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दुख उधार का है, आनंद स्वयं का है| आनंदित कोई होना तो अकेले भी | अध्यात्म(ब्रह्मज्ञान)

दुख उधार का है, आनंद स्वयं का है| आनंदित कोई होना तो अकेले भी हो सकता है दुखी होना चाहे तो दूसरे की जरूरत है |
कोई धोखा दे गया ,किसी ने गाली दी, कोई तुम्हारे मन के अनुकूल ना चला ,सब दुख दूसरे से जुड़े हैं |
और आनंद का दूसरे से कोई संबंध नहीं है |आनंद स्वस्फुर्तहै |
दुख बाहर से आता है
आनंद भीतर से आता है|