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प्रशासक समिति हिन्दी चैनल

टेलीग्राम चैनल का लोगो prashasaksamitiofficial — प्रशासक समिति हिन्दी चैनल
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चैनल का पता: @prashasaksamitiofficial
श्रेणियाँ: धर्म
भाषा: हिंदी
ग्राहकों: 11.99K
चैनल से विवरण

उद्देश्य : हिन्दुओं को जगाना, उनमें राष्ट्रीयता, हिन्दुत्व की भावना भरना है। बौद्धिक रूप व ह्रदय से हिन्दूवादी, देशभक्त बनाना है, जिससे विधर्मियो का प्रतिकार कर सकें व देशविरोधी ताकतो से लड़ सकें।
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नवीनतम संदेश 26

2023-01-06 09:29:14 प्रशासक समिति (Reg. ESWS)

Koo : 06/01/2023

RSS के प्रति जैन मुनि श्री पुलक सागर जी महाराज के विचार

आरएसएस एक राष्ट्रवादी संगठन है, जो भारत माता की सेवा और रक्षा के ध्येय के साथ आगे बढ़ रहा है, लेकिन कुछ लोग द्वेषवश अथवा कुछ लोग स्वार्थ वश आरएसएस को बदनाम करते हैं।

लेकिन कुछ लोग जानकारी  के अभाव में भी आरएसएस के प्रति गलत धारणा बना लेते हैं,

उन्हें ये वीडियो अवस्य देखना चाहिए और आरएसएस को समझना चाहिए

संघ शक्ति कलियुगे

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2023-01-06 08:58:25
#StatusVideo #JaiLaxmiMata
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2023-01-06 07:10:01 प्रशासक समिति (Reg. ESWS)

धर्मशिक्षा - ३५४

धार्मिक कृति - ३५९

आचारधर्म - १०१

भोजन के संदर्भ आचार - ७८

रसोई के आचार - ०९

मंद आंच पर अन्न पकाने के लाभ


आज के इस आधुनिक समय में भोजन पकाने के बहुत से उपकरण उपलब्ध हैं, जैसे भाप के दबाव से खाना पकाने का बर्तन (प्रेशर कुकर), सूक्ष्म तरंग चूल्हा (माइक्रोवेव ओवन) इत्यादि। पूर्वकाल में धीमी आंच पर ही अन्न पकाया जाता था।इसके लाभ आगे दिए अनुसार हैं।

१. अन्न पदार्थों की जीवरस-संबंधी रिक्तियों में विद्यमान घटक जागृत होना
अन्न पदार्थों की जीवरस-संबंधी (आरोग्य के लिए पूरक एवं पोषक रस) रिक्तियों में विद्यमान घटक मंद अग्नि की सहायता से आवश्यकतानुसार रजोगुण ग्रहण करते हुए जागृत अवस्था में आते हैं।

२. जीवद्रव्यों का ह्रास टलना
मंदाग्नि केवल अन्न पकाने हेतु और उसके जीवद्रव्यों का संवर्धन कर उन्हें सक्रिय बनाने हेतु आवश्यक उत्तेजना प्रदान कर अन्न को आगे की प्रक्रिया हेतु तुरंत सिद्ध करती है।इससे रूपांतरित प्रक्रिया में होने वाले जीवद्रव्यों का ह्रास टालने में मनुष्य सफल हो जाता है।

३. सूक्ष्म प्राणशक्तिदायी वायु का ह्रास होना
उचित पद्धति से प्राकृतिक स्तर पर उष्ण ऊर्जा की सहायता से अन्न में भाप का संचय करने में सहायता मिलती है।इसलिए अन्न से सूक्ष्म स्तर पर धीरे-धीरे उत्सर्जित सूक्ष्म प्राण शक्तिदायी वायु का भी ह्रास नहीं होता; अपितु वह निरंतर कार्यरत अवस्था में रहती हैं