2023-05-10 07:31:19
★★वह महुये का पेड़ ★★
बस्तर के किसी गाँव में कालूराम नाम का एक किसान था, उसके पास लगभग 2 एकड़ का एक खेत था, जिसमें खेती करके वह अपने परिवार का जीवनयापन किया करता था। वह वृद्ध हो चला था इसलिए उसकी खेतीबाड़ी अब उसका इकलौता बेटा भोला देखा करता था।
भोला ने देखा कि उनके खेत के बीचोबीच एक बड़ा महुये का झाड़ है, जिसकी छाया के नीचे चारों तरफ लगभग आधा एकड़ की भूमि पर फ़सल नहीं उगा करती थी।
एक दिन भोला ने कुल्हाड़ी से उस वृक्ष को काटने की कोशिश की, तभी गाँव के कोटवार की शिकायत पर तुरंत ही वनविभाग के अधिकारी उसके घर आकर हिदायत देकर चले गये कि महुआ राज्य सरकार के" प्रतिबंधित वृक्षों की श्रेणी में आने वाली वनोपज हैं" इसे काटना कानूनन जुर्म हैं, अब दुबारा से ऐसी कोशिश की तो सीधा जेल में डाल दिये जाओगे..
डरा सहमा भोला उनके सामने कुछ न बोल सका, उसने बाद में सरपंच और ग्राम प्रधान से भी जानकारी प्राप्त की तो उसे पता चला कि इस प्रकार के वनोपज को काटने के लिए स्थानीय तहसीलदार की अनुमति आवश्यक है। भोला ने जैसे-तैसे अपने गाँव के पटवारी को अनुनय- विनय करके, महुआ का पेड़ काटने की तहसीलदार साहब से अनुमति प्राप्त करने के एवज में 1000 रुपये देकर कहा कि जब मैं यह झाड़ काटूंगा तो इसकी आधी लकड़ियां आपको ही दूँगा। भोला दो सप्ताह तक अनुमति की प्रतीक्षा करता रहा, मग़र अनुमति तो नहीं मिली, उलट उस पटवारी का ही दूसरे गाँव मे तबादला होने से भोला के पैसे पानी में चले गये।
मानसून सिर पर था, भोला को धान की फसल बोना था, लिहाजा उसने उस वृक्ष के छाया वाले स्थान सहित पूरे खेत की जुताई करके धान की रोपाई करना शुरू कर दिया। जिद्दी भोला आश्वस्त था कि कुछ न कुछ करके वह धान की फ़सल बड़ी होने से पहले इस वृक्ष को काट ही लेगा। भोला ने शहर से महंगा खरपतवार नाशक ज़हर एवम अन्य विषैले रसायन उस वृक्ष की जड़ों में डालकर महुये को नष्ट करनें का एक और प्रयास किया... मग़र वह महुआ तो जंगली वनोपज था, उसे इन सब जहरीले रसायनों का भी कोई असर न हुआ, वह महुये का पेड़ ज्यों का त्यों हरा भरा ही था। भोला धान की रोपाई करने के बावजूद भी उस महुये के छाया तले लगभग आधा एकड़ भूमि से कोई उत्पादन न कर पाने से हताश हो गया था।
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भोला को यूँ हताश देखकर उसके पिता कालूराम ने कहा कि तुम यदि उस महुये के पेड़ को काटना चाहते हो तो मेरे अनुसार काम करो, पेड़ खुद ब खुद सूखकर गिर जायेगा.. भोला ने कहा ठीक है पिताजी मुझे बताइये क्या करना है.. कालूराम ने कहा कि सबसे पहले तो इस बार रबी की फसल को बाक़ी के भाग में ही बोना, अभी उस महुये के पेड़ के चारो तरफ गोल घेरा करके उसमे गोबर की खाद डालो और रोज ही उसे पानी देना शुरू कर दो,
अरे! सितम्बर अक्टोबर में कौन झाड़ो को पानी देता है, और वह भी उस महुए के पेड़ को जिसे मैं काटना चाहता हूँ, पिताजी आप उसे कटवाने का प्लान बता रहे हैं या संरक्षित करने का? भोला ने हैरत से अपने पिता से पूछा।
कालूराम ने मुस्कुराक़र कहा, तुम सारे प्रयत्न करके देख चुके हो, अब मेरे हिसाब से भी एक बार करके देख लो तुम्हें सफलता न मिले तो कहना।
अपने पिता का कहना मानकर, भोला ने उस महुये के पेड़ के चारों तरफ गोल घेरा बनाकर उसमें गोबर की खाद डालकर रोज एक ड्रम पानी देना शुरू कर दिया, हालांकि ठंड के समय में किसी भी पौधे को पानी की आवश्यकता नहीं होता, फिर तो महुआ एक जंगली वृक्ष था, भोला नाहक ही उसे पानी दे रहा था, परन्तु वह पिताजी का कहना नहीं टाल सकता था।
ख़रीफ़ की फ़सल भी कट चुकी थी, अब गर्मी पड़ना शुरू हो चुकी थी, वह महुये का पेड़ अन्य वृक्षों के उलट और भी ज़्यादा हरा-भरा हो चुका था, परन्तु भोला ने अपने पिता की आज्ञानुसार उस महुये के वृक्ष को खाद पानी देना जारी रखा.. वन कर्मी रेंजर को यह संदेहास्पद लगा भी परन्तु किसी भी वृक्ष को खाद -पानी देना कोई जुर्म तो था नही, इसलिए वह रेंजर भोला के पर्यावरण के प्रति जागरूकता की प्रसंसा करके चला गया।
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मई के मध्यान्ह में जब पूरे क्षेत्र में प्रचंड गर्मी पड़ने लगी, कालूराम ने अपने बेटे भोला को बुलाकर कहा, अब उस पेड़ को पानी देना बंद कर दो, भोला ने असमंजस की स्थिति में पिताजी के कहने के अनुसार उस पेड़ पर खाद पानी देना बंद कर दिया.. वह सोच रहा था कि जब इससे पहले भी अति प्रचंड ग्रीष्मकाल में भी यह महुये का वृक्ष गर्मी के थपेड़े सहकर भी खड़ा था, तो अब पानी बन्द करनें से उस वृक्ष को क्या फ़र्क पड़ जायेगा..
परन्तु, आश्चर्यजनक रूप से पहले पंद्रह दिन में ही उस वृक्ष की सारी पत्तियां झड़ गई.. भोला ने पहले तो इसे पतझड़ के मौसम का असर समझा, परन्तु जब एक एक करके उस पेड़ की शाखें और तना भी पूर्णतया शुष्क हो गया, तो भोला को यकीन हो चला कि पिताजी की तरकीब काम कर गई है..
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