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प्रणाम देवंशुजी, १. श्मशान क्या है. २. उसका निर्माण कैसे कर | Sahaj Kriyayog Sadhna Adhyatmik Trust

प्रणाम देवंशुजी,
१. श्मशान क्या है.
२. उसका निर्माण कैसे कर सकते हैं.
३. और साधना के लिए श्मशान का चयन कैसे करें.
तकलीफ़ के लिए क्षमा

उत्तर -
यह तीन प्रश्न है और तीनो दिखने में आपस में मिलते हुए लगते हैं लेकिन इनका आपस में कोई सम्बन्ध नही है क्यूंकि श्मशान एक भौतिक स्थान है निर्माण प्रक्रिया एवं साधना दोनों आन्तरिक उर्जा विशेष हैं इसे समझना हर व्यक्ति के बस की बात नही है. अह समाज जिसमे हम रहते हैं इसमें मनुष्य मृत्यु को स्वीकार नही करना चाहता हैं मनुष्य मृत्यु शब्द से भी परहेज़ करता हैं वह किसी के मरने पर मरा हुआ बोलने पर भी डरता है उसे मृत्यु का भय अंदर ही अंदर खाए जाता है लोग सभ्य समाज में ऐसा शब्द उपयोग नही करते हैं उसकी जगह इंग्लिश में Late हिंदी में इश्वर को प्यारे, स्वर्गवासी आदि आदि शब्द का प्रयोग करते हैं जबकि मृत्यु परिवर्तनशील जीवन की अमरता की अनुभूति है यह बंधन ही कर्म बंधन है इतना सूक्ष्म समझने की आवश्यकता नही है.

जब मैंने तंत्र सीखना शुरू किया मेरे एक गुरु रहे चित्रकूट में उन्होंने मुझे काफी समझाने का प्रयास की अनेक प्रकार से तंत्र की सत्यता को मैं मानने को तैयार नही था दर्शन के बाद भी एक समय पर उन्होंने मुझे बनारस भेज दिया और कहा की जाओ वहां मणिकर्णिका में कुछ समय रह के आओ मैंने एक लम्बे समय तक वहां बैठ जाता सूचता रहता लोगों से ना बात करता न किसी से कुछ पूछता लोग मुझे वहां मूर्ख समझते थे की पढ़ा लिखा सभ्य कपडे पहन के ये लड़का इतना समय यहाँ करता क्या है वहां अनेक पंथ के साधकों से मिला सबके अपने मत थे समय बीता एक दिन अचानक से मुझे वह सत्य समझ में आया जो गुरु जी सिखाना चाहते थे की मनुष्य का धर्म सम्प्रदाय इच्छा धन आदि सब व्यर्थ है मृत्यु एक अटल सत्य है, यह सत्य किसी मंदिर में नही सीखा जा सकता है ना ही इस सत्य को किसी प्रमाण की आवश्यकता है पूरे दिन मनुष्य को राख बनते देखना और उसके बाद उसी प्रक्रिया को जल में देखना, एक लम्बे समय के बाद अब मैं बनारस गया मैं अक्षय जी राधा जी एक नाव में स्वर थे मैंने उन्हें दिखाया की कैसे मृत व्यक्ति का जल पर प्रभाव पड़ता है यह मैंने टीवी समझा जब मुझे सत्य के दर्शन हुए.

शमशान सत्य का मंदिर है जहाँ सिर्फ मनुष्य के सिर्फ भौतिक शरीर दाह किया जाता है जिससे यह समझना आवश्यक है की इस सत्य को कोई समाप्त नही कर सकता है इस भूमि से मनुष्य एक अंश लेके भी नही जा सकता है इसी धरती में सब समा जायेगा इसी सत्यता को शमशान दर्शाता है. मृत्यु की सत्यता के विषय में मैंने पूर्ण लेख लिखा है उसे भी पढ़ें. शमशान सर्वाधिक पवित्र है जहाँ मनुष्य किसी भी विचार से मुक्त है क्यूँ की सत्य के दर्शन से ही मनुष्य जीवन में आगे बढ़ता है . आखिर मनुष्य के शरीर को कहीं भी जला सकते हैं फिर भी एक विशेष स्थान में ले जाने की आवश्यकता क्यूँ है ? इसका कारण हैं शरीर से उर्जा का पूर्ण गमन इसे अधिक विस्तार से इसलिए समझना पड़ेगा क्यूंकि साधक का प्रश्न है शमशान कैसे बना सकते हैं.

शमशान पूर्व समय में स्थान विशेष अनुसार बनाया जाता है नदी के समीप जहाँ शरीर से उर्जा का पूर्ण निकास किया जा सके इसके पीछे के सत्य को उजागर करना इसलिए उचित नही है क्यूंकि इसे पूर्ण रूप से समझने हेतु ज्योतिष एवं वास्तु दोनों की आवश्यकता है और छोटी सी गलती भी मनुष्य को नुक्सान दे सकती है इसलिए कई बार कुछ घर ऐसे होते हैं जहाँ रहने से मनुष्य की मृत्यु होती रहती है ऐसे स्थान शमशान हेतु निर्धारित होते हैं, यह कोई प्रक्रिया नही है लेकिन बस उदाहरण है. देखिये किसी घर में शमशान बनाना उचित नही है न ही हर एक स्थान शमशान में परिवर्तित किया जा सकता है जिस प्रकार से मंदिर का निर्माण होता है उससे कहीं अधिक विधि विधान एवं नाना प्रकार की धातु को भूमि में समर्पित करके शमशान का निर्माण होता है. लेकिन यदि साधक करना ही चाहते हैं वह किसी एक इमली के पेड़ का चयन करें जो लगभग ४० से ५० वर्ष पुराना हो और उसी के आस पास निर्माण कर लें.

हर एक शमशान अलग अलग साधना हेतु उचित रहते हैं और सभी शमशान साधना हेतु उचित नही रहते हैं इसलिए इसे ऐसा कहना की कोई भी साधना किसी भी शमशान में की जा सकती है यह उचित नही होगा इसीलिए मैं कभी किसी मंदिर में साधना करने की सलाह नही देता हूँ. वर्तमान समय में व्यक्ति अपनी इच्छा अनुसार मंदिर निर्माण कर रहे हैं इसी प्रकार से कहीं भी गाँव अथवा शहर से दूर मनुष्य शमशान का निर्माण कर दे रहे हैं इसलिए जो शमशान लगभग ५० वर्ष से अधिक पुराने हैं उनमे ही साधना करना अथवा उनके समीप साधना करना उचित है.