Get Mystery Box with random crypto!

Aasan hai !!

टेलीग्राम चैनल का लोगो aasanhai008 — Aasan hai !! A
टेलीग्राम चैनल का लोगो aasanhai008 — Aasan hai !!
चैनल का पता: @aasanhai008
श्रेणियाँ: कोटेशन
भाषा: हिंदी
ग्राहकों: 32.77K
चैनल से विवरण

असंभव की खोज ।।।
➡ आस्था
➡ साहस
➡ नम्रता
Admin 👉 @aasanhaii

Ratings & Reviews

3.33

3 reviews

Reviews can be left only by registered users. All reviews are moderated by admins.

5 stars

1

4 stars

1

3 stars

0

2 stars

0

1 stars

1


नवीनतम संदेश 2

2023-06-29 14:14:25 .
फिर तो यह दिनचर्या बन गयी।मेडम हर सवाल का जवाब अपने आप बताती और फिर उसकी खूब सराहना तारीफ करतीं। प्रत्येक अच्छा उदाहरण राजू के कारण दिया जाने लगा । धीरे-धीरे पुराना राजू सन्नाटे की कब्र फाड़ कर बाहर आ गया। अब मेडम को सवाल के साथ जवाब बताने की जरूरत नहीं पड़ती। वह रोज बिना त्रुटि उत्तर देकर सभी को प्रभावित करता और नये नए सवाल पूछ कर सबको हैरान भी करता ।
.
उसके बाल अब कुछ हद तक सुधरे हुए होते, कपड़े भी काफी हद तक साफ होते जिन्हें शायद वह खुद धोने लगा था। देखते ही देखते साल समाप्त हो गया और राजू ने दूसरा स्थान हासिल कर कक्षा 5 वी पास कर लिया यानी अब दुसरी जगह स्कूल मे दाखिले के लिए तैयार था।
.
कक्षा 5 वी के विदाई समारोह में सभी बच्चे मेडम के लिये सुंदर उपहार लेकर आए और मेडम की टेबल पर ढेर लग गया । इन खूबसूरती से पैक हुए उपहारो में एक पुराने अखबार में बदतर सलीके से पैक हुआ एक उपहार भी पड़ा था। बच्चे उसे देखकर हंस रहे थे । किसी को जानने में देर न लगी कि यह उपहार राजू लाया होगा। मेडम ने उपहार के इस छोटे से पहाड़ में से लपक कर राजू वाले उपहार को निकाला। खोलकर देखा तो उसके अंदर एक महिलाओं द्वारा इस्तेमाल करने वाली इत्र की आधी इस्तेमाल की हुई शीशी और एक हाथ में पहनने वाला एक बड़ा सा कड़ा कंगन था जिसके ज्यादातर मोती झड़ चुके थे। मिस ने चुपचाप इस इत्र को खुद पर छिड़का और हाथ में कंगन पहन लिया। बच्चे यह दृश्य देखकर सब हैरान रह गए। खुद राजू भी। आखिर राजू से रहा न गया और मिस के पास आकर खड़ा हो गया। ।
.
कुछ देर बाद उसने अटक अटक कर मेडम को बोला "आज आप में से मेरी माँ जैसी खुशबू आ रही है।" इतना सुनकर मेडम के आखो मे आसू आ गये ओर मेडम ने राजू को अपने गले से लगा लिया
राजू अब दुसरी स्कूल मे जाने वाला था
राजू ने दुसरी जगह स्कूल मे दाखिले ले लिया था
समय बितने लगा।
दिन सप्ताह,
सप्ताह महीने और महीने साल में बदलते भला कहां देर लगती है?
मगर हर साल के अंत में मेडम को राजू से एक पत्र नियमित रूप से प्राप्त होता जिसमें लिखा होता कि "इस साल कई नए टीचर्स से मिला।। मगर आप जैसा मेडम कोई नहीं था।"
.
फिर राजू की पढ़ाई समाप्त हो गया और पत्रों का सिलसिला भी सम्माप्त । कई साल आगे गुज़रे और मेडम रिटायर हो गईं।
एक दिन मेडम के घर अपनी मेल में राजू का पत्र मिला जिसमें लिखा था:
"इस महीने के अंत में मेरी शादी है और आपके बिना शादी की बात मैं नहीं सोच सकता। एक और बात .. मैं जीवन में बहुत सारे लोगों से मिल चुका हूं।। आप जैसा कोई नहीं है.........आपका डॉक्टर राजू
.
पत्र मे साथ ही विमान का आने जाने का टिकट भी लिफाफे में मौजूद था।
मेडम खुद को हरगिज़ न रोक सकी। उन्होंने अपने पति से अनुमति ली और वह राजू के शहर के लिए रवाना हो गईं। शादी के दिन जब वह शादी की जगह पहुंची तो थोड़ी लेट हो चुकी थीं।
.
उन्हें लगा समारोह समाप्त हो चुका होगा.. मगर यह देखकर उनके आश्चर्य की सीमा न रही कि शहर के बड़े डॉक्टर , बिजनेसमैन और यहां तक कि वहां पर शादी कराने वाले पंडितजी भी थक गये थे. कि आखिर कौन आना बाकी है...मगर राजू समारोह में शादी के मंडप के बजाय गेट की तरफ टकटकी लगाए उनके आने का इंतजार कर रहा था। फिर सबने देखा कि जैसे ही एक बुड्ढी ओरत ने गेट से प्रवेश किया राजू उनकी ओर लपका और उनका वह हाथ पकड़ा जिसमें उन्होंने अब तक वह कड़ा पहना हुआ था कंगन पहना हुआ था और उन्हें सीधा मंच पर ले गया।
.
राजू ने माइक हाथ में पकड़ कर कुछ यूं बोला "दोस्तों आप सभी हमेशा मुझसे मेरी माँ के बारे में पूछा करते थे और मैं आप सबसे वादा किया करता था कि जल्द ही आप सबको उनसे मिलाउंगा।।।........
ध्यान से देखो यह यह मेरी प्यारी सी मा दुनिया की सबसे अच्छी है यह मेरी मा यह मेरी माँ हैं -
.
!! प्रिय दोस्तों.... इस सुंदर कहानी को सिर्फ शिक्षक और शिष्य के रिश्ते के कारण ही मत सोचिएगा । अपने आसपास देखें, राजू जैसे कई फूल मुरझा रहे हैं जिन्हें आप का जरा सा ध्यान, प्यार और स्नेह नया जीवन दे सकता है...........
6.5K views11:14
ओपन / कमेंट
2023-06-29 14:14:24 पत्थर दिल वाला ही होगा जो इस कहानी को पढ़ने के बाद आंखो में आंसू ना आए

