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नवीनतम संदेश 202

2021-01-30 12:26:36 https://www.instagram.com/p/CKp9c4rgVOE/?igshid=1tpqd7ofltm1x
Great Minds on Brahmacharya

Part 3 : Swami Sivananda
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2021-01-29 14:21:39 If anyone there to work for Manthanhub as web developer/customizer for wordpress website may contact urgently at manthanhubservices@gmail.com
4.0K views11:21
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2021-01-29 07:21:26

ऐसे बचे काम वासना से


जिन जिन भाईयों को कामवासना उनको सतावे या सताने लगे तो
सबसे पहले झट से ओम् या अपने आराध्य का ध्यान कर लेवे
दूसरा ये कि मन में बहुत डर रक्खो कि यदि कामवासना में आकर थोड़ा भी वीर्य्य पात हो गया तो मैं चूसे गन्ने जैसा हो जावूंगा / जावूंगी।

इससे कभी थोड़ा भी वीर्य्य पात न होता।

और भाईयों यदि आप का कभी वीर्य्य पात हो भी जाए (स्वप्न दोष आदि रोग से।) तो दुखी, चिन्तित मत होया करो कभी भी, बस ये सोचते रहो कि मैं वीर्य्य वान् हूँ। और फिर तगड़ा संकल्प लेलो।

क्योंकि जो भाई जितना दुखी होगा, चिन्ता करेगा वो भाई का और वीर्य्य पात हो जाएगा क्योंकि नकारात्मक चिन्ता करने से स्वास्थ्य, वीर्य्य पर बुरा प्रभाव पड़ता है जिससे वीर्य्य पात हो जाता है।

औषधि भी लोगे स्वप्न दोष रोकने के लिए और चिन्ता भी करोगे तो भी आपका स्वप्न दोष कभी पीछा न छोड़ेगा। चिन्ता मत करो और जब भी स्वप्न दोष हो जाए तो उसे भूल जाओ। आगे देखो। मन में प्रसन्नता रखलो और सकारात्मकता भी।

और मूत्र इन्द्रि का स्नान, धोना करते रहो ठण्डे जल से, धार लगाओ जल की तीन चार मिनटों तक।

स्वप्न दोष समाप्त हो जाएगा। साथ ही अन्य रोग जैसे नपुंसकता, शीघ्रपतन आदि रोग भी।

मूत्र इन्द्रि को विना कारण के स्पर्श कभी मत करो। जब भी करो तो ओम् साथ साथ जपो।

साईकिल आदि मत चलाओ। पैदल जाओ आओ।साईकिल से अण्डकोष दब जाते हैं जिससे वीर्य्य पर भी बुरा प्रभाव पड़ता है। साईकिल इस के लिए प्रसिद्ध है।

अण्डकोषों को सदा ठण्डा रखो क्योंकि वीर्य्य धातु ठण्डे वातावरण में ही सुरक्षित होता है। कस के रखने वाले कच्छे निक्कर आदि गर्मी पैदा कर वीर्य्य को हानि देते हैं। इसलिए तो पूर्वजों ने लंगोट का नियम बनाया था। ऋषियों ने लंगोट ही पहने। लंगोट पहनने के कई लाभ हैं।

भोजन में तीखे भोजन जैसे तीखा सरसों तेल, प्याज, लशुन, लाल काली हरी मिर्चें, गर्म मसाले, चटपटे आदि भोजन नहीं लेने हैं। तीखे, तड़क भड़क चटपटे मसालेदार भोजन से वीर्य्य नाश, कामुकता बढ़ती है। साथ ही शरीर जलने लगता है।

पाचन शक्ति काम न करती है।
चेहरा खराब हो जाता है।
मूत्र इन्द्रि खराब हो जाती है।
खुजली, फोड़े, दाद, चकते हो जाते हैैं।

ब्रह्मचर्य के लिए कभी भी कोई भी नमक न खावे।


आयुर्वेद में सब नमकों को हानि कारक कहा है और निषेध किया है। ईश्वर ने पहले से ही नमक रस सब सब्जी, दाल आदि में दिया है। जैसे फलों में पहले से ही मीठापन दिया है। क्या फलों में भी हम गुड़, खाण्ड मिलाते हैं ? नहीं। तो हम दाल सब्जी चावल में क्यों नमक मिलाएं ?

हाँ आयुर्वेद ने सैन्धव नमक को ठीक और उपयोगी बताया है परन्तु वो भी रोगी के लिए वरना सैन्धव नमक भी आयुर्वेद अनुसार ब्रह्मचर्य के लिए हानिकारक है।


आंसू, वायु(पाद।), छींक, मूत्र, मल कभी भी मत रोको। ये सब सीधे कर देने चाहिए। मल मूत्र रोकने से तो कब्ज, पेट में भयंकर बदबू हो जाती है, शरीर गर्मी भी हो जाती है। कब्ज से धातु नाश होता है। शिर दर्द भी होता है। देखने की शक्ति कम होती है। याद शक्ति कम होती है। पाचन ठीक न होता। रोग बवासीर, भगन्दर हो जाते हैं। आलस आता है। गैस बनती है जिससे चक्कर आते हैं। बलगम कभी निगलना नहीं है। उसे थूक देना है ब्रह्मचारी को।


ब्रह्मचर्य के लिए हास्य अत्यन्त् आवश्यक है। महाबलशाली ब्रह्मचारी राममूर्ति जी भी कहते थे कि हंसते रहना चाहिए। क्योंकि ये क्रिया रोगों का नाश करती है। सकारात्मकता भी बढ़ जाती है। चिन्तारहित हो जाते हैं।

ब्रह्मचारी साबुन का उपयोग न करे। करना हो तो गांववाले साबुन से स्नान ले। और जल ठण्डा ही लेवे। कुएँ का जल सबसे उत्तम् होता है।

स्नान समय ध्यान रहे कि शिर पर कभी भी गर्म जल न डाले क्योंकि गर्म जल शिर पर डालते रहने से सौ से अधिक रोग हो जाते हैं। साबुन कैमिकल वाले घातक होते हैं शरीर के लिए।

लकड़ी की राख, थोड़ी मिट्टी (जहाँ गन्दगी न हो।)को मिलाकर पानी से शरीर पर रगड़ के नहा ले। दुर्गन्ध भाग जाएगी और चमड़ी के रोग भी न होंगे।
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