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कोई नहीं जानता कि किनता समय और बचा है प्रतीक्षा करने का कि प्र | Posham Pa ― a Hindi literary website

कोई नहीं जानता कि
किनता समय और बचा है
प्रतीक्षा करने का
कि प्रेम आएगा एक पैकेट में डाक से,
कि थोड़ी देर और बाक़ी है
कटहल का अचार खाने लायक़ होने में,
कि पृथ्वी को फिर एक बार
हरा होने और आकाश को फिर दयालु और
उसे फिर विगलित होने में
अभी थोड़ा-सा समय और है।

https://poshampa.org/kitne-din-aur-bache-hain-a-poem-by-ashok-vajpeyi/