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सात मंजिला देह मिली है, सात चक्रों से सजा मकान । क्यों विश्वास | अध्यात्म(ब्रह्मज्ञान)

सात मंजिला देह मिली है,
सात चक्रों से सजा मकान ।
क्यों विश्वास नहीं करते हो ,
वृथा गंँवाते मन और प्राण।

मूलाधार स्थान शक्ति का,
कुंँडली मारे लिपटा सांँप ।
ध्यान साधना से फुंँफकारे,
ऊर्जा चढ़ती फिर सिरतान।

छह पंँखुड़ियां का दल पंकज,
स्वाधिष्ठान है चक्र महान।
आत्मविश्वास से भर देता,
जब जगता करता उत्थान।

पीत वर्ण मणिपुर चक्र है ,
जागे दे संपदा अपार ।
कमल है दस पंँखुड़ी वाला ,
जो है जगाता दृढ़ विश्वास।

हृदय चक्र मध्य छाती के,
प्रेम भाव बढाता जाग।
मन भँवरा शांत हो जाता,
प्रकृति से जुड़ जाता भाव।

चक्र विशुद्धि कंठ स्थान,
करे निडर निर्भय यह जान।
आठों सिद्धि नवनिधियाँ,
सात सुरों का उद्गम स्थान ।

मैं कौन हूं ?का उत्तर देता,
है शिव नेत्र कहे पुराण।
कुंडली सहसार सुषुम्ना,
त्रिवेणी संगम सा स्थान।

सहस्त्रार मोक्ष का मार्ग है,
पूर्ण साधना परम विश्राम।
परम मिलन शिव शक्ति का,
परम समाधि मुक्तिधाम।

समय रहते जाग जा बंदे,
समय का घोड़ा बिना लगाम।
अंत समय न पछतायेगा,
सात मंजिला सजा मकान।