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🪷 आज की प्रेरणा 🪷

टेलीग्राम चैनल का लोगो todaysinspiration — 🪷 आज की प्रेरणा 🪷
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चैनल का पता: @todaysinspiration
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हमारे द्वारा भेजे गए संदेशों के माध्यम से लोगो में उत्साह, उमंग, आत्मविश्वास व विवेक जाग्रत कराना है!

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नवीनतम संदेश 9

2022-01-14 04:04:11 दिनांक:- १४ जनवरी २०२२
वार:- शुक्रवार
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आज का सुविचार
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❝जो अपने मन पर नियंत्रण नहीं
रखता वह स्वयं का शनै शनै शत्रु
बनता जाता है।❞
— श्री कृष्ण

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आज का दिनविशेष
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सन १९४७ में ब्लैकडेलिया की हत्या कर
दी गई।

𝐉𝐨𝐢𝐧 @TodaysInspiration

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360 viewsAryan | आर्यन, edited  01:04
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2021-12-28 17:25:41 सफलता का मूल मंत्र


– प्रगति के पाँच आधार

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अरस्तू ने एक शिष्य द्वारा उन्नति का मार्ग
पूछे जाने पर उसे पाँच बातें बताई।


१) अपना दायरा बढ़ाओ, संकीर्ण स्वार्थ परता से आगे बढ़कर सामाजिक बनो।

२) आज की उपलब्धियों पर संतोष करो और भावी प्रगति की आशा करो।

३) दूसरों के दोष ढूँढ़ने में शक्ति खर्च न करके अपने को ऊँचा उठाने के प्रयास में लगे रहो।

४) कठिनाई को देख कर न चिन्ता करो न निराश होओ वरन् धैर्य और साहस के साथ उसके निवारण का उपाय करने में जुट जाओ।

५) हर किसी में अच्छाई खोजो और उससे कुछ सीख कर अपना ज्ञान और अनुभव बढ़ाओ। इन पाँच आधारों पर ही कोई व्यक्ति उन्नति के उच्च शिखर पर पहुँच सकता है।

𝐉𝐨𝐢𝐧 https://t.me/joinchat/P8V1w16n4D81MTQ1

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98 viewsAryan | आर्यन, 14:25
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2021-12-28 13:13:04 ◆∆◆ ◆∆ ∆◆ ◆∆◆
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128 viewsList-2, 10:13
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2021-12-28 05:28:15


!! कहानी जीवन की !!


– अभ्यास का महत्त्व

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प्राचीन समय में विद्यार्थी गुरुकुल में रहकर ही पढ़ा करते थे। बच्चे को शिक्षा ग्रहण करने के लिए गुरुकुल में भेजा जाता था।

बच्चे गुरुकुल में गुरु के सानिध्य में आश्रम की देखभाल किया करते थे और अध्ययन भी किया करते थे।
वरदराज को भी सभी की तरह गुरुकुल भेज दिया गया।

वहां आश्रम में अपने साथियों के साथ घुलने मिलने लगा।
लेकिन वह पढ़ने में बहुत ही कमजोर था।

गुरुजी की कोई भी बात उसके बहुत कम समझ में आती थी। इस कारण सभी के बीच वह उपहास का कारण बनता है।

उसके सारे साथी अगली कक्षा में चले गए लेकिन वो आगे नहीं बढ़ पाया।
गुरुजी जी ने भी आखिर हार मानकर उसे बोला, “बेटा वरदराज! मैने सारे प्रयास करके देख लिये है।

अब यही उचित होगा कि तुम यहां अपना समय बर्बाद मत करो।

अपने घर चले जाओ और घरवालों की काम में मदद करो।”

वरदराज ने भी सोचा कि शायद विद्या मेरी किस्मत में नहीं हैं। और भारी मन से गुरुकुल से घर के लिए निकल गया गया।

दोपहर का समय था। रास्ते में उसे प्यास लगने लगी।

इधर उधर देखने पर उसने पाया कि थोड़ी दूर पर ही कुछ महिलाएं कुएं से पानी भर रही थी। वह कुवे के पास गया।

वहां पत्थरों पर रस्सी के आने जाने से निशान बने हुए थे,तो उसने महिलाओ से पूछा, “यह निशान आपने कैसे बनाएं।”
तो एक महिला ने जवाब दिया, “बेटे यह निशान हमने नहीं बनाएं। यह तो पानी खींचते समय इस कोमल रस्सी के बार बार आने जाने से ठोस पत्थर पर भी ऐसे निशान बन गए हैं।”
वरदराज सोच में पड़ गया।

