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Indian constitution

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नवीनतम संदेश 2

2019-08-05 20:06:49 ❀--❦-----------☆◕‿◕☆-----------❦--❀
जानें आर्टिकल 370 के हटने से जम्मू और कश्मीर में क्या-क्या बदल जायेगा?

आर्टिकल 370 का संक्षिप्त इतिहास

भारत को आजादी मिलने के बाद 20 अक्टूबर, 1947 को पाकिस्तान समर्थित ‘आजाद कश्मीर सेना’ ने पाकिस्तानी सेना के साथ मिलकर कश्मीर पर आक्रमण कर दिया और काफी हिस्सा हथिया लिया था. इस हिस्से को आज पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (POK) कहा जाता है.

इस परिस्थिति में महाराजा हरि सिंह ने जम्मू&कश्मीर की रक्षा के लिए उस समय कश्मीर के प्रधानमंत्री शेख़ अब्दुल्ला की सहमति से जवाहर लाल नेहरु के साथ मिलकर 26 अक्टूबर 1947 को भारत के साथ जम्मू & कश्मीर के अस्थायी विलय की घोषणा कर दी और "Instruments of Accession of Jammu & Kashmir to India" पर अपने हस्ताक्षर कर दिये थे. इस नये समझौते के तहत जम्मू & कश्मीर ने भारत के साथ सिर्फ तीन विषयों: रक्षा, विदेशी मामले और संचार को भारत के हवाले कर दिया था.

समझौते पर हस्ताक्षर करने के बाद भारत सरकार ने वादा किया कि “'इस राज्य के लोग अपने स्वयं की संविधान सभा के माध्यम से राज्य के आंतरिक संविधान का निर्माण करेंगे और जब तक राज्य की संविधान सभा शासन व्यवस्था और अधिकार क्षेत्र की सीमा का निर्धारण नहीं कर लेती हैं तब तक भारत का संविधान केवल राज्य के बारे में एक अंतरिम व्यवस्था प्रदान कर सकता है.

संविधान सभा के अध्यक्ष _डॉ. भीमराव आंबेडकर कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा देने के पक्ष में नहीं थे._ मगर पंडित नेहरू के कहने पर गोपाल स्वामी आयंगर ने अनुच्छेद 370 का प्रस्ताव संविधान सभा में प्रस्तुत किया था और यह 17 नवंबर 1952 से लागू है.

आर्टिकल 370 के हटने से निम्न परिवर्तन होंगे;

1. आर्टिकल 370 के अनुसार रक्षा, विदेशी मामले और संचार को छोड़कर बाकी सभी कानून को लागू करने के लिए केंद्र सरकार को राज्य सरकार से मंजूरी लेनी पड़ती है लेकिन आर्टिकल 370 के हटते ही कोई भी कानून राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू हो जायेगा.

2. आर्टिकल 370 के कारण जम्मू & कश्मीर का अपना संविधान है और इसका प्रशासन इसी के अनुसार चलाया जाता है ना कि भारत के संविधान के अनुसार.
यदि आर्टिकल 370 को हटा दिया जाता है तो कश्मीर का प्रशासन भी भारत के संविधान के अनुसार चलेगा.

3. जम्मू & कश्मीर के पास 2 झन्डे हैं. एक कश्मीर का अपना राष्ट्रीय झंडा है और भारत का तिरंगा झंडा भी यहाँ का राष्ट्रीय ध्वज है.
यदि आर्टिकल 370 को हटा दिया जाता है तो कश्मीर का झंडा ख़त्म हो जायेगा.

4. देश के दूसरे राज्यों के नागरिक इस राज्य में किसी भी तरीके की संपत्ति नहीं खरीद सकते हैं. अर्थात इस राज्य में संपत्ति का मूलभूत अधिकार अभी भी लागू है लेकिन _आर्टिकल 370 के हटने के साथ ही अन्य भारतीय लोगों को कश्मीर में जमीन और अन्य संपत्तियां खरीदने की अनुमति मिल जाएगी और रहने/बसने का अधिकार भी मिल जायेगा.

5. कश्मीर के लोगों को 2 प्रकार की नागरिकता मिली हुई है; जो कि ख़त्म हो जाएगी और सबको केवल भारत का नागरिक माना जायेगा.