एक प्राथमिक स्कूल मे अंजलि नाम की एक शिक्षिका थीं वह कक्षा 5 की क्लास टीचर थी, उसकी एक आदत थी कि वह कक्षा मे आते ही हमेशा "लव यु आल" बोला करतीं थी।
.
मगर वह जानती थीं कि वह सच नहीं बोल रही ।
वह कक्षा के सभी बच्चों से एक जैसा प्यार नहीं करती थीं।
कक्षा में एक ऐसा बच्चा था जो उनको फटी आंख भी नहीं भाता था। उसका नाम राजू था। राजू मैली कुचेली स्थिति में स्कूल आ जाया करता है। उसके बाल खराब होते, जूतों के बन्ध खुले, शर्ट के कॉलर पर मेल के निशान । पढ़ाई के दौरान भी उसका ध्यान कहीं और होता था।
.
मेडम के डाँटने पर वह चौंक कर उन्हें देखता, मगर उसकी खाली खाली नज़रों से साफ पता लगता रहता.कि राजू शारीरिक रूप से कक्षा में उपस्थित होने के बावजूद भी मानसिक रूप से गायब हे यानी (प्रजेंट बाडी अफसेटं माइड) .धीरे धीरे मेडम को राजू से नफरत सी होने लगी। क्लास में घुसते ही राजू मेडम की आलोचना का निशाना बनने लगता। सब बुराई उदाहरण राजू के नाम पर किये जाते. बच्चे उस पर खिलखिला कर हंसते.और मेडम उसको अपमानित कर के संतोष प्राप्त करतीं।
राजू ने हालांकि किसी बात का कभी कोई जवाब नहीं दिया था।
.
मेडम को वह एक बेजान पत्थर की तरह लगता जिसके अंदर आत्मा नाम की कोई चीज नहीं थी। प्रत्येक डांट, व्यंग्य और सजा के जवाब में वह बस अपनी भावनाओं से खाली नज़रों से उन्हें देखा करता और सिर झुका लेता। मेडम को अब इससे गंभीर नफरत हो चुकी थी।
.
पहला सेमेस्टर समाप्त हो गया और प्रोग्रेस रिपोर्ट बनाने का चरण आया तो मेडम ने राजू की प्रगति रिपोर्ट में यह सब बुरी बातें लिख मारी । प्रगति रिपोर्ट माता पिता को दिखाने से पहले हेड मास्टर के पास जाया करती थी। उन्होंने जब राजू की प्रोग्रेस रिपोर्ट देखी तो मेडम को बुला लिया। "मेडम प्रगति रिपोर्ट में कुछ तो राजू की प्रगति भी लिखनी चाहिए। आपने तो जो कुछ लिखा है इससे राजू के पिता इससे बिल्कुल निराश हो जाएंगे।" मेडम ने कहा "मैं माफी माँगती हूँ, लेकिन राजू एक बिल्कुल ही अशिष्ट और निकम्मा बच्चा है । मुझे नहीं लगता कि मैं उसकी प्रगति के बारे में कुछ लिख सकती हूँ। "मेडम घृणित लहजे में बोलकर वहां से उठ कर चली गई स्कूल की छुट्टी हो गई आज तो ।
.
