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*जितने भी सम्बन्ध हैं सब ऊपर से चिपकाए हुए हैं, भीतर से नहीं ह | अध्यात्म(ब्रह्मज्ञान)

*जितने भी सम्बन्ध हैं सब ऊपर से चिपकाए हुए हैं, भीतर से नहीं हैं।*

*इस जन्म से पहले जो सम्बन्ध थे, वे अब याद भी नहीं हैं। हमारा वास्तविक सम्बन्ध भगवान से है; क्योंकि हम उनके अंश हैं। भगवान के साथ हमारा सम्बन्ध स्वाभाविक है, और संसार के साथ सम्बन्ध चिपकाया हुआ है। भगवान हमारे साथ नित्य रहते हैं, पर संसार का कोई भी सम्बन्ध सदा साथ नहीं रहता। यह बात सबकी समझ में आ जानी चाहिये। *जो सम्बन्ध सदा नहीं रहता, मिट जाता है, वह सम्बन्ध है कहाँ !*
*संसार में जिनसे आपने मोहपूर्वक सम्बन्ध मान रखा है, उनकी सेवा करो और उनसे कुछ मत चाहो। सेवा करने से सम्बन्ध छूट जाता है। यह एकदम पक्की बात है, करके देख लो।*