6. अभी यदि कोई कश्मीरी महिला किसी भारतीय से शादी कर लेती है तो उसकी कश्मीरी नागरिकता ख़त्म हो जाती है लेकिन आर्टिकल 370 के हटने के बाद ऐसा नहीं होगा क्योंकि दोनों ही भारत के नागरिक हो जायेंगे.

7. यदि कोई पाकिस्तानी लड़का किसी कश्मीरी लड़की से शादी कर लेता है तो उसको भारतीय नागरिकता भी मिल जाती है लेकिन आर्टिकल 370 के हटते ही कोई भी पाकिस्तानी शादी करके मान्यता प्राप्त नहीं कर पायेगा.

8. भारतीय संविधान के भाग 4 (राज्य के नीति निर्देशक तत्व) और भाग 4 A (मूल कर्तव्य) इस राज्य पर लागू नहीं होते हैं. अर्थात
आर्टिकल 370 के हटते ही कश्मीर के लोगों को भारत के संविधान में लिखे गये मूल कर्तव्यों को मानना अनिवार्य हो जायेगा और उनको महिलाओं की अस्मिता, गायों की रक्षा करनी पड़ेगी.

9. जम्मू एंड कश्मीर में भारत के राष्ट्रीय प्रतीकों (राष्ट्रगान, राष्ट्रीय ध्वज इत्यादि) का अपमान करना अपराध की श्रेणी में आ जायेगा.

10. जम्मू कश्मीर में आर्थिक आपातकाल (अनुच्छेद 360) लगाया जा सकेगा.

11. सम्पूर्ण भारत में राष्ट्रीय आपातकाल लगते ही यह पूरे कश्मीर में भी लागू हो जायेगा. राष्ट्रपति के विशेष आदेश की जरूरत नहीं पड़ेगी.

12. सूचना का अधिकार और शिक्षा का अधिकार जैसे कानून कश्मीर में भी लागू होने लगेंगे.
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2019-07-29 13:56:07 लोकसभा_में_पास_हुआ_मोटर_वाहन_संशोधन_विधेयक_2019

लोकसभा ने 23 जुलाई 2019 को मोटर वाहन (संशोधन) विधेयक-2019 को मंजूरी दे दी. इस विधेयक में सड़क सुरक्षा को लेकर बहुत सख्त नियम लागू किए गए हैं. विधेयक में ड्राइविंग के दौरान छोटी सी गलती पर भी भारी जुर्माना लगेगा.

इस विधेयक के तहत अब बिना लाइसेंस गाड़ी चलाना, किशोर नाबालिगों द्वारा वाहन चलाना, वाहन खतरनाक ढंग से चलाना, शराब पीकर गाड़ी चलाना, गाड़ी निर्धारित सीमा से तेज चलाना और अधिक माल लादकर गाड़ी चलाने जैसे नियमों के उल्लंघन पर कड़ा सजा का प्रावधान किया गया है।

केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने इस विधेयक की आवश्यकता पर ज़ोर देते हुए संसद में कहे कि विधेयक के माध्यम से राज्यों के हक़ में कोई दखल देने का मन नहीं है, इसके प्रावधानों को लागू करना राज्यों के मन पर निर्भर है. केंद्र की पूरी कोशिश राज्यों से सहयोग करने, परिवहन व्यवस्था में बदलाव लाने तथा दुर्घटनाओं को कम करने की है.

मोटर वाहन (संशोधन)
विधेयक के मुख्य बिंदु
:

• मोटर वाहन संशोधन विधेयक-2019 के अनुसार, तेज़ गति से गाड़ी चलाने पर जुर्माना 500 रुपये से बढ़ाकर 5000 रुपये कर दिया गया है.

• सीट बेल्ट और हेलमेट न पहनने पर जुर्माना 100 रुपये से बढ़ाकर 1000 रुपये कर दिया गया है.

• मोबाइल फ़ोन पर बात करते हुए गाड़ी चलाने पर जुर्माना 1000 रु से बढ़ाकर 5000 रु कर दिया गया है.

• शराब पीकर गाड़ी चलाने पर जुर्माना 2000 रुपए से बढ़ाकर 10 हज़ार रुपए कर दिया गया है.

