2023-04-19 18:43:19
मंदिर वास्तुकला (कला और संस्कृति)मंदिर निर्माण की प्रक्रिया का आरंभ तो मौर्य काल से ही शुरू हो गया था किंतु आगे चलकर उसमें सुधार हुआ और गुप्त काल को मंदिरों की विशेषताओं से लैस देखा जाता है।
संरचनात्मक मंदिरों के अलावा एक अन्य प्रकार के मंदिर थे जो चट्टानों को काटकर बनाए गए थे। इनमें प्रमुख है महाबलिपुरम का रथ-मंडप जो 5वीं शताब्दी का है।
गुप्तकालीन मंदिर आकार में बेहद छोटे हैं- एक वर्गाकार चबूतरा (ईंट का) है जिस पर चढ़ने के लिये सीढ़ी है तथा बीच में चौकोर कोठरी है जो गर्भगृह का काम करती है।
कोठरी की छत भी सपाट है व अलग से कोई प्रदक्षिणा पथ भी नहीं है।
इस प्रारंभिक दौर के निम्नलिखित मंदिर हैं जो कि भारत के प्राचीनतम संरचनात्मक मंदिर हैं: तिगवा का विष्णु मंदिर (जबलपुर, म.प्र.), भूमरा का शिव मंदिर (सतना, म.प्र.), नचना कुठार का पार्वती मंदिर (पन्ना, म.प्र.), देवगढ़ का दशावतार मंदिर (ललितपुर, यू.पी.), भीतरगाँव का मंदिर (कानपुर, यू.पी.) आदि।
मंदिर स्थापत्य संबंधी अन्य नाम, जैसे- पंचायतन, भूमि, विमान भद्ररथ, कर्णरथ और प्रतिरथ आदि भी प्राचीन ग्रंथों में मिलते हैं।
छठी शताब्दी ईस्वी तक उत्तर और दक्षिण भारत में मंदिर वास्तुकला शैली लगभग एकसमान थी, लेकिन छठी शताब्दी ई. के बाद प्रत्येक क्षेत्र का भिन्न-भिन्न दिशाओं में विकास हुआ।
आगे ब्राह्मण हिन्दू धर्म के मंदिरों के निर्माण में तीन प्रकार की शैलियों नागर, द्रविड़ और बेसर शैली का प्रयोग किया गया।
Join us- https://t.me/CAREERCOACHINGPONT
Contact us- 9897969951/ 6306811134
373 views15:43