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आज की प्रश्नोत्री के लिए प्रश्न सर जी संस्था से जब में तंत्र म | Sahaj Kriyayog Sadhna Adhyatmik Trust

आज की प्रश्नोत्री के लिए प्रश्न
सर जी संस्था से जब में तंत्र मंगवाके पहनता हूं थो शुरू में ऊर्जा फील होता हैं पर कुछ महीने तक उसे पहेने रखने के बाद नॉर्मल लगता हैं,पता नही चलता की वो दूषित होगया या नहीं भले ही हम उसे बहुत सावधानी से पहने रखे हैं फिर चाहे कही भी वाशरूम या गंदी जगह टच होने ना दिया हो,तो मेरा प्रश्न हैं हमको पता कैसे चलेगा की वो दूषित हुआ हैं या नहीं जी. और क्या तंत्र को बार बार पहना उतारना नही चाहिए?

उत्तर -
इस प्रश्न में कई भाग हैं पहला तंत्र की उर्जा से सम्बंधित, दूसरा शरीर से सम्बन्धित, तीसरा दूषित होने से सम्बन्धित इसे विस्तार से समझना आवश्यक है पूर्व में कई बार समझाया गया है लेकिन जब तकस अधक कांसेप्ट नही समझेंगे तब तक इस तरह के प्रश्न मन में आते रहंगे

प्रथम - तंत्र धारण करने से पूर्व शरीर की उर्जा को आप प्रतिदिन महसूस कर रहे हैं वह आपके लिए रोज़ ही एक जैसी है लेकिन तंत्र धारण करते ही शरीर की उर्जा में परिवर्तन आता है जो की साकारत्मक होता है और जैसे जैसे मनुष्य में परिवर्तन तंत्र के अनुसार आ जाता है वह मनुष्य को वह अंतर महसूस होना बंद हो जाता है. उदाहरण हेतु यदि आप किसी इतर को लगाते हैं आपको अंतर महसूस होगा थोड़ी डिअर बाद सब सामन्य हो जायेगा आपके लिए. तंत्र धारण करने से वह शरीरिक उर्जा में परिवर्तन लाता है अब आप इसे किसी भी तरह से समझ सकते हैं ये कह लीजिये एक तंत्र धारण करने से जादू हो जाता है काम बन जाते हैं अथवा उर्जा में परिवर्तन आ जाता है और मनुष्य के निर्णय उत्थान की और ले जाते हैं यह आपकी इच्छा है.

दूसरा - तंत्र धारण करने के बाद सब सामान्य हो जाता है - जैसे ही तंत्र अपने अनुसार सकारात्मक परिवर्तन शरीर में ले आता है शरीर उसी अनुसार ढल जाता है उसके बाद जब आवश्यकता होती है तभी तंत्र उर्जा का और निवेश शरीर में करता है अन्यथा नही - यदि आपने केमिस्ट्री पढ़ी है यह उर्जा की संतुलन प्रक्रिया को पूर्ण करना ओसमोसिस कहलाता है और जब संतुलन हो जाता है इसे ही एक़ुइलिब्रिअम कहते हैं. अब
तंत्र में एक निर्धारित उर्जा रहती है जो धीरे धीरे शरीर उपयोग करता रहता है एक निर्धारित समय के बाद तंत्र की उर्जा समाप्त हो जाती है जो की निर्भर करता है तंत्र के अनुसार एवं अनेक चीज़े हैं जिसपे यह निर्भर करेगा लेकिन सामान्यत ४ से ५ वर्ष तंत्र दुहित न ही तो वह कार्य करता है.

तृतीय - तंत्र दूषित होने का अर्थ है तंत्र अपनी समत उर्जा एक साथ निष्काषित कर दे और पूर्ण रूप से उर्जा हीन हो जाये अर्थात न उसके बाद प्रभाव सकारात्मक होंगे ना नकारात्मक बस शांत हो जायेगा प्रभाव.

यह तंत्र विशेष पर निर्भर करता है की कौन सा तंत्र किस स्थिति में दूषित होता है लेकिन सभी तंत्र मल अथवा मूत्र के संपर्क में आने से दूषित हो जाते हैं वह फर्क नही पड़ता की मल अथवा मूत्र किसका है.

आशा करता हूँ तंत्र सम्बन्धी किसी भी प्रकार की समस्या अब किसी साधक को नही होगी.