• गाड़ी बिना लाइसेंस के चलाने पर जुर्माना 500 रु से बढ़ाकर 5000 रुपए कर दिया गया है.

• गाड़ी बिना इंश्योरेंस के चलाने पर जुर्माना 1000 रु से बढ़ाकर 2000 रु कर दिया गया है.

• विधेयक के तहत सड़क दुर्घटना में यदि किसी की भी मौत होती है तो न्यूनतम मुआवज़ा 25 हज़ार से बढ़ाकर अब दो लाख रुपए होगा.

• सड़क दुर्घटना में किसी को गंभीर रूप से घायल करने पर न्यूनतम मुआवज़ा 12,500 से बढ़कर अब 50,000 होगा.

• यदि नाबालिग गाड़ी चलाते हुए पकड़ा जाता है तो उसके माता-पिता और गाड़ी के मालिक को दोषी माना जाएगा. इस विधेयक के तहत गाड़ी का रजिस्ट्रेशन रद्द कर दिया जाएगा. यदि नाबालिग ड्राइवर की गाड़ी से किसी की मौत हो जाती है तो उसके माता-पिता को सज़ा होगी.

• इस विधेयक के तहत अब ड्राइविंग लाइसेंस बनाने या वाहन का रजिस्ट्रेशन करवाने के लिए आधार कार्ड ज़रूरी होगा.

एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में प्रत्येक दिन औसतन 400 लोगों की मौत सड़क हादसे में होती है. हादसों में 50 प्रतिशत मरने वालों की उम्र 14 से 35 साल के बीच होती है. बहुत से लोगों की मौत सड़क हादसे में तेज़ रफ़्तार की वजह से होते हैं.
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2019-03-13 04:32:29 संविधान के बारे में-
अंग्रेजों ने भारत को स्वतंत्रता देने पर गंभीरता से विचार करना शुरू कर दिया था। अंग्रेजों ने भारतीय संविधान का प्रारूप तैयार करने के लिए व संविधान सभा स्थापित करने की संभावना पर चर्चा करने के लिए, ब्रिटिश सरकार और विभिन्न भारतीय राज्यों के प्रतिनिधियों से एक साथ मिलने  योजना के कारण, भारत में एक कैबिनेट मिशन भेजा गया था। यहाँ पर भारत के संविधान के बारे में कुछ कम ज्ञात तथ्य दिए गए हैं।

1946: संविधान सभा का गठन कैबिनेट मिशन योजना के तहत किया गया था। डॉ राजेंद्र प्रसाद इसके स्थायी अध्यक्ष और डॉ. बी. आर. अम्बेडकर को प्रारूप समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था। प्रारूप रिपोर्ट तैयार करने के लिए 13 समितियों की स्थापना की गई थी, जिनका गठन संविधान पूरा होने के बाद किया गया था।

संविधान सभा में 389 सदस्य थे, जिसमें प्रारंभिक विश्लेषित विवरण में – प्रांत के 292 प्रतिनिधि, देशी रियासतों के 93 प्रतिनिधि, मुख्य आयुक्त क्षेत्रों के 3 प्रतिनिधि तथा बलूचिस्तान का 1 प्रतिनिधि शामिल था। बाद में मुस्लिम लीग की संख्या कम होने के कारण 299 प्रतिनिधि रह गए थे।

जनवरी 1948: भारतीय संविधान का पहला प्रारूप विचार-विमर्श के लिए प्रस्तुत किया गया था।

4 नवंबर 1948: 32 दिनों तक विचार-विमर्श जारी रहा था। इस अवधि के दौरान, 7635 संशोधन प्रस्तावित किए गए थे और उनमें से 2473 पर विस्तारपूर्वक चर्चा की गई थी। संविधान निर्माण की प्रक्रिया में कुल 2 वर्ष, 11 महीने और 18 दिन लगे थे।

24 जनवरी 1950: संविधान सभा के 284 सदस्यों द्वारा भारत के संविधान पर हस्ताक्षर किए गए थे, जिनमें 15 महिलाएं भी शामिल थीं।
26 जनवरी 1950: इस दिन भारत का संविधान लागू हुआ था।