अगले दिन हेड मास्टर ने एक विचार किया ओर उन्होंने चपरासी के हाथ मेडम की डेस्क पर राजू की पिछले वर्षों की प्रगति रिपोर्ट रखवा दी । अगले दिन मेडम ने कक्षा में प्रवेश किया तो रिपोर्ट पर नजर पड़ी। पलट कर देखा तो पता लगा कि यह राजू की रिपोर्ट हैं। " मेडम ने सोचा कि पिछली कक्षाओं में भी राजू ने निश्चय ही यही गुल खिलाए होंगे।" उन्होंने सोचा और कक्षा 3 की रिपोर्ट खोली। रिपोर्ट में टिप्पणी पढ़कर उनकी आश्चर्य की कोई सीमा न रही जब उन्होंने देखा कि रिपोर्ट उसकी तारीफों से भरी पड़ी है। "राजू जैसा बुद्धिमान बच्चा मैंने आज तक नहीं देखा।" "बेहद संवेदनशील बच्चा है और अपने मित्रों और शिक्षक से बेहद लगाव रखता है।" "
.
यह लिखा था
अंतिम सेमेस्टर में भी राजू ने प्रथम स्थान प्राप्त कर लिया है। "मेडम ने अनिश्चित स्थिति में कक्षा 4 की रिपोर्ट खोली।" राजू ने अपनी मां की बीमारी का बेहद प्रभाव लिया। .उसका ध्यान पढ़ाई से हट रहा है। "" राजू की माँ को अंतिम चरण का कैंसर हुआ है। । घर पर उसका और कोई ध्यान रखनेवाला नहीं है.जिसका गहरा प्रभाव उसकी पढ़ाई पर पड़ा है।
.
" लिखा था
निचे हेड मास्टर ने लिखा कि राजू की माँ मर चुकी है और इसके साथ ही राजू के जीवन की चमक और रौनक भी। । उसे बचाना होगा...इससे पहले कि बहुत देर हो जाए। " यह पढ़कर मेडम के दिमाग पर भयानक बोझ हावी हो गया। कांपते हाथों से उन्होंने प्रगति रिपोर्ट बंद की । मेडम की आखो से आंसू एक के बाद एक गिरने लगे. मेडम ने साङी से अपने आंसू पोछे
अगले दिन जब मेडम कक्षा में दाख़िल हुईं तो उन्होंने अपनी आदत के अनुसार अपना पारंपरिक वाक्यांश "आई लव यू ऑल" दोहराया।
.
मगर वह जानती थीं कि वह आज भी झूठ बोल रही हैं। क्योंकि इसी क्लास में बैठे एक उलझे बालों वाले बच्चे राजू के लिए जो प्यार वह आज अपने दिल में महसूस कर रही थीं..वह कक्षा में बैठे और किसी भी बच्चे से अधिक था ।
पढ़ाई के दौरान उन्होंने रोजाना दिनचर्या की तरह एक सवाल राजू पर दागा और हमेशा की तरह राजू ने सिर झुका लिया। जब कुछ देर तक मेडम से कोई डांट फटकार और सहपाठी सहयोगियों से हंसी की आवाज उसके कानों में न पड़ी तो उसने अचंभे में सिर उठाकर मेडम की ओर देखा। अप्रत्याशित उनके माथे पर आज बल न थे, वह मुस्कुरा रही थीं। उन्होंने राजू को अपने पास बुलाया और उसे सवाल का जवाब बताकर जबरन दोहराने के लिए कहा। राजू तीन चार बार के आग्रह के बाद अंतत:बोल ही पड़ा। इसके जवाब देते ही मेडम ने न सिर्फ खुद खुशान्दाज़ होकर तालियाँ बजाईं बल्कि सभी बच्चो से भी बजवायी..
5.9K views11:14
ओपन / कमेंट
2023-06-28 19:13:41 मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर आपको धन्यवाद दे सकूं।"

