साथ है।
घर के लोगों ने कहा, कौन खरीदेगा? सबमें खबर हो गई है कि वह पहाड़ बिलकुल खाली है, और उसमें लाखों रुपए खराब हो गए हैं, अब कौन पागल होगा?

लेकिन उस आदमी ने कहा कि कोई न कोई हो भी सकता है।

एक खरीददार मिल गया। बेचनेवाले को बेचते वक्त भी मन में हुआ कि उससे कह दें कि पागलपन मत करो; क्योंकि मैं मर गया हूं। लेकिन हिम्मत भी न जुटा पाया कहने की, क्योंकि अगर वह चूक जाए, न खरीदे, तो फिर क्या होगा? बेच दिया। बेचने के बाद कहा कि आप भी अजीब पागल मालूम होते हैं; हम बरबाद होकर बेच रहे हैं! पर उस आदमी ने कहा, जिंदगी का कोई भरोसा नहीं; जहां तक तुमने खोदा है वहां तक सोना न हो, लेकिन आगे हो सकता है। और जहां तुमने नहीं खोदा है, वहां नहीं होगा, यह तो तुम भी नहीं कह सकते। उसने कहा, यह तो मैं भी नहीं कह सकता।

और आश्चर्य—कभी—कभी ऐसे आश्चर्य घटते हैं— पहले दिन ही, सिर्फ एक फीट की गहराई पर सोने की खदान शुरू हो गई। वह आदमी जिसने पहले खरीदी थी पहाड़ी, छाती पीटकर पहले भी रोता रहा और फिर बाद में तो और भी ज्यादा छाती पीटकर रोया, क्योंकि पूरे पहाड़ पर सोना ही सोना था। वह उस आदमी से मिलने भी गया। और उसने कहा, देखो भाग्य! उस आदमी ने कहा, भाग्य नहीं, तुमने दांव पूरा न लगाया, तुम पूरा खोदने के पहले ही लौट गए। एक फीट और खोद लेते!

हमारी जिंदगी में ऐसा रोज होता है। न मालूम कितने लोग हैं जिन्हें मैं जानता हूं कि जो खोदते हैं परमात्मा को, लेकिन पूरा नहीं खोदते, अधूरा खोदते हैं; ऊपर—ऊपर खोदते हैं और लौटे जाते हैं। कई बार तो इंच भर पहले से लौट जाते हैं, बस इंच भर का फासला रह जाता है और वे वापस लौटने लगते हैं। और कई बार तो मुझे साफ दिखाई पड़ता है कि यह आदमी वापस लौट चला, यह तो अब करीब पहुंचा था, अभी बात घट जाती; यह तो वापस लौट पड़ा!

तो अपने भीतर एक बात खयाल में ले लें कि आप कुछ भी बचा न रखें, अपना पूरा लगा दें। और परमात्मा को खरीदने चले हों तो हमारे पास लगाने को ज्यादा है भी क्या! उसमें भी कंजूसी कर जाते हैं। कंजूसी नहीं चलेगी। कम से कम परमात्मा के दरवाजे पर कंजूसों के लिए कोई जगह नहीं। वहा पूरा ही लगाना पड़ेगा।
12.5K views10:42
ओपन / कमेंट
2023-04-25 07:00:18
16.6K views04:00
ओपन / कमेंट
2023-04-25 06:56:25
13.0K views03:56
ओपन / कमेंट