भारत के मूल संविधान को हिंदी और अंग्रेजी में प्रेम बिहारी नारायण रायजादा द्वारा लिखा गया था। संविधान के प्रत्येक पृष्ठ को जटिल लेख और इटैलिक धारा प्रवाह में लिखा गया था। पश्चिम बंगाल के शांतिनिकेतन के कलाकारों ने प्रत्येक पृष्ठ के प्रस्तुतीकरण पर भी कार्य किया था। इसकी अंग्रेजी और हिंदी की मूल प्रतियाँ भारतीय संसद पुस्तकालय में, हीलियम से डिजाइन किए गए विशेष पात्र में संरक्षित हैं।

भारत का संविधान दुनिया का सबसे दीर्घ और सबसे विस्तृत संविधान है और इसमें 25 भाग, 448 अनुच्छेद और 12 अनुसूचियाँ हैं तथा मूल संविधान में 395 अनुच्छेद और 9 अनुसूचियाँ सम्मिलित हैं।

भारत के संविधान को संस्कृति, धर्म और भूगोलिक की दृष्टिकोण से सबसे अच्छा लिखित संविधान माना जाता है।
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2019-01-29 06:55:41 26 नवंबर, 1949 और 26 जनवरी, 1950। भारत के संविधान के इतिहास की ये दो अहम तारीखें हैं। 26 नवंबर, 1949 को हमारा संविधान अंगीकार किया गया तो 26 जनवरी, 1950 को इसे लागू किया गया। संविधान को जिस तारीख को अंगीकार किया गया यानी 26 नवंबर, उस दिन को संविधान दिवस के तौर पर मनाया जाता है और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस।
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2019-01-29 06:45:34 13. 1947 ई० का भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम: ब्रिटिश संसद में 4 जुलाई, 1947 ई० को भारतीय स्वतंत्रता अधिनियम प्रस्तावित किया गया, जो 18 जुलाई, 1947 ई० को स्वीकृत हो गया. इस अधिनियम में 20 धाराएं थीं. अधिनियम के प्रमुख प्रावधान निम्न हैं -
(i) दो अधिराज्यों की स्थापना: 15 अगस्त, 1947 ई० को भारत एवं पाकिस्तान नामक दो अधिराज्य बना दिए जाएंगें, और उनको ब्रिटिश सरकार सत्ता सौंप देगी. सत्ता का उत्तरदायित्व दोनों अधिराज्यों की संविधान सभा को सौंपा जाएगा. 
(ii) भारत एवं पाकिस्तान दोनों अधिराज्यों में एक-एक गवर्नर जनरल होंगे, जिनकी नियुक्ति उनके मंत्रिमंडल की सलाह से की जाएगी. 
(iii) संविधान सभा का विधान मंडल के रूप में कार्य करना- जब तक संविधान सभाएं संविधान का निर्माण नई कर लेतीं, तब तक वह विधान मंडल के रूप में कार्य करती रहेंगीं. 
(iv) भारत-मंत्री के पद समाप्त कर दिए जाएंगें. 
(v) 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा शासन जब तक संविधान सभा द्वारा नया संविधान बनाकर तैयार नहीं किया जाता है; तब तक उस समय 1935 ई० के भारतीय शासन अधिनियम द्वारा ही शासन होगा. 
(vi) देशी रियासतों पर ब्रिटेन की सर्वोपरिता का अंत कर दिया गया. उनको भारत या पाकिस्तान किसी भी अधिराज्य में सम्मलित होने और अपने भावी संबंधो का निश्चय करने की स्वतंत्रता प्रदान की गई.
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2019-01-29 06:44:25 11. 1919 ई० का भारत शासन अधिनियम [मांटेग्यू चेम्सफोर्ड सुधार] - 
(i) केंद्र में द्विसदनात्मक विधायिका की स्थापना की गई- प्रथम राज्य परिषद तथा दूसरी केंद्रीय विधान सभा. राज्य परिषद के सदस्यों की संख्या 60 थी; जिसमें 34 निर्वाचित होते थे और उनका कार्यकाल 5 वर्षों का होता था. केंद्रीय विधान सभा के सदस्यों की संख्या 145 थी, जिनमें 104 निवार्चित तथा 41 मनोनीत होते थे. इनका कार्यकाल 3 वर्षों का था. दोनों सदनों के अधिकार समान थे. इनमें सिर्फ एक अंतर था कि बजट पर स्वीकृति प्रदान करने का अधिकार निचले सदन को था.

