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मोदी सरकार द्वारा किये गए नीतिगत बदलावों के परिणामस्वरूप यह सं | Abhijeet Srivastava

मोदी सरकार द्वारा किये गए नीतिगत बदलावों के परिणामस्वरूप यह संभव नहीं है कि भारत तीव्र प्रगति ना करे।
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इस वित्तीय वर्ष (2022-23) के प्रथम तीन माह (अप्रैल-जून) में भारत की जीडीपी 13.5 प्रतिशत बढ़ी है (यह वृद्धि दर वर्ष 2011-12 के आधार पर निकाली गयी है - अर्थात मंहगाई को नहीं जोड़ा गया है)।

तुलना के लिए, इस तिमाही (अप्रैल-जून) में विश्व के लगभग सभी विकसित या विशाल देशो की जीडीपी ने केवल एक-दो प्रतिशत की वृद्धि रजिस्टर की है। चीन की जीडीपी केवल 0.4 प्रतिशत बढ़ी है।

अगर आप कहेंगे कि भारत की जीडीपी की यह वाली वृद्धि पिछले वर्ष की तिमाही में कम जीडीपी के कारण बढ़ी हुई दिख रही है, तो याद रखिए कि यही स्थिति एवं तुलना अन्य देशो की जीडीपी ग्रोथ पर लागू होती है।

अगर आज की दामों के आधार पर यह वृद्धि देखे (अर्थात मंहगाई जोड़ दी जाए), तो यह जीडीपी वृद्धि 26.7 प्रतिशत निकलती है।

आंकड़ों को आगे देखा जाए, तो कृषि ने 17.4 प्रतिशत, माइनिंग ने (खनिज) 59.5 प्रतिशत, मैन्युफैक्चरिंग ने 15.7 प्रतिशत, कंस्ट्रक्शन ने 32.7 प्रतिशत, होटल-ट्रांसपोर्ट ने 45.4 प्रतिशत, अन्य सेवाओं (वित्तीय-रियल एस्टेट) ने 20.7 प्रतिशत वृद्धि रजिस्टर की है।

इन सभी क्षेत्रो में लेबर एवं कर्मियों की आवश्यकता होती है। आप घर बैठकर माइनिंग, कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग, कृषि, होटल-ट्रांसपोर्ट इत्यादि का उद्यम नहीं कर सकते। अगर इन सभी क्षेत्रो में विशाल वृद्धि हो रही है है तो क्या यह संभव है कि भारत में रोजगार एवं नौकरी की कमी हो?

आप जीडीपी के आंकड़ों को नकार सकते है, लेकिन क्या माइनिंग, कंस्ट्रक्शन, मैन्युफैक्चरिंग, कृषि, होटल-ट्रांसपोर्ट में होने वाली वृद्धि को भी झुठला सकते है?

लेकिन मेरे लिए सबसे महत्वपूर्ण आंकड़ा है निजी उपभोग (private consumption) का है जो 61 प्रतिशत बढ़ा है; जबकि सरकारी व्यय में बढ़ोत्तरी केवल 11 प्रतिशत है।

निजी उपभोग में इतनी विशाल वृद्धि टाटा-महिंद्रा-गोदरेज-बजाज-अम्बानी-अडानी-अखिलेश-सोनिया के निजी उपभोग से नहीं होने वाली। आखिरकार यह सब लोग - और इनके जैसे अन्य लोग भी - मिलकर कितना खा लेंगे, पहन लेंगे और बनवा लेंगे?

अर्थात भारत की आम जनता की समृद्धि बढ़ रही। आम जनता के पास अब सरप्लस (अतिरिक्त) धन आ रहा है जिसका वे निजी उपभोग के लिए प्रयोग कर रहे है।

मैंने पहले भी लिखा था कि मोदी सरकार ने वही कदम उठाये है जिनकी अनुशंसा संयुक्त राष्ट्र, विश्व बैंक, अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष जैसी संस्थाएँ सभी देशो के लिए करती है। इन कदमो में प्रमुख है - सरकार अपना व्यय कम करे; उद्यम लगाने एवं बिज़नेस करने की प्रक्रिया को आसान बनाये (ease of doing business); टैक्स को सरल एवं एकीकृत (uniform) करे; नियम-कानून में पारदर्शिता लाये; सभी को वित्तीय सेवाओं - जैसे कि बैंकिंग, लोन, इंश्योरेंस, पेंशन - के घेरे में लाना (financial inclusion); फेल हो जाने वाले उद्यमों के लिए दिवालिया कानून लाए; इंफ्रास्ट्रक्चर (सड़क, बंदरगाह, रेलमार्ग, एयरपोर्ट, संचार, ट्रांसपोर्टेशन, वेयरहाउसिंग या गोदाम, बैंकिंग इत्यादि) को शक्तिशाली बनाये।

अगर यह सभी कदम उठाये जा रहे है, तो यह संभव नहीं है कि भारत तीव्र प्रगति ना करे।

साभार: अमित सिंघल जी