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राम।। *ज्ञानके दीप जले* _श्रद्धेय स्वामी | स्वामी रामसुखदासजी Swami RamsukhdasJi

राम।।

*ज्ञानके दीप जले*

_श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज_

*प्रह्लादजी ने भगवान् के किसी रूपका ध्यान नहीं किया था।* भगवान् 'है' रूप से विद्यमान हैं। हिरण्यकशिपु ने पूछा कि तेरा भगवान् कहाँ है ? तो वे बोले कि कहाँ नहीं हैं ? भगवान् है--यह प्रह्लादजी ने दृढ़ता से मान लिया। पिता ने उसका त्याग कर दिया तो परमपिता ने उन्हें ले लिया !

*भगवान् को 'है' मान लेने पर दर्शन देने की जिम्मेदारी भगवान् पर आ जाती है।* वे सब जगह परिपूर्ण हैं। वे ही हमारे हैं, प्रत्युत इसमें जो परिपूर्ण है, वही हमारा है।

अतः साधक सत्तामात्र का ध्यान करे। *भगवान कैसे हैं--इसको तो भगवान खुद भी नहीं जानते, फिर हम कैसे जानेंगे ?* (साधन-सुधा-निधि पृष्ठ ४७७)

*राम ! राम !! राम !!!*