भावार्थ : फिर धर्मात्मा मिथिलेशने शत्रुघ्नको सम्बोधित करके कहा - 'महाबाहो ! तुम अपने हाथसे श्रुतकीर्तिका पाणिग्रहण करो। तुम चारों भाई शान्तस्वभाव हो। तुम सबने उत्तम व्रतका भलीभाँति आचरण किया है। ककुत्स्थकुलके भूषणरूप तुम चारों भाई पत्नीसे संयुक्त हो जाओ। इस कार्यमें विलम्ब नहीं होना चाहिये ' ॥ ३२-३३½ ॥
क्रमशः.....
अहिंसा परमोधर्मः धर्म हिंसातथैव च:
अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है..!!
जब जब धर्म (सत्य) पर संकट आये तब तब तुम शस्त्र उठाना