2021-04-23 11:29:38
ब्रह्मचर्य का तात्त्विक अर्थ
‘ब्रह्मचर्य’ शब्द बड़ा चित्ताकर्षक और पवित्र शब्द है | इसका स्थूल अर्थ तो यही प्रसिद्ध है कि जिसने शादी नहीं की है, जो काम-भोग नहीं करता है, जो स्त्रियों से दूर रहता है आदि-आदि | परन्तु यह बहुत सतही और सीमित अर्थ है | इस अर्थ में केवल वीर्यरक्षण ही ब्रह्मचर्य है | परन्तु ध्यान रहे, केवल वीर्यरक्षण मात्र साधना है, मंजिल नहीं | मनुष्य जीवन का लक्ष्य है अपने-आपको जानना अर्थात् आत्म-साक्षात्कार करना | जिसने आत्म-साक्षात्कार कर लिया, वह जीवन्मुक्त हो गया | वह आत्मा के आनन्द में, ब्रह्मानन्द में विचरण करता है | उसे अब संसार से कुछ पाना शेष नहीं रहा | उसने आनन्द का स्रोत अपने भीतर ही पा लिया | अब वह आनन्द के लिये किसी भी बाहरी विषय पर निर्भर नहीं है | वह पूर्ण स्वतंत्र है | उसकी क्रियाएँ सहज होती हैं | संसार के विषय उसकी आनन्दमय आत्मिक स्थिति को डोलायमान नहीं कर सकते | वह संसार के तुच्छ विषयों की पोल को समझकर अपने आनन्द में मस्त हो इस भूतल पर विचरण करता है | वह चाहे लँगोटी में हो चाहे बहुत से कपड़ों में, घर में रहता हो चाहे झोंपड़े में, गृहस्थी चलाता हो चाहे एकान्त जंगल में विचरता हो, ऐसा महापुरुष ऊपर से भले कंगाल नजर आता हो, परन्तु भीतर से शहंशाह होता है, क्योंकि उसकी सब वासनाएँ, सब कर्त्तव्य पूरे हो चुके हैं | ऐसे व्यक्ति को, ऐसे महापुरुष को वीर्यरक्षण करना नहीं पड़ता, सहज ही होता है | सब व्यवहार करते हुए भी उनकी हर समय समाधि रहती है | उनकी समाधि सहज होती है, अखण्ड होती है | ऐसा महापुरुष ही सच्चा ब्रह्मचारी होता है, क्योंकि वह सदैव अपने ब्रह्मानन्द में अवस्थित रहता है |
स्थूल अर्थ में ब्रह्मचर्य का अर्थ जो वीर्यरक्षण समझा जाता है, उस अर्थ में ब्रह्मचर्य श्रेष्ठ व्रत है, श्रेष्ठ तप है, श्रेष्ठ साधना है और इस साधना का फल है आत्मज्ञान, आत्म-साक्षात्कार | इस फलप्राप्ति के साथ ही ब्रह्मचर्य का पूर्ण अर्थ प्रकट हो जाता है |
जब तक किसी भी प्रकार की वासना शेष है, तब तक कोई पूर्ण ब्रह्मचर्य को उपलब्ध नहीं हो सकता | जब तक आत्मज्ञान नहीं होता तब तक पूर्ण रूप से वासना निवृत्त नहीं होती | इस वासना की निवृत्ति के लिये, अंतःकरण की शुद्धि के लिये, ईश्वर की प्राप्ति के लिये, सुखी जीवन जीने के लिये, अपने मनुष्य जीवन के सर्वोच्च लक्ष्य को प्राप्त करने के लिये या कहो परमानन्द की प्राप्ति के लिये… कुछ भी हो, वीर्यरक्षणरूपी साधना सदैव अब अवस्थाओं में उत्तम है, श्रेष्ठ है और आवश्यक है |
वीर्यरक्षण कैसे हो, इसके लिये आने वाले दिनों मे यहाँ हम कुछ स्थूल और सूक्ष्म उपायों की चर्चा करेंगे |
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