जब नाइजीरियाई अरबपति फेमी ओटेडोला से एक टेलीफोन साक्षात्कार में रेडियो प्रस्तोता ने पूछा, "सर, आपको क्या याद है जिसने आपको जीवन में सबसे खुश व्यक्ति बनाया?"

फेमी ने कहा:
"मैं जीवन में खुशी के चार चरणों से गुजरा हूं और आखिरकार मुझे सच्ची खुशी का मतलब समझ में आया।"

पहला चरण धन और साधन संचय करना था। लेकिन इस स्टेज पर मुझे वो ख़ुशी नहीं मिली जो मैं चाहता था।

फिर कीमती सामान और वस्तुएं इकट्ठा करने का दूसरा चरण आया। लेकिन मुझे एहसास हुआ कि इस चीज़ का असर भी अस्थायी होता है और क़ीमती चीज़ों की चमक ज़्यादा देर तक नहीं रहती।

फिर आया तीसरा पड़ाव बड़े प्रोजेक्ट मिलने का. वह तब था जब नाइजीरिया और अफ्रीका में डीजल आपूर्ति का 95% हिस्सा मेरे पास था। मैं अफ़्रीका और एशिया में सबसे बड़ा जहाज़ मालिक भी था। लेकिन यहां भी मुझे वो ख़ुशी नहीं मिली जिसकी मैंने कल्पना की थी।

चौथा चरण वह समय था जब मेरे एक मित्र ने मुझसे कुछ विकलांग बच्चों के लिए व्हीलचेयर खरीदने के लिए कहा। बस लगभग 200 बच्चे। मित्र के अनुरोध पर, मैंने तुरंत व्हीलचेयर खरीद ली। लेकिन दोस्त ने जिद की कि मैं उसके साथ जाऊं और व्हीलचेयर बच्चों को सौंप दूं। मैं तैयार होकर उसके साथ चला गया।

वहां मैंने अपने हाथों से इन बच्चों को ये व्हील चेयर दी। मैंने इन बच्चों के चेहरे पर खुशी की एक अजीब सी चमक देखी। मैंने उन सभी को व्हीलचेयर पर बैठे, घूमते और मौज-मस्ती करते देखा। ऐसा लग रहा था मानों वे किसी पिकनिक स्थल पर पहुंचे हों जहां वे जैकपॉट जीतकर साझा कर रहे हों।

मुझे अपने अंदर वास्तविक खुशी महसूस हुई। जब मैंने जाने का फैसला किया तो एक बच्चे ने मेरा पैर पकड़ लिया। मैंने धीरे से अपने पैरों को छुड़ाने की कोशिश की लेकिन बच्चे ने मेरे चेहरे को घूरकर देखा और मेरे पैरों को कसकर पकड़ लिया।

मैंने झुककर बच्चे से पूछा: क्या तुम्हें कुछ और चाहिए? इस बच्चे ने मुझे जो उत्तर दिया उससे न केवल मुझे खुशी हुई बल्कि जीवन के प्रति मेरा नजरिया भी पूरी तरह बदल गया।

इस बच्चे ने कहा: "मैं आपका चेहरा याद रखना चाहता हूं ताकि जब मैं आपसे स्वर्ग में मिलूं तो मैं आपको पहचान सकूं और एक बार फिर आपको धन्यवाद दे सकूं।" उस कार्यालय या स्थान को छोड़ने के बाद आपको किस लिए याद किया जाएगा?

क्या कोई आपका चेहरा फिर से देखना चाहेगा जहां यह सब मायने रखता है? यह अवश्य पढ़ा जाने वाला अंश है. इसने मुझे सोचने पर मजबूर कर दिया। मैं इसे अपने सभी दोस्तों को भेज रहा हूं. मैं प्रार्थना करता हूं कि यह सभी के साथ ऐसा ही हो।
6.0K views16:13
ओपन / कमेंट
2023-06-28 09:47:54 एक पिता पुत्र साथ-साथ टहलने निकले, वे दूर खेतों की तरफ निकल आये, तभी पुत्र ने देखा कि रास्ते में, पुराने हो चुके एक जोड़ी जूते उतरे पड़े हैं, जो संभवतः पास के खेत में काम कर रहे गरीब मजदूर के थे।

पुत्र लक्ष्मी कांत को मजाक सूझा उसने पिता से कहा - क्यों न आज की शाम को थोड़ी शरारत से यादगार बनायें, आखिर मस्ती ही तो आनन्द का सही स्रोत है। पिता ने असमंजस से बेटे की ओर देखा।

पुत्र बोला - हम ये जूते कहीं छुपा कर झाड़ियों के पीछे छुप जाएं। जब वो मजदूर इन्हें यहाँ नहीं पाकर घबराएगा तो बड़ा मजा आएगा। उसकी तलब देखने लायक होगी, और इसका आनन्द मैं जीवन भर याद रखूंगा।

पिता, पुत्र की बात को सुन गम्भीर हुये और बोले - बेटा !

