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अशोक जी अपनी पत्नी के साथ अपनी रिटायर्ड जिंदगी बहुत हँसी खुशी | स्वयं निर्माण योजना

अशोक जी अपनी पत्नी के साथ अपनी रिटायर्ड जिंदगी बहुत हँसी खुशी गुजा़र रहे थे।

उनके तीनों बेटे अलग अलग शहरों में अपने अपने परिवारों के साथ उनसे अलग रहते थे।

लेकिन अशोक जी नें नियम बना रखा था....
#दीपावली पर तीनों बेटे सपरिवार उनके पास आते थे.
वो एक सप्ताह कैसे मस्ती में बीत जाता था...
किसी को कुछ पता ही नही चलता था।

कैसे क्या हुआ...
उनकी #खुशियों को जैसे #नज़र ही लग गई।
अचानक शीला जी को #दिल का दौरा पड़ा ...
एक झटके में उनकी सारी #खुशियाँ बिखर गईं।

तीनों बेटे दुखद समाचार पाकर दौड़े आए।
उनके सब क्रिया कर्म के बाद सब शाम को एकत्रित हो गए।

बड़ी बहू ने बात उठाई,"बाबूजी, अब आप यहाँ अकेले कैसे रह पाऐंगे , आप हमारे साथ चलिऐ।"

"नही बहू, अभी यही रहने दो।
यहाँ अपनापन लगता है। बच्चों की गृहस्थी में...।"
कहते कहते वो चुप से हो गए।

बड़ा बेटा कुछ बोलने को हुआ ,
पर उन्होंने हाथ के इशारे से उसे चुप कर दिया।

"बच्चों, अब तुम लोगों की माँ हम सबको छोड़ कर
हमेशा के लिए जा चुकी हैं। उनकी कुछ चीजें हैं ,
वो तुम लोग आपस में बांट लो।
हमसे अब उनकी साजसम्हाल नही हो पाएगी।"

ये कहते हुए अशोक जी अलमारी से कुछ निकाल कर लाए।

मखमल के थैले में बहुत सुंदर चाँदी का #श्रंगारदान था। एक बहुत सुंदर सोने के पट्टे वाली पुरानी हाथ की घड़ी थी...।

सब के सब एक साथ इतनी खूबसूरत चीजों पर लपक से पड़े।

छोटा बेटा जोश में बोला,"अरे ये घड़ी तो अम्मा सरिता को देना चाहती थी।"

अशोक जी धीरे से बोले," और सब तो मैं तुम लोगों को बराबर से दे ही चुका हूँ। इन दो चीजों से उन्हें बहुत लगाव था। बेहद चाव से कभी कभी निकाल कर देखती थीं लेकिन अब कैसे उनकी दो चीजों को तुम तीनों में बांटू ?"

सब एक दूसरे का मुँह देखने लगे।

तभी मंझला बेटा बड़े संकोच से बोला,"ये श्रंगारदान वो अक़्सर मीरा को देने की बात करती थी।"

पर समस्या तो बनी ही थी।
अब अशोक जी अपने मन में सोच रहे थे...
बड़ी बहू को क्या दूँ ??

उनके मन के भाव को शायद बड़ी बहू ने पढ़ लिए,
" बाबू जी, आप शायद मेरे विषय में सोच रहे हैं।
आप श्रंगारदान मीरा को और हाथ वाली घड़ी सरिता को दे दीजिए... अम्मा भी तो यही चाहती थी।"

"पर नन्दिनी, तुझे क्या दूँ...
समझ में नही आ रहा ?? "अशोक जी बोल पड़े ।

"आपके पास एक और अनमोल चीज़ है
और वो अम्मा जी हमेशा से मुझे ही देना चाहती थीं।"

सबके मुँह हैरानी से खुले के खुले रह गए।
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दोनों बहुऐं तो बहुत हैरान परेशान हो गईं...
अब कौन सा बेशकीमती पिटारा खुलेगा ??

सब की हैरानी और परेशानी को भाँप कर बड़ी बहू मुस्कुराते हुए बोली," वो सबसे अनमोल तो आप स्वयं हैं बाबूजी.पिछली बार अम्माजी ने मुझसे कह दिया था,
" मेरे बाद बाबूजी की देखरेख तेरे जिम्मे ।
बस अब आप उनकी इच्छा का पालन करें और
हमारे साथ चलें इसी वक़्त वो भी बिना देर किए ।

ये सुनकर अशोक जी की आँखें नम हो गई
और वहाँ मौजूद कुछ की आँखें नीची........!!