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भारतीय नौसेना को पहली बार स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रा | Abhijeet Srivastava

भारतीय नौसेना को पहली बार स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर INS विक्रांत मिलने जा रहा है. हिंद महासागर में चीन की बढ़ती शक्ति को चुनौती देने के लिए ये भारत का बड़ा कदम है. भारत के पास इस वक्त INS विक्रमादित्य भी है. 2 सितंबर को INS विक्रांत के कमीशन होने के बाद, भारत अपने दोनों समुद्री मोर्चों पर अपने एयरक्राफ्ट कैरियर तैनात कर सकेगा. 2 सितंबर को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी इस कार्यक्रम में शामिल होंगे.

2 सितंबर को INS विक्रांत के नेवी में शामिल होने के साथ ही, भारत उन देशों में शमिल हो जाएगा, जो 40 हजार टन के एयरक्राफ्ट कैरियर बनाने में सक्षम हैं।

इन देशों में अमेरिका, रूस, ब्रिटेन,चीन और फ्रांस जैसे देश थे,अब इस एलीट ग्रुप में भारत भी शामिल हो जाएगा. INS विक्रांत करीब 20 हजार करोड़ रुपये में बनकर तैयार हुआ है. इसका डिजायन नेवी के वॉरशिप डिज़ाइन ब्यूरो ने तैयार किया है. इसे कोचीन शिपयार्ड लिमिटेड ने बनाया है.

INS विक्रांत को बनाने में करीब 14 साल लगे हैं, इसका निर्माण वर्ष 2009 में ही शुरू किया गया था. पूरी तरह से स्वदेशी INS विक्रांत का नाम, भारत के पहले युद्धपोत के नाम पर रखा गया है. 1971 के युद्ध में उस वक्त के INS विक्रांत ने अहम भूमिका निभाई थी. पुराने वाले INS विक्रांत को वर्ष 1997 में डी-कमीशन किया गया था.

INS विक्रांत भारत का पहला स्वदेशी एयरक्राफ्ट कैरियर है. अब तक भारतीय नेवी में तीन एयरक्राफ्ट कैरियर रहे हैं. वर्ष 1961 से 1997 तक INS विक्रांत भारतीय नौसेना के बेड़े में मौजूद था, ये युद्धपोत ब्रिटेन से खरीदा गया था. और तब इसका नाम HMS हर्कुलिस था. इसके बाद 1987 से 2016 तक समन्दर में भारत की ताकत बना रहा INS विराट भी ब्रिटेन से खरीद गया एयरक्राफ्ट कैरियर था.

और अब फिलहाल INS विक्रमादित्य हमारी समुद्री सीमाओं की हिफाजत कर रहा है जो Made In Russia है और रूस में इसे एडमिरल गोर्शाकोव के नाम से जाना जाता था.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देश के पहले स्वदेश निर्मित विमानवाहक पोत आईएनएस विक्रांत की कमीशनिंग के दौरान भारतीय नौसेना के एक नए ध्वज का अनावरण करेंगे।

प्रधानमंत्री मोदी, नेवी को उनकी नई पहचान देने जा रहे हैं. इस दिन भारतीय नौसेना को नया झंडा मिलेगा. अभी तक भारतीय नौसेना जिस झंडे का इस्तेमाल करती थी, उसे सेंट जॉर्ज क्रॉस कहा जाता था. ये अंग्रेजी शासन का प्रतीक था, जिसे आजादी के बाद भी इस्तेमाल किया जाता रहा.

15 अगस्त को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपने संबोधन में भारत को उपनिवेशवादी सोच से उबरने की सलाह दी थी. भारतीय नौसेना का पुराना झंडा, इसी उपनिवेशवादी सोच का सांकेतिक प्रतीक था. अभी तक जिस झंडे को भारतीय नौसेना की पहचान के तौर पर इस्तेमाल किया जाता था, उसके बारे में कुछ खास बातें आपको जाननी चाहिए.

नेवी का मौजूद झंडा एक सफेद झंडा है, जिसमें लाल रंग का क्रॉस का साइन बना हुआ है. इसे सैंट जॉर्ज क्रॉस कहते हैं. सैंट जॉर्ज क्रास ब्रिटेन में एक सम्मानित संत हुआ करते थे. ब्रिटिश हुकूमूत के समय से वर्ष 1950 तक, सैंट जॉर्ज क्रॉस के झंडे पर यूनियन जैक का निशान लगा होता था. वर्ष 1950 से वर्ष 2001 तक सैंट जॉर्ज क्रॉस के झंडे से यूनियन जैक हटाकर, तिरंगा लगाया गया. 1950 में तीनों सेनाओं के निशानों का भारतीयकरण किया गया था, जिसके तहत नौसेना के झंडे में ये बदलाव किए गए थे.

वर्ष 2001 से 2004 तक इसी झंडे से सैंट जॉर्ज क्रॉस हटाकर तिरंगा और अशोक स्तंभ का चिन्ह लगाया गया. इसी झंडे में अशोक स्तंभ के नीचे युद्धपोत में इस्तेमाल होने वाला एंकर भी निशान के तौर पर इस्तेमाल किया गया. वर्ष 2004 के बाद सैंट जॉर्ज क्रॉस का झंडा वापस लाया गया, हलांकि इसमें तिरंगा और क्रॉस के बीच में अशोक स्तंभ का चिन्ह दिखाई दिया.

वर्ष 2014 में इसी झंडे में फिर अपडेट किया गया, नए झंडे में अशोक स्तंभ के नीचे सत्यमेव जयते लिखा गया. 2014 से यही झंडा आज तक इस्तेमाल किया जाता रहा है. अब 2 सितंबर को इसमें कुछ बदलाव होने जा रहा है. अब जो नया झंडे नेवी को दिया जाने वाले है उसका खुलासा 2 सितंबर को ही होगा, लेकिन माना ये जा रहा है कि नए झंडे में सेंट जॉर्ज क्रॉस को हटा दिया जाएगा, क्योंकि ये ब्रिटिश हुकूमत की याद के तौर पर देखा जाता है.

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