किसी गरीब और कमजोर के साथ उसकी जरूरत की वस्तु के साथ इस तरह का भद्दा मजाक कभी न करना।

जिन चीजों की तुम्हारी नजरों में कोई कीमत नहीं, वो उस गरीब के लिये बेशकीमती हैं। तुम्हें ये शाम यादगार ही बनानी है, तो आओ आज हम इन जूतों में कुछ सिक्के डाल दें और छुप कर देखें कि इसका मजदूर पर क्या प्रभाव पड़ता है।

पिता ने ऐसा ही किया और दोनों पास की ऊँची झाड़ियों में छुप गए।

मजदूर जल्द ही अपना काम ख़त्म कर जूतों की जगह पर आ गया। उसने जैसे ही एक पैर जूते में डाले उसे किसी कठोर चीज का आभास हुआ, उसने जल्दी से जूते हाथ में लिए और देखा कि अन्दर कुछ सिक्के पड़े थे। उसे बड़ा आश्चर्य हुआ और वो सिक्के हाथ में लेकर बड़े गौर से उन्हें देखने लगा।

फिर वह इधर-उधर देखने लगा कि उसका मददगार शख्स कौन है ? दूर-दूर तक कोई नज़र नहीं आया, तो उसने सिक्के अपनी जेब में डाल लिए। अब उसने दूसरा जूता उठाया, उसमें भी सिक्के पड़े थे। मजदूर भाव विभोर हो गया।

वो घुटनो के बल जमीन पर बैठ आसमान की तरफ देख फूट-फूट कर रोने लगा। वह हाथ जोड़ बोला - हे भगवान् ! आज आप ही किसी रूप में यहाँ आये थे,

समय पर प्राप्त इस सहायता के लिए आपका और आपके माध्यम से जिसने भी ये मदद दी, उसका लाख- लाख धन्यवाद। आपकी सहायता और दयालुता के कारण आज मेरी बीमार पत्नी को दवा और भूखे बच्चों को रोटी मिल सकेगी। तुम बहुत दयालु हो प्रभु ! आपका कोटि-कोटि धन्यवाद।

मजदूर की बातें सुन, बेटे की आँखें भर आयीं। पिता ने पुत्र को सीने से लगाते हुयेे कहा - क्या तुम्हारी मजाक मजे वाली बात से जो आनन्द तुम्हें जीवन भर याद रहता उसकी तुलना में इस गरीब के आँसू और दिए हुये आशीर्वाद तुम्हें जीवन पर्यंत जो आनन्द देंगे वो उससे कम है, क्या ?

पिताजी.. आज आपसे मुझे जो सीखने को मिला है, उसके आनंद को मैं अपने अंदर तक अनुभव कर रहा हूँ। अंदर में एक अजीब सा सुकून है। आज के प्राप्त सुख और आनन्द को मैं जीवन भर नहीं भूलूँगा।

आज मैं उन शब्दों का मतलब समझ गया, जिन्हें मैं पहले कभी नहीं समझ पाया था। आज तक मैं मजा और मस्ती-मजाक को ही वास्तविक आनन्द समझता था, पर आज मैं समझ गया हूँ कि, लेने की अपेक्षा देना कहीं अधिक आनंददायी है।
6.7K views06:47
ओपन / कमेंट
2023-06-26 09:47:59 एक बादशाह अपने कुत्ते के साथ नाव में यात्रा कर रहा था।

उस नाव में अन्य यात्रियों के साथ एक दार्शनिक भी था।

कुत्ते ने कभी नौका में सफर नहीं किया था, इसलिए वह अपने को सहज महसूस नहीं कर पा रहा था।

वह उछल-कूद कर रहा था और किसी को चैन से नहीं बैठने दे रहा था।

मल्लाह उसकी उछल-कूद से परेशान था कि ऐसी स्थिति में यात्रियों की हड़बड़ाहट से नाव डूब जाएगी।

वह भी डूबेगा और दूसरों को भी ले डूबेगा।

परन्तु कुत्ता अपने स्वभाव के कारण उछल-कूद में लगा था।

ऐसी स्थिति देखकर बादशाह भी गुस्से में था, पर कुत्ते को सुधारने का कोई उपाय उन्हें समझ में नहीं आ रहा था।

नाव में बैठे दार्शनिक से रहा नहीं गया।

वह बादशाह के पास गया और बोला : "सरकार। अगर आप इजाजत दें तो मैं इस कुत्ते को भीगी बिल्ली बना सकता हूँ।"

बादशाह ने तत्काल अनुमति दे दी।

दार्शनिक ने दो यात्रियों का सहारा लिया और उस कुत्ते को नाव से उठाकर नदी में फेंक दिया।

कुत्ता तैरता हुआ नाव के खूंटे को पकड़ने लगा।

उसको अब अपनी जान के लाले पड़ रहे थे।

कुछ देर बाद दार्शनिक ने उसे खींचकर नाव में चढ़ा लिया।

वह कुत्ता चुपके से जाकर एक कोने में बैठ गया।

नाव के यात्रियों के साथ बादशाह को भी उस कुत्ते के बदले व्यवहार पर बड़ा आश्चर्य हुआ।

बादशाह ने दार्शनिक से पूछा : "यह पहले तो उछल-कूद और हरकतें कर रहा था। अब देखो, कैसे यह पालतू बकरी की तरह बैठा है ?"

