गुरु पूर्णिमा सन्देश - श्री संत कबीर गुरू गोविन्द दोऊ खड़े | Sahaj Kriyayog Sadhna Adhyatmik Trust
गुरु पूर्णिमा सन्देश -
श्री संत कबीर
गुरू गोविन्द दोऊ खड़े, काके लागूं पांय। बलिहारी गुरू अपने जिन गोविन्द दियो मिलाये।।
इस दोहे के माध्यम से श्री संत कबीर ने आध्यात्मिकता की चरम सीमा को दर्शाया है श्री संत कबीर द्वारा दिए गये दोहे इतने आकर्षक एवं विद्वान् तरह से लिखे गये हैं की उसके भौतिक अर्थ भी निकलते हैं जो सामान्य जीवन में भी साधक के जीवन में लाभ दें और एक अध्यात्म की कश्ती (क्रिया) पर सावर हेतु अध्यात्मिक अर्थ जिसे यही कश्ती इस माया रुपी सागर से परब्रह्म से मिलन कराएगी.
इस शरीर को ३ भाग में विभाजित किया गया है
१. कारण शरीर २. सूक्ष्म शरीर ३. भौतिक शरीर
प्रत्येक शरीर की एक जीवात्मा अथवा चैतन्य शक्ति है उसी के कारण यह शरीर परिवर्तित होते हैं कारण से सूक्ष्म एवं सूक्ष्म से भौतिक में
कारण शरीर की जीवात्मा को हम प्राज्ञ कहते हैं और समस्त शरीर के प्रज्ञा को इश्वर कहते हैं जब यह शक्ति प्राज्ञ व् इश्वर का मिलन होता है इसे ही गोविन्द अथवा विष्णु कहते है. सूक्ष्म शरीर की चैतन्य शक्ति अथवा जीवात्मा को तेज़स कहते हैं समस्त शरीर के तेज़स को हिरणगर्भ कहते हैं जब तेज़ व् हिरणगर्भ का मिलन होता है इसे ही ब्रह्मा कहते हैं. भौतिक शरीर की चैतन्य शक्ति अथवा जीवात्मा विश्व कहते हैं समस्त शरीर के विश्व को विराट कहते हैं जब विश्व व् विराट का मिलन होता है इसे ही शिव कहते है. शिव से जो शक्ति प्रकट होती है उसे ही तेज़स कहते हैं जो सूक्ष्म शरीर की चैतन्य शक्ति है.इसी प्रकार से पर्वर्तिकरण होता है जिससे कारण से भौतिक और भौतिक से कारण शरीर में उर्जा का प्रवाह होता है. इसी प्रवाह के कारण शिशु वयस्क होता है जब यह प्रवाह विपरीत स्थती में चलता है तब व्यसक वृद्धावस्था को प्राप्त होता है.
गुरु विश्व की शक्ति को दर्शया गया है जिसके माध्यम से साधक प्राज्ञ की शक्ति से मिलन कर पाया है जिसे गोविन्द कहा गया है जब इन दोनों शक्तियों का मिलन हो रहा है उस वक़्त की स्थिति को दर्शया गया है की किस शक्ति को सर्वोपरि रखा जाये श्री संत कबीर ने बताया है की विश्व की शक्ति के बिना प्राज्ञ से मिलन संभव नही था जिससे उसका अवतरण हुआ है अर्थात स्वयं अथवा इस पूर्ण शरीर में जब तक मिलन नही होगा तब तक गोविन्द की प्राप्ति नही होगी. इस शरीर से मिलन का एक ही पथ है क्रियायोग ध्यान जिससे व्यक्ति अपने इस पूर्ण शरीर में एकाग्र होता है समस्त शरीर के अंग से इन ५ भौतिक तत्वों (२४ तत्त्व में से ५) से जिसमे फर्क करना उचित नही है इन ५ तत्वों को ही श्री गीता में पांडव की शक्ति से दर्शया गया है यदि आप किसी में भी मतभेद करते हैं तो गोविन्द की प्रप्ति संभव नही है. रूप रस गंध स्पर्श श्रवण के आधार पर मतभेद रखने से गोविन्द की प्राप्ति संभव नही है.
सन्देश -
मनुष्य जीवन ही मोक्ष की प्राप्ति हेतु सर्वोपरि है अतः इस जीवन का उपयोग मुक्ति अथवा मोक्ष की प्राप्ति हेतु करें, इस देह को कभी भी त्यागा जा सकता और कभी भी पाया जा सकता है इस पर अधिकार ही मनुष्य जीवन का सार है.
यह मनुष्य स्वरुप मेरा अंतिम जीवन है , इस ध्वनि से उत्पन्न यह प्रकृति मेरा ही सार है और यह ध्वनि मेरा ही रूप है इसका सम्मिलित स्वरुप ही श्रीम धूमावती है.
न मैं आपको मोक्ष दूंगा न ही मुक्ति , आप मेरे मार्गदर्शन सिर्फ उस मार्ग को जान सकेंगे जिससे इन दोनों की प्राप्ति होती है.
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