(ii) प्रांतो में द्वैध शासन प्रणाली का प्रवर्तन किया गया. इस योजना के अनुसार प्रांतीय विषयों को दो उपवर्गों में विभाजित किया गया- आरक्षित तथा हस्तांतरित. आरक्षित विषय थे - वित्त, भूमिकर, अकाल सहायता, न्याय, पुलिस, पेंशन, आपराधिक जातियां, छापाखाना, समाचार पत्र, सिंचाई, जलमार्ग, खान, कारखाना, बिजली, गैस, व्यालर, श्रमिक कल्याण, औघोगिक विवाद, मोटरगाड़ियां, छोटे बंदरगाह और सार्वजनिक सेवाएं आदि.

हस्तांतरित विषय -
(i) शिक्षा, पुस्तकालय, संग्रहालय, स्थानीय स्वायत्त शासन, चिकित्सा सहायता. 
(ii) सार्वजनिक निर्माण विभाग, आबकारी, उघोग, तौल तथा माप, सार्वजनिक मनोरंजन पर नियंत्रण, धार्मिक तथा अग्रहार दान आदि. 
(iii) आरक्षित विषय का प्रशासन गवर्नर अपनी कार्यकारी परिषद के माध्यम से करता था; जबकि हस्तांतरित विषय का प्रशासन प्रांतीय विधान मंडल के प्रति उत्तरदायी भारतीय मंत्रियों के द्वारा किया जाता था.
(iv) द्वैध शासन प्रणाली को 1935 ई० के एक्ट के द्वारा समाप्त कर दिया गया. 
(v) भारत सचिव को अधिकार दिया गया कि वह भारत में महालेखा परीक्षक की नियुक्ति कर सकता है. 
(vi) इस अधिनियम ने भारत में एक लोक सेवा आयोग के गठन का प्रावधान किया. 

12. 1935 ई० का भारत शासन अधिनियम: 1935 ई० के अधिनियम में 451 धाराएं और 15 परिशिष्‍ट थे. इस अधिनियम की मुख्य विशेषताएं इस प्रकार हैं:
(i) अखिल भारतीय संघ: यह संघ 11 ब्रिटिश प्रांतो, 6 चीफ कमिश्नर के क्षेत्रों और उन देशी रियासतों से मिलकर बनना था, जो स्वेच्छा से संघ में सम्मलित हों. प्रांतों के लिए संघ में सम्मिलित होना अनिवार्य था, किंतु देशी रियासतों के लिय यह एच्छिक था. देशी रियासतें संघ में सम्मिलित नहीं हुईं और प्रस्तावित संघ की स्थापना संबंधी घोषणा-पत्र जारी करने का अवसर ही नहीं आया. 
(ii) प्रांतीय स्वायत्ता: इस अधिनियम के द्वारा प्रांतो में द्वैध शासन व्यवस्था का अंत कर उन्हें एक स्‍वतंत्र और स्वशासित संवैधानिक आधार प्रदान किया गया. 
(iii) केंद्र में द्वैध शासन की स्थापना: कुछ संघीय विषयों [सुरक्षा, वैदेशिक संबंध, धार्मिक मामलें] को गवर्नर जनरल के हाथों में सुरक्षित रखा गया. अन्य संघीय विषयों की व्यवस्था के लिए गवर्नर- जनरल को सहायता एवं परामर्श देने हेतु मंत्रिमंडल की व्यवस्था की गई, जो मंत्रिमंडल व्यवस्थापिका के प्रति उत्तरदायी था. 
(iv) संघीय न्‍यायालय की व्यवस्था: इसका अधिकार क्षेत्र प्रांतों तथा रियासतों तक विस्तृत था. इस न्यायलय में एक मुख्य न्यायाधीश तथा दो अन्य न्यायाधीशों की व्यवस्था की गई. न्यायालय से संबंधित अंतिम शक्ति प्रिवी काउंसिल [लंदन] को प्राप्त थी. 
(v) ब्रिटिश संसद की सर्वोच्चता: इस अधिनियम में किसी भी प्रकार के परिवर्तन का अधिकार ब्रिटिश संसद के पास था. प्रांतीय विधान मंडल और संघीय व्यवस्थापिका: इसमें किसी प्रकार का परिवर्तन नहीं कर सकते थे. 
(vi) भारत परिषद का अंत : इस अधिनियम के द्वारा भारत परिषद का अंत कर दिया गया.
(vii) सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति का विस्तार: संघीय तथा प्रांतीय व्यवस्थापिकाओं में विभिन्न सम्प्रदायों को प्रतिनिधित्व देने के लिए सांप्रदायिक निर्वाचन पद्धति को जारी रखा गया और उसका विस्तार आंग्ल भारतीयों - भारतीय ईसाइयों, यूरोपियनों और हरिजनों के लिए भी किया गया. 
(viii) इस अधिनियम में प्रस्तावना का अभाव था. 
(xi) इसके द्वारा बर्मा को भारत से अलग कर दिया गया, अदन को इंग्लैंड के औपनिवेशिक कार्यालय के अधीन कर दिया गया और बरार को मध्य प्रांत में शामिल कर लिया गया.
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2019-01-29 06:40:13 भारतीय संविधान के विकास का संक्षिप्त इतिहास