दार्शनिक बोला : "खुद तकलीफ का स्वाद चखे बिना किसी को दूसरे की विपत्ति का अहसास नहीं होता है। इस कुत्ते को जब मैंने पानी में फेंक दिया तो इसे पानी की ताकत और नाव की उपयोगिता समझ में आ गयी।"
7.5K views06:47
ओपन / कमेंट
2023-06-24 09:07:06
9.2K views06:07
ओपन / कमेंट
2023-06-22 05:05:57 papa

आज मेरी ऑफिस की छुट्टी थी। माँ किचन सम्भाल रही थी और छोटी अपने MBA के अंतिम सेमेस्टर की एक्जाम की तैयारी में लगी थी। पापा आगे बैठक में पेपर पढ़ रहे थे, और मैं दीवाली की साफ सफाई में लगी थी।

साफ सफाई करते हुए, हाथ में एक पुरानी अल्बम आ गई।
अल्बम चीज ही ऐसी होती है कि जब हाथ मे आये तब खोल के देखने का मन हो ही जाता है। एक एक पन्ने को पलटने के साथ ही मैं अपनी जिंदगी के बीते हुए एक एक अध्याय में जा रही थी।

छोटी, दादा-दादी, चाचा, बुआ, मम्मी और मेरे कई सारे फ़ोटो थे। कितनी यादें बसी थीं इन फोटोज़ में। चेहरे पर मुस्कान आ गई। मोबाइल नही थे तब, तो यादों को सहेजने के लिए अल्बम ही एक सहारा होता था।

में उन्ही यादों को एक एक कर पलट रही थीं ।सबके बहुत फ़ोटो थे, किंतु पापा के दो चार ही फ़ोटो थे। मम्मी कहती थी कि ,"पापा को फ़ोटो खिंचाने का शौक नही !" बस इसी बात पर कभी कभी पापा और मम्मी की छोटी मोटी तकरार हो जाती थी।

पापा की एक फोटो पर मेरी नजरें ठहर गईं। दीवाली की शाम का फोटो था। यह हमारा फैमिली फ़ोटो था। दादा-दादी, मम्मी पापा चाचा,बुआ और हम दोनों बहने। हाथों में फुलझड़ी पकड़े हुए हमारे चेहरे जगमगा रहे थे। मैंने ओर छोटी ने जो फ्रॉक पहनी थी वो पापा उसी दिन दिलाकर लाये थे।
वह दिन मेरी आँखों मे जीवंत हो गए। दीवाली के कुछ दिनों पहले से ही रट लगानी शुरू कर दी थी मैंने और छोटी ने।
"पापा..हम कपड़े लेने कब जाएंगे? "
"जाएंगे, बेटा जाएंगे! बताओ क्या चाहिए? "
"मुझे फ्रिल वाली फ्रॉक चाहिए!"मैने कहा।
"और मुझे स्कर्टटॉप!" छोटी तपाक से बोली थी।
"मुझे फ्रॉक के साथ सैंडल और हैरबेंड भी चाहिए"
"पापा मुझे भी सैंडल और हैरबेंड चाहिए।"
"लाएंगे लाएंगे...सबके लिए लाएंगे। पापा ने बुआ और चाचा की तरफ भी देखते हुए बोला था। दोनों के चेहरे पर मुस्कान छा गई थी।
उस दिन रात को मां और पापा के बीच कुछ बहस सी हुई थी।
"जादूगर हो क्या आप!!"
"हर पिता एक जादूगर ही तो होता है सुमन। तुम चिंता मत करो। मैं सब कर लूंगा।"
"पर इस बार खुद के लिए कुर्ता पायजामा लेने.....
"ले लूंगा सुमन। अगले साल ले लूंगा।"
"पिछले साल मेरी साड़ी लेते समय भी आपने यही कहा था।"
"मुझे याद है,"
"और ये जूते... कितनी बार सिलाई लगवाओगे??"
"सुमन ...मेने कहा न चिंता मत करो।"

माँ चुप हो गई थी। पर मेरे बाल मन में पापा की बात बार बार गूंजती थी कि एक पिता जादूगर ही तो होता है। बस मेरे लिए मेरे पापा जादूगर ही तो थे।

आखिर पापा हमें बाजार ले ही गए थे और पसन्द की सारी चीजें दिलाकर लाये थे। कितनी यादगार दीवाली बन गई थी वो। शाम को हम दोनों बहनें नए कपड़ों में इठला रही थीं और बुआ और चाचा भी। ये फोटो उसी शाम का था। पर....पर पापा का फोटो देखकर ख्याल आया कि पापा ने तो वही कुर्ता पायजामा पहना हुआ था जो उन्होंने रक्षा बंधन वाले फ़ोटो में भी पहना हुआ था जो कि शायद दो या तीन साल पुराना फ़ोटो था। क्योंकि बुआ तो दीवाली वाले फ़ोटो में बड़ी दिख रही थी और रक्षा बंधन वाले फ़ोटो में छोटी। अगला फ़ोटो बुआ की सगाई का था। यहाँ भी पापा ने वही कुर्ता पायजामा पहना हुआ था।

