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!! जीवन मंत्र !! – दिव्य विभूति की दिव्य अनुभूति ━━━━━━━━ | 🪷 आज की प्रेरणा 🪷



!! जीवन मंत्र !!


– दिव्य विभूति की दिव्य अनुभूति

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आंतरिक दुर्बलताओं और त्रुटियों के कारण ही मनुष्य का सांसारिक जीवन अभावग्रस्त, अविकसित एवं अशांत रहता है । भीतर की कमजोरी ही बाहर दीनता और हीनता के रूप में दृष्टिगोचर होती है । आत्मघाती लोग ही इस संसार में तिरस्कृत, लांछित, घृणित, उपेक्षित और असफल रहते हैं । जिसके भीतर "आत्मबल" भरा होगा, जिसके अंतर में प्रकाश उठ रहा होगा, उसके बाह्य जीवन का प्रत्येक क्षेत्र "आशा", "उत्साह", "स्फूर्ति", "तेजस्विता" और "पुरुषार्थ" से परिपूर्ण दिखाई देगा । भीतरी बल की आभा को बाहर प्रकट होने से कोई आवरण रोक नहीं सकता । "गरीबी", "अस्वस्थता" एवं "विपन्न" परिस्थितियों में पड़े हुए होने पर भी "मनस्वी व्यक्ति" अपनी महानता की प्रभा फैलाते रहते हैं । ऐसे लोगों की दुर्दशा क्षणिक ही हो सकती है, चिरस्थायी नहीं ।

"व्यक्ति का विकसित व्यक्तित्व ही वस्तुतः उसकी सच्ची सम्पत्ति सिद्ध होता है । यह सम्पत्ति जिसके पास मौजूद है, उसे न तो दरिद्र क़हा जा सकता है और न असफल । बादलों के टुकड़े चन्द्रमा को देर तक कहाँ छिपाए रह सकते हैं ? विपन्नता किसी मनस्वी व्यक्ति को दुर्दशाग्रस्त स्थितिमें देर तक कहाँ पड़ा रखती है ? जहाँ "आत्मबल" होगा, वहाँ कोई भी अभाव, चाहे वह व्यक्तिगत हो अथवा सांसारिक, अधिक समय तक टिक नहीं सकेगा ।

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