1757 ई. की प्लास की लड़ाई और 1764 ई. बक्सर के युद्ध को अंग्रेजों द्वारा जीत लिए जाने के बाद बंगाल पर ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कंपनी ने शासन का शिकंजा कसा. इसी शासन को अपने अनुकूल बनाए रखने के लिए अंग्रेजों ने समय-समय पर कई एक्ट पारित किए, जो भारतीय संविधान के विकास की सीढ़ियां बनीं. 

1. 1773 ई. का रेग्‍यूलेटिंग एक्ट: इस एक्ट के अंतर्गत कलकत्ता प्रेसिडेंसी में एक ऐसी सरकार स्थापित की गई, जिसमें गवर्नर जनरल और उसकी परिषद के चार सदस्य थे, जो अपनी सत्ता का उपयोग संयुक्त रूप से करते थे. इसकी मुख्य बातें इस प्रकार हैं - 
(i) कंपनी के शासन पर संसदीय नियंत्रण स्थापित किया गया. 
(ii) बंगाल के गवर्नर को तीनों प्रेसिडेंसियों का जनरल नियुक्त किया गया.
(iii) कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई.

2. 1784 ई. का पिट्स इंडिया एक्ट: इस एक्ट के द्वारा दोहरे प्रशासन का प्रारंभ हुआ- 
(i) कोर्ट ऑफ़ डायरेक्टर्स - व्यापारिक मामलों के लिए 
(ii) बोर्ड ऑफ़ कंट्रोलर - राजनीतिक मामलों के लिए.

3. 1793 ई. का चार्टर अधिनियम: इसके द्वारा नियंत्रण बोर्ड के सदस्यों तथा कर्मचारियों के वेतन आदि को भारतीय राजस्व में से देने की व्‍यवस्‍था की गई.

4. 1813 ई. का चार्टर अधिनियम: इसके द्वारा (i)कंपनी के अधिकार-पत्र को 20 सालों के लिए बढ़ा दिया गया. 
(ii) कंपनी के भारत के साथ व्यापर करने के एकाधिकार को छीन लिया गया. लेकिन उसे चीन के साथ व्यापर और पूर्वी देशों के साथ चाय के व्यापार के संबंध में 20 सालों के लिए एकाधिकार प्राप्त रहा.
(iii)कुछ सीमाओं के अधीन सभी ब्रिटिश नागरिकों के लिए भारत के साथ व्यापार खोल दिया गया.

5. 1833 ई. का चार्टर अधिनियम: इसके द्वारा (i)कंपनी के व्यापारिक अधिकार पूर्णतः समाप्त कर दिए गए. 
(ii) अब कंपनी का कार्य ब्रिटिश सरकार की ओर से मात्र भारत का शासन करना रह गया. 
(iii) बंगालग के गवर्नर जरनल को भारत का गवर्नर जनरल कहा जाने लगा. 
(iv) भारतीय कानूनों का वर्गीकरण किया गया तथा इस कार्य के लिए विधि आयोग की नियुक्ति की व्यवस्था की गई.