पापा के कुल मिलाकर पांच-सात फ़ोटो थे और उसमें से ज्यादातर में वो एक ही कुर्ते पायजामें में दिख रहे थे। आज मुझे एहसास हुआ कि मम्मी क्यो उस दिन पापा को बोली थी कि,"कोई जादूगर हो क्या आप!! आज समझ मे आ रहा कि क्यों पापा फ़ोटो नही खिंचाते थे। शौक नही होना, कारण नही था बल्कि एक ही जोड़ी कुर्ता पायजामा होना शायद पापा के फोटो न खिंचवाने का कारण था। सामान्य दिनों में पापा पेंट शर्ट पहनते थे वो भी शायद 4 या 5 जोड़ी होंगे, और खास दिन या त्योहार पर विशेष रूप से कुर्ता पायजामा ही पहनते थे। मतलब पापा के उस एक जोड़ी कुर्ते पायजामे ने हमारी न जाने कितनी ख्वाहिशें पूरी करी थीं। उनके सिलाई लगे जूते मेरी आँखों मे रह रहकर उभरने लगे। माँ और दादी अक्सर जूतों के लिए टोकती रहती थी। और पापा हंसकर कहते थे कि देखो तो कितने आरामदायक हैं। उन जूतों ने हमारी सेंडल की लालसा को कितनी आसानी से पूरा कर दिया था।

मेरी आँखें आंसुओं से भर गई। में रोये जा रही थी। होंश सम्भालने के बाद कि तो पापा की हर बात समझ में आती थी किंतु आज यादें अहसास कराती हैं कि बचपन में पापा सच मे जादूगर ही लगते थे।
"बिट्टो जरा चाय तो बना दे बेटा।"
"आई पापा.."..कहकर मैं रसोई की और चल दी। मेरे जादूगर के लिए चाय बनाने। मन में एक ही गाना गुनगुना रही थी..सबसे प्यारा कौन है...पापा मेरे पापा।।
10.9K views02:05
ओपन / कमेंट
2023-06-21 16:12:25
8.6K views13:12
ओपन / कमेंट
2023-06-20 14:45:42 नौकरी संबंधित कार्य से लगभग हर रोज दिल्ली जाना होता है। वापसी पर मुरथल के एक ढाबे पर रात्रिभोज हेतु रुकता हूं।
खाने का मेन्यू सेट है।
हाफ दाल
3 रोटी
1 प्लेट सलाद
2 कटोरी सफेद मक्खन
........और आखिर में खीर।

लगभग हर रोज एक व्यक्ति मेरी टेबल पर आता है।
मैं उसे वही मेन्यू बताता हूं।
बीते कुछ दिनों से वह मुझसे पूछने की जहमत भी नहीं करता।

मैं बैठता हूं .......सलाद परोस देता है और फिर एक एक कर बाकी सामग्री ले आता है।

कल रात मैं ढाबे पर आ कर बैठा।
चिरपरिचित बंधु जो हर रोज ऑर्डर लेता था वह कहीं दिखाई ना दिया।

मेरी नजरें उसे तालाश रही थी। इतने में एक नौजवान लड़का टेबल पर आया और बोला " भोला भईया नहीं आए हैं सर। उनका तबियत खराब था।"

मुझे नहीं पता था की जिस व्यक्ति को मैं रोज खाने का ऑर्डर देता हूं उसका नाम "भोला" है।

"आपका क्या नाम है ? " मैंने सामने खड़े नवयुवक से पूछा।

"हमारा नाम आकास है।" उसने फट से जवाब दिया।

मुरथल के ढाबों पर अधिकतर कर्मचारी बिहारी हैं।
नवयुवक का आका"श" को आका"स" कहना मुझे खला नहीं।
लड़का टिप टॉप था। सधी हुई कद काठी। तेल से चुपड़े कंघी किए हुए बाल।

सबसे बड़ी बात उसके जूते चमक रहे थे। लग रहा था की पालिश किए गए हैं।

मैंने अपना मैन्यू बताने की शुरुआत की ही थी की उसने मेरी बात काटते हुए कहा......पता है सर। हरा सलाद.... दाल .....मक्खन ....रोटी....खीर।
मैंने उसकी ओर देखा.....मुस्कुराया .....और कहा....." पता है तो ले आईए। भूख के मारे जान निकल रही है।"
वह किचन की ओर चला गया।

कुछ ही समय बाद वापिस आया।
बोला ....." सर। डोंट माइंड। एक बैटर ऑप्शन है।"
मैं एक क्षण ....... अवाक रह गया।

