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भाव बिना नहिं भक्ति जग,भक्ति बिना नहीं भाव। भक्ति भाव इक रू | अध्यात्म(ब्रह्मज्ञान)

भाव बिना नहिं भक्ति जग,भक्ति बिना नहीं भाव।
भक्ति भाव इक रूप है , दोऊ एक सुभाव।। 

~कबीरदास