6. 1853 ई. का चार्टर अधिनियम: इस अधिनियम के द्वारा सेवाओं में नामजदगी का सिद्धांत समाप्त कर कंपनी के महत्वपूर्ण पदों को प्रतियोगी परीक्षाओं के आधार पर भरने की व्यवस्था की गई.

7. 1858 ई. का चार्टर अधिनियम: (i) भारत का शासन कंपनी से लेकर ब्रिटिश क्राउन के हाथों सौंपा गया. 
(ii) भारत में मंत्री-पद की व्यवस्था की गई. 
(iii)15 सदस्यों की भारत-परिषद का सृजन हुआ. 
(iv)भारतीय मामलों पर ब्रिटिश संसद का सीधा नियंत्रण स्थापित किया गया.

8. 1861 ई. का भारत शासन अधिनियम: गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषद का विस्तार किया गया, 
(ii) विभागीय प्रणाली का प्रारंभ हुआ, 
(iii) गवर्नर जनरल को पहली बार अध्यादेश जारी करने की शक्ति प्रदान की गई. 
(iv) गवर्नर जरनल को बंगाल, उत्तर-पश्चिमी सीमा प्रांत और पंजाब में विधान परिषद स्थापित करने की शक्ति प्रदान की गई.

9. 1892 ई. का भारत शासन अधिनियम: (i)अप्रत्यक्ष चुनाव-प्रणाली की शुरुआत हुई, 
(ii) इसके द्वारा राजस्व एवं व्यय अथवा बजट पर बहस करने तथा कार्यकारिणी से प्रश्न पूछने की शक्ति दी गई.

10. 1909 ई० का भारत शासन अधिनियम [मार्ले -मिंटो सुधार] - 
(i) पहली बार मुस्लिम समुदाय के लिए पृथक प्रतिनिधित्व का उपबंध किया गया. 
(ii) भारतीयों को भारत सचिव एवं गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी परिषदों में नियुक्ति की गई. 
(iii) केंद्रीय और प्रांतीय विधान-परिषदों को पहली बार बजट पर वाद-विवाद करने, सार्वजनिक हित के विषयों पर प्रस्ताव पेश करने, पूरक प्रश्न पूछने और मत देने का अधिकार मिला. 
(iv) प्रांतीय विधान परिषदों की संख्या में वृद्धि की गई।
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2019-01-27 08:22:21
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2019-01-27 08:04:49 सँविधान के 21 Fact:

Fact No. 1: संविधान को English में “Constitution ” कहा जाता है.

Fact No. 2: भारत के संविधान को बनाने में डॉ भीमराव अम्बेडकर ने अपनी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी. इसीलिए डॉ अम्बेडकर को संविधान का निर्माता कहा जाता है.

Fact No. 3: संविधान बनाने वाली कमिटी के अध्यक्ष डॉ राजेंद्र प्रसाद को बनाया गया था.

Fact No. 4: भारत का संविधान पूरे विश्व में सबसे लम्बा और बड़ा संविधान है.

Fact No. 5: भारतीय संविधान पूरा हस्त लिखित है इसे श्री श्याम बिहारी रायजादा ने लिखा था.

Fact No. 6: भारतीय संविधान को बहुत ही खूबसूरती से सजाया गया था और इन पन्नों को सजाने का काम शांतिनिकेतन के कलाकारों ने किया था.

Fact No. 7: संविधान की ओरिजनल प्रतियाँ आज भी भारत के संसद में है. जहाँ इसे हीलियम के अंदर डाल कर लाइब्रेरी में रखा हुआ है.

Fact No. 8: भारतीय संविधान को बनने में 2 साल, 11 महीने और 18 दिन का समय लगा.

Fact No. 9: हमारा संविधान 26 नवंबर 1949 को बनकर पूरा तैयार हो गया था लेकिन इसे सरकार ने 26 जनवरी 1950 को लागू करवाया.

Fact No. 10: हमारे देश को विश्व का सबसे बेहतरीन संविधान माना जाता है.

Fact No. 11: भारत के मूल संविधान में 395 अनुच्छेद, 22 भाग और 8 अनुसूचियां शामिल थी. वर्तमान समय में भारतीय संविधान में 465 अनुच्छेद, 12 अनुसूचियां और 22 भाग हैं.

