2023-04-13 04:01:20
जलियांवाला बाग हत्याकांड, आइए विस्तृत में समझते हैंजलियांवाला बाग हत्याकांड भारतीय इतिहास में एक कलंकित घटना है। अमृतसर के जलियांवाला बाग में जब एक भीड़ शांतिपूर्ण तरीके से इकट्ठी हुई थी, तो ब्रिटिश सरकार ने उस पर गोली चलवा दी थी। जिसमें अनेक निर्दोष और निहत्थे लोग मारे गए थे।
अंग्रेजों की गोली से बचने के लिए अनेक लोग उसी बाग में मौजूद एक कुएँ में कूद गए थे। इसके कारण भी अनेक लोग इस कुख्यात घटना के दौरान मारे गए थे। यह घटना भारतीय इतिहास में ‘जलियांवाला बाग हत्याकांड’ के नाम से जानी जाती है।
जलियांवाला बाग हत्याकांड – पृष्ठभूमिजब लोग रौलेट एक्ट के विरुद्ध प्रदर्शन कर रहे थे, तो 9 अप्रैल, 1919 को दो राष्ट्रवादी नेताओं सैफुद्दीन किचलु और डॉ. सत्यपाल को ब्रिटिश सरकार द्वारा गिरफ्तार कर लिया गया था। परिणाम स्वरूप भारतीयों का एक बड़ा वर्ग उद्वेलित हो उठा था।
फिर अगले ही दिन 10 अप्रैल, 1919 को लोग सत्याग्रहियों पर गोली चलाने तथा राष्ट्रवादी नेताओं को जबरन पंजाब से बाहर भेजने का विरोध कर रहे थे। अंततः यह विरोध हिंसक हो गया और इस हिंसा के दौरान कुछ अंग्रेज भी मारे गए थे।
जलियांवाला बाग हत्याकांड का घटनाक्रमइस उपद्रव को शांत करने के लिए क्षेत्र में मार्शल कानून लागू किया गया और स्थिति से निपटने की जिम्मेदारी एक ब्रिटिश सैन्य अधिकारी जनरल डायर को सौंपी गई। डायर ने 13 अप्रैल, 1919 को एक घोषणा जारी कर कहा कि लोग बिना पास के शहर बाहर न छोड़ें तथा तीन से अधिक लोग एक साथ एकत्रित न हों।
13 अप्रैल को वैसाखी के दिन डायर की घोषणा से अनजान लोगों का एक समूह वैसाखी मनाने के लिए अमृतसर के जलियांवाला बाग में एकत्रित हुआ था। इसी स्थल पर कुछ स्थानीय नेताओं ने भी विरोध सभा का आयोजन किया था।
इस दौरान विरोध प्रदर्शन और त्यौहार का आयोजन शांतिपूर्ण तरीके से चल रहा था। इस अवसर पर रौलेट अधिनियम की समाप्ति संबंधी और 10 अप्रैल की गोलीबारी की निंदा संबंधी दो प्रस्ताव पारित किए गए।
लेकिन जनरल डायर ने इस सभा को सरकारी आदेश की अवहेलना मानकर बिना किसी पूर्व चेतावनी के वहाँ जमा लोगों पर गोलियाँ चलवा दीं तथा वहाँ से निकासी के सभी मार्ग बंद कर दिए।
ब्रिटिश सरकार द्वारा किए गए इस निर्मम दमन के कारण लगभग 1000 लोग मारे गये। इस दौरान मरने वालों में युवा, महिलाएँ, वृद्ध, बच्चे सभी उम्र के लोग शामिल थे। इस निर्लज्ज व कुख्यात जलियांवाला बाग हत्याकांड से पूरा देश सन्न रह गया था। यह एक हिंसक जानवर द्वारा अपने शिकार के प्रति की जाने वाली क्रूरता से भी अधिक दर्दनाक कृत्य था। सम्पूर्ण देश में इस बर्बर हत्याकांड की निंदा की गई थी।
जलियांवाला बाग हत्याकांड के परिणाम या इसके विरुद्ध प्रतिक्रियाजलियांवाला बाग हत्याकांड के विरोध में रवीन्द्रनाथ टैगोर ने अपनी ‘नाइटहुड’ की उपाधि का त्याग कर दिया था। इसके अलावा, वायसराय की कार्यकारिणी के भारतीय सदस्य शंकरराम नागर ने कार्यकारिणी से इस्तीफा दे दिया था।
इस कुख्यात हत्याकांड की घटना से पहले तक तो सभी स्थानों पर सत्याग्रह शांतिपूर्ण तरीके से संचालित किया जा रहा था, लेकिन इस हत्याकांड के बाद देश के अनेक स्थानों पर सत्याग्रहियों ने अहिंसा का परित्याग कर दिया और हिंसा का मार्ग अपना लिया।
इसके चलते गाँधी जी ने 18 अप्रैल, 1919 को सत्याग्रह को समाप्त करने की घोषणा कर दी थी क्योंकि गाँधी जी का मत था कि सत्याग्रह में हिंसा का कोई स्थान नहीं होता है।
एक इतिहासकार ए.पी.जे. टेलर ने जलियांवाला बाग हत्याकांड की घटना के विषय में लिखा कि “जलियांवाला बाग जनसंहार भारतीय इतिहास में एक ऐसा निर्णायक मोड़ था कि इसके बाद भारत के लोग ब्रिटिश शासन से अलग हो गए।”
इस कुख्यात हत्याकांड के बाद एक राष्ट्रवादी क्रांतिकारी उधम सिंह ने इसके लिए जिम्मेदार अंग्रेज अधिकारी से बदला लेने की ठानी और उन्होंने अपना नाम बदलकर राम मोहम्मद सिंह आजाद रख लिया। वास्तव में, वर्ष 1919 में हुए पंजाब में विरोध प्रदर्शन को निर्मम तरीके से लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर ने कुचला था। किस अंग्रेज अधिकारी से बदला लेने के लिए उधम सिंह ब्रिटेन चले गए थे और वहां पर उन्होंने लेफ्टिनेंट गवर्नर माइकल ओ डायर की हत्या कर दी थी। इस अपराध के कारण ब्रिटिश सरकार ने वर्ष 1940 में उधम सिंह को दोषी करार देते हुए फांसी दे दी थी। वर्ष 1974 में भारत सरकार द्वारा राष्ट्रवादी क्रांतिकारी उधम सिंह की अस्थियों को भारत लाया गया था।
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