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स्वामी रामसुखदासजी Swami RamsukhdasJi

टेलीग्राम चैनल का लोगो swamiramsukhdasji — स्वामी रामसुखदासजी Swami RamsukhdasJi
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चैनल का पता: @swamiramsukhdasji
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भाषा: हिंदी
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चैनल से विवरण

Ram. Teachings and Sermons of Swami RamsukhdasJi.
राम। स्वामी रामसुखदासजी के प्रवचन और सिद्धांत।

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2021-12-13 02:00:24
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2021-12-13 01:49:50 राम।।

*ज्ञानके दीप जले*

_श्रद्धेय स्वामी जी श्रीरामसुखदास जी महाराज_

*प्रह्लादजी ने भगवान् के किसी रूपका ध्यान नहीं किया था।* भगवान् 'है' रूप से विद्यमान हैं। हिरण्यकशिपु ने पूछा कि तेरा भगवान् कहाँ है ? तो वे बोले कि कहाँ नहीं हैं ? भगवान् है--यह प्रह्लादजी ने दृढ़ता से मान लिया। पिता ने उसका त्याग कर दिया तो परमपिता ने उन्हें ले लिया !

*भगवान् को 'है' मान लेने पर दर्शन देने की जिम्मेदारी भगवान् पर आ जाती है।* वे सब जगह परिपूर्ण हैं। वे ही हमारे हैं, प्रत्युत इसमें जो परिपूर्ण है, वही हमारा है।

अतः साधक सत्तामात्र का ध्यान करे। *भगवान कैसे हैं--इसको तो भगवान खुद भी नहीं जानते, फिर हम कैसे जानेंगे ?* (साधन-सुधा-निधि पृष्ठ ४७७)

*राम ! राम !! राम !!!*
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2021-12-12 19:38:17
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2021-12-11 20:37:43 राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

*परिशिष्ट भाव*

सुख दु:ख का कारण दूसरे को मानने से ही राग -द्वेष होते हैं अर्थात् जिस को सुख देने वाला मानते हैं, उसमें राग हो जाता है और जिसको दु:ख देने वाला मानते हैं, उसमें द्वेष हो जाता है । अतः राग -द्वेष अपनी भूल से पैदा होते हैं, इसमें दूसरा कोई कारण नहीं है । राग -द्वेष होने के कारण ही संसार भगवत्स्वरूप नहीं दीखता, प्रत्युत जड़ और नाशवान् दीखता है । अगर राग -द्वेष न हों तो जड़ता है ही नहीं, प्रत्युत सब कुछ चिन्मय परमात्मा ही हैं - ' *वासुदेव: सर्वम्'* ( गीता ७/१९) ।

परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा रचित ग्रंथ गीता साधक संजीवनी अध्याय तृतीय श्लोक संख्या ३४ पृष्ठ संख्या २४६

राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

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2021-12-11 09:12:18
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2021-12-11 09:11:27
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2021-12-11 09:09:58 ।। श्रीहरिः ।।
*।। ऊँ श्रीपरमात्मने नमः ।।*
*परमप्रभु अपने ही महुँ पायो १२५*

*स्त्री-पुरुषका संग ही 'काम' नहीं है, प्रत्युत कोई भी नाशवान् वस्तु प्यारी लगती है तो वह 'काम' है ।* मनुष्य मकान बनाता है, उसको सजाता है, सुन्दर बनाता है *तो यह सब काम है ।* *यह काम ही प्रेममें बाधक है ।* भगवान् के स्मरणमें, नामजपमें, कीर्तनमें मस्त हो जाय तो प्रेम हो जायगा और *काम नष्ट हो जायगा । बिना प्रेमके काम नष्ट नहीं होता ।* वह प्रेम चाहे भगवान् के नाममें हो जाय, चाहे भगवान् के धाममें हो जाय, चाहे भगवान् की लीलामें हो जाय, चाहे भगवान् के चरित्रोंमें हो जाय *तो काम नष्ट हो जायगा ।* भगवान् मेरे हैं - इस तरह भगवान् में *आकर्षण* हो जाय । *रामायणकी* समाप्तिमें एक दोहा आता है -

*कामिहि नारि पिआरि जिमि*
*लोभिहि प्रिय जिमि दाम ।*
*तिमि रघुनाथ निरंतर*
*प्रिय लागहु मोहि राम ।।*
(मानस, उत्तर० १३० ख )

* * * *

शेष आगामी पोस्टमें

परमप्रभु अपने ही महुँ पायो
श्रद्धैय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज
पृष्ठ संख्या ८७

नारायण! नारायण! नारायण!
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2021-12-11 09:09:58 *हे नाथ पुकार की महिमा। परम् श्रधेय स्वामी श्री रामसुखदास जी महाराज*
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2021-12-11 09:01:02
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2021-12-11 08:59:29 *अमृत-बिन्दु - भक्त*

जिस भक्तको अपनेमें कुछ भी विशेषता नहीं दीखती, अपनेमें किसी बातका अभिमान नहीं होता, उस भक्तमें भगवान् की विलक्षणता उतर आती है।

*- श्रद्धेय स्वामीजी श्रीरामसुखदासजी महाराज*
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