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राम ! राम !! राम !!! राम !!!! *परिशिष्ट भाव* स | स्वामी रामसुखदासजी Swami RamsukhdasJi

राम ! राम !! राम !!! राम !!!!

*परिशिष्ट भाव*

सुख दु:ख का कारण दूसरे को मानने से ही राग -द्वेष होते हैं अर्थात् जिस को सुख देने वाला मानते हैं, उसमें राग हो जाता है और जिसको दु:ख देने वाला मानते हैं, उसमें द्वेष हो जाता है । अतः राग -द्वेष अपनी भूल से पैदा होते हैं, इसमें दूसरा कोई कारण नहीं है । राग -द्वेष होने के कारण ही संसार भगवत्स्वरूप नहीं दीखता, प्रत्युत जड़ और नाशवान् दीखता है । अगर राग -द्वेष न हों तो जड़ता है ही नहीं, प्रत्युत सब कुछ चिन्मय परमात्मा ही हैं - ' *वासुदेव: सर्वम्'* ( गीता ७/१९) ।

परम श्रद्धेय स्वामी जी श्री रामसुखदास जी महाराज जी द्वारा रचित ग्रंथ गीता साधक संजीवनी अध्याय तृतीय श्लोक संख्या ३४ पृष्ठ संख्या २४६

राम ! राम !! राम !!! राम !!!!