उसने विचार किया कि जब एक कोमल से रस्सी के बार-बार आने जाने से एक ठोस पत्थर पर गहरे निशान बन सकते हैं तो निरंतर अभ्यास से में विद्या ग्रहण क्यों नहीं कर सकता।

वरदराज ढेर सारे उत्साह के साथ वापस गुरुकुल आया और अथक कड़ी मेहनत की।

गुरुजी ने भी खुश होकर भरपूर सहयोग किया।
कुछ ही सालों बाद यही मंदबुद्धि बालक वरदराज आगे चलकर संस्कृत व्याकरण का महान विद्वान बना। जिसने लघुसिद्धान्‍तकौमुदी, मध्‍यसिद्धान्‍तकौमुदी, सारसिद्धान्‍तकौमुदी, गीर्वाणपदमंजरी की रचना की।

शिक्षा:- दोस्तो अभ्यास की शक्ति का तो कहना ही क्या हैं। यह आपके हर सपने को पूरा करेगी। अभ्यास बहुत जरूरी है चाहे वो खेल मे हो या पढ़ाई में या किसी ओर चीज़ में। बिना अभ्यास के आप सफल नहीं हो सकते हो।
अगर आप बिना अभ्यास के केवल किस्मत के भरोसे बैठे रहोगे, तो आखिर मैं आपको पछतावे के सिवा और कुछ हाथ नहीं लगेगा। इसलिए अभ्यास के साथ धैर्य, परिश्रम और लगन रखकर आप अपनी मंजिल को पाने के लिए जुट जाए।

सुप्रभात
!! शुभ मंगलवार !!
ॐ नमो भगवते वासुदेवाय नमः
आपका दिन शुभ एवं मंगलमय हो!
सदैव प्रसन्न रहिये!

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170 viewsAryan | आर्यन, 02:28
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2021-12-28 05:25:29

!! जीवन मंत्र !!


– दिव्य विभूति की दिव्य अनुभूति

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आंतरिक दुर्बलताओं और त्रुटियों के कारण ही मनुष्य का सांसारिक जीवन अभावग्रस्त, अविकसित एवं अशांत रहता है । भीतर की कमजोरी ही बाहर दीनता और हीनता के रूप में दृष्टिगोचर होती है । आत्मघाती लोग ही इस संसार में तिरस्कृत, लांछित, घृणित, उपेक्षित और असफल रहते हैं । जिसके भीतर "आत्मबल" भरा होगा, जिसके अंतर में प्रकाश उठ रहा होगा, उसके बाह्य जीवन का प्रत्येक क्षेत्र "आशा", "उत्साह", "स्फूर्ति", "तेजस्विता" और "पुरुषार्थ" से परिपूर्ण दिखाई देगा । भीतरी बल की आभा को बाहर प्रकट होने से कोई आवरण रोक नहीं सकता । "गरीबी", "अस्वस्थता" एवं "विपन्न" परिस्थितियों में पड़े हुए होने पर भी "मनस्वी व्यक्ति" अपनी महानता की प्रभा फैलाते रहते हैं । ऐसे लोगों की दुर्दशा क्षणिक ही हो सकती है, चिरस्थायी नहीं ।

"व्यक्ति का विकसित व्यक्तित्व ही वस्तुतः उसकी सच्ची सम्पत्ति सिद्ध होता है । यह सम्पत्ति जिसके पास मौजूद है, उसे न तो दरिद्र क़हा जा सकता है और न असफल । बादलों के टुकड़े चन्द्रमा को देर तक कहाँ छिपाए रह सकते हैं ? विपन्नता किसी मनस्वी व्यक्ति को दुर्दशाग्रस्त स्थितिमें देर तक कहाँ पड़ा रखती है ? जहाँ "आत्मबल" होगा, वहाँ कोई भी अभाव, चाहे वह व्यक्तिगत हो अथवा सांसारिक, अधिक समय तक टिक नहीं सकेगा ।

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149 viewsAryan | आर्यन, 02:25
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2021-12-28 05:20:29 सुविचार

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“बुद्धिमान पिता को अपने पुत्रों को शुभ
गुणों की सीख देनी चाहिए क्योंकि नीतिज्ञ
और ज्ञानी व्यक्तियों की ही कुल में पूजा
होती है।”

— आचार्य चाणक्य

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146 viewsAryan | आर्यन, 02:20
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