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The Poem: माँ अपना आशीष बनाये रखना तू जानती है माँ तुझसे | Brahmacharya™ (ब्रह्मचर्य) Celibacy

The Poem:
माँ अपना आशीष बनाये रखना




तू जानती है माँ
तुझसे बिछड़ के खूब रोता हूँ
भटकता हूँ इधर उधर बस
कहाँ फिर चैन से सोता हूँ?


तेरी  हर उम्मीद पर ही मैं
खरा उतरना चाहता हूँ
बस तेरी  इबादत मैं
दिलो- जान से

करना चाहता हूं...


ज़िंदगी छोड़ने का विचार तो
  मुझे भी कभी आता है
  पर आत्महत्या से भला
  कौन तुंझे खुश कर पाता है

 तू बस प्रसन्न होती
उस पर मैया
जिसे हालातो से

लड़ना आता
है...


जानता हूँ कायरता
तुझे रास नही
आती
जो बस भोग विलास को अपनाएं
तू उनके  पास नही आती
तुझे तो
पवित्रता ही भांति है

जो प्रयास करे बिगड़े बच्चे
तो माँ उन्हें 

तू  ही पावन बनाती है...


माता लीला तेरी निराली है
स्याह कोयले  को तू
हीरा बनाती है
दलदल में भी
प्यारे प्यारे
उत्पल खिलाती है...
  


जिसके मन में बसी हो माँ
वहां माया टिक नही सकती
ऐसा मन रहता है पवित्र सदा
वहां विकारों की ज्वाला
कभी  जल नही सकती...


असम्भव जैसा कुछ
है नही आपके लिये
आस का दीपक माता
हमारा भी जलाए रखना..
कभी बुझ न जाए
आपके ये मासूम चिराग
इन्हें सदा
रोशन बनाए रखना...


छोड़ना नही माँ ,साथ हमारा कभी
ऐसी कृपा हम पर बरसाए रखना
खूब करें मानवता की सेवा हम
यही भाव मन मे बसाए रखना..

हे माँ
हम संतानों के आस के मोती को
विश्वास की ज्योति को
सदा ही
जलाए रखना
अपना आशीष  माता हम पर

जीवन भर बनाएं रखना...


           धन्यवाद


            


शिक्षा: प्यारे साथियों हम भाग्यशाली है, जिन्हें माँ का प्रेम मिला है। प्रत्येक व्यक्ति को यह नही मिल पाता है। अतः अपनी माँ के नाम को रोशन करने के लिये खूब पुरुषार्थ करे। और उनके आशीर्वाद पर सदा विश्वास रखे, वह कभी खाली नही जाता।

विश्वासों फलदायक:
हमारी विजय निश्चित है...

So
Never Give Up
       Keep Going



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(मातृभाव आपके संयम को पुष्ट करता है...
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