Fact No. 12: जब से हमारा संविधान बना है तब से लेकर अब तक संविधान में सिर्फ 124 संविधान संशोधन हुए है जो हमारे संविधान की मजबूती को दर्शाता है.

Fact No. 13: भारतीय संविधान में पहले संपत्ति का अधिकार एक मौलिक अधिकार था जिसे 44वें संशोधन द्वारा सन 1978 में हटाया गया.

Fact No. 14: भारतीय संविधान का पहला संशोधन सन 1951 में हुआ था.

Fact No. 15: संविधान के अनुसार – हमारे देश का अपना कोई धर्म नहीं है. भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है.

Fact No. 16: भारतीय संविधान में कई चीजे दूसरे देशो से ली गई है जिनमे मुख्यतः – रूस, अमेरिका, आयरलैंड, कनाडा, जापान, अफ्रीका और फ्रांस शामिल है.

Fact No. 17: अबाइड विथ मी गाने को गणतन्त्र दिवस की परेड में बजाया जाता है.

Fact No. 18: हमारा देश संविधान बनने से पहले ब्रिटिश सरकार बनाये गये एक्ट 1935 को मानता था.

Fact No. 19: संविधान के अनुसार – भारत रत्न, पद्म भूषण और कीति चक्र पुरस्कार गणतंत्र दिवस के दिन ही वितरित किये जाते है.

Fact No. 20: संविधान के अनुसार – स्वतंत्रता दिवस पर देश के लिए संबोधन प्रधानमंत्री द्वारा किया जाता है वही गणतंत्र दिवस पर देश के लिए सम्बोधन राष्ट्रपति करता है.

Fact No. 21: भारतीय संविधान द्वारा देश के नागरिको को 6 मौलिक अधिकार दिए गये है.
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2019-01-26 18:51:46 भारतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्त्रोत हैं, लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव भारतीय शासन अधिनियम 1935 का है. भारत के संविधान के निर्माण में निम्न देशों के संविधान से सहायता ली गई है:

(1) संयुक्त राज्य अमेरिका: मौलिक अधिकार, न्यायिक पुनरावलोकन, संविधान की सर्वोच्चता, न्यायपालिका की स्वतंत्रता, निर्वाचित राष्ट्रपति एवं उस पर महाभियोग, उपराष्ट्रपति उच्चतम एवं उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को हटाने की विधि एवं वित्तीय आपात.

(2) ब्रिटेन: संसदात्मक शासन-प्रणाली, एकल नागरिकता एवं विधि निर्माण प्रक्रिया.

(3) आयरलैंड: नीति निर्देशक सिद्धांत, राष्ट्रपति के निर्वाचक-मंडल की व्यवस्था, राष्ट्रपति द्वारा राज्य सभा में साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज-सेवा इत्यादि के क्षेत्र में ख्यातिप्राप्त व्यक्तियों का मनोनयन, आपातकालीन उपबंध.

(4) ऑस्ट्रेलिया: प्रस्तावना की भाषा, समवर्ती सूची का प्रावधान, केंद्र एवं राज्य के बीच संबंध तथा शक्तियों का विभाजन.

(5) जर्मनी: आपातकाल के प्रवर्तन के दौरान राष्ट्रपति को मौलिक अधिकार संबंधी शक्तियां.

(6) कनाडा: संघात्‍मक विशेषताएं अवशिष्‍ट शक्तियां केंद्र के पास.

(7) दक्षिण अफ्रीका: संविधान संशोधन की प्रक्रिया प्रावधान.

(8) रूस: मौलिक कर्तव्यों का प्रावधान.

(9) जापान: विधि द्वारा स्थापित प्रक्रिया.

नोट: भारतीय संविधान के अनेक देशी और विदेशी स्त्रोत हैं, लेकिन भारतीय संविधान पर सबसे अधिक प्रभाव 'भारतीय शासन अधिनियम: 1935 का है. भारतीय संविधान के 395 अनुच्छेदों में से लगभग 250 अनुच्छेद ऐसे हैं, जो 1935 ई० के अधिनियम से या तो शब्दश: लिए गए हैं या फिर उनमें बहुत थोड़ा परिवर्तन किया गया है।
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