डोंट माइंड .......बैटर ऑप्शन......मेरे समाने ढाबे का एक वेटर खड़ा था या किसी मैनेजमेंट इंस्टिट्यूट से एम बी ए मेनेजर खड़ा था।
शक्ल देख कर तो लग ना रहा था की ऊन्ने अंग्रेजी का ए भी आता होगा।

मैं हतप्रभ था।

" क्या बैटर ऑप्शन है सर।" मैंने व्यंगतामक लहजे में पूछा।
लडके ने मेन्यू कार्ड उठाया। बोला ......." आप वेज थाली लीजिए सर। इसमें दाल है। दो सब्जी है। पुलाव है। सलाद है अउर मीठा मैं खीर भी है .......और सर ......ये थाली आपको आपका मेन्यू के मुकाबले बीस परसेंट सस्ता पड़ेगा।" लड़का एक सांस में कह गया।

पहले ......."डोंट माइंड ......बैटर ऑप्शन ".....यानी अंग्रेजी .....और फिर "20 परसेंट" यानी मैथेमेटिक्स।

अबे कौन है ये लड़का।

ध्यान से देखा तो वाकई बिल में बीस परसेंट का अंतर भी था।
उम्र के 42 बसंत देख चुका हूं।।
खत पढ़ लेता हूं मजमू .....लिफाफा खोले बिना।

"क्या करते हो?" मैंने प्रश्नवाचक निगाहों से उससे पूछा।

"यहीं काम करते हैं।" उसने जवाब दिया।

"इसके अलावा क्या करते हो? " मैंने पूछा।

" UPSC की तैयारी कर रहे हैं सर। दिन में दिल्ली रहते हैं। ढाबा पर नाइट ड्यूटी करता हूं।" आत्मविश्वास भरी आवाज़ में उसने जवाब दिया।

" बैटर ऑप्शन ले आओ।" मैंने मुस्कुराते हुए कहा।

खाना खाया। बिल टेबल पर था और आकाश......नहीं नहीं ..... आका"स" समाने खड़ा था।

एक लम्बे अर्से बाद मैंने किसी वेटर को टिप नहीं दी।

वह टिप देने लायक व्यक्ति नहीं था।

मेरे पास पार्कर का एक पेन था। मैंने उसकी शर्ट की जेब में वह पेन लगा दिया।
उसकी आंखों की चमक देखने लायक थी।

एक वर्ग है.......जो बेशक घोर गरीबी में जी रहा है। दाने दाने का मोहताज है। रोज कुआं खोद रोज पानी पी रहा है......लेकिन फिर भी अपने लिए .........बैटर ऑप्शन खोज रहा है।
बेहतर विकल्प खोज रहा है। यह वर्ग दिन में किताबों में मुंह दिए सपनों की लड़ाई लड़ रहा है और रात में ढाबे पर खाना परोसता सर्वाइवल की लड़ाई लड़ रहा है।

........और जीतता भी यही वर्ग है क्योंकि इसके पास हारने को .....कुछ भी नहीं है और जीतने को पूरी दुनिया,,,,,

मैं कल रात भविष्य के एक #प्रशासनिक_अधिकारी को पेन भेंट कर आया हूं।
परिस्थिति जितनी भी विकट हो संघर्ष जारी रखना ही ......."बैटर ऑप्शन" है।

Copy
10.3K views11:45
ओपन / कमेंट
2023-06-09 06:37:15 आपने मुझे पहली मुलाकात में प्रकृति का नियम बताया था... जिसके अनुसार हमें तभी कुछ मिलता है, जब हम कुछ देते हैं। लेन देन का यह नियम वास्तव में काम करता है, मैंने यह बहुत अच्छी तरह महसूस किया है, लेकिन मैं खुद को हमेशा भिख़ारी ही समझता रहा, इससे ऊपर उठकर मैंने कभी सोचा ही नहीं था और जब आपसे मेरी दूसरी मुलाकात हुई तब आपने मुझे बताया कि मैं एक व्यापारी बन चुका हूँ। अब मैं समझ चुका था कि मैं वास्तव में एक भिखारी नहीं बल्कि व्यापारी बन चुका हूँ।

*भारतीय मनीषियों ने संभवतः इसीलिए स्वयं को जानने पर सबसे अधिक जोर दिया और फिर कहा -*

सोऽहं
शिवोहम !!

समझ की ही तो बात है...
*भिखारी ने स्वयं को जब तक भिखारी समझा, वह भिखारी रहा | उसने स्वयं को व्यापारी मान लिया, व्यापारी बन गया |*
जिस दिन हम समझ लेंगे कि मैं कौन हूँ...
*अर्थात मैं भगवान का अंश हूॅ।*
फिर जानने समझने को रह ही क्या जाएगा ?
5.2K views03:37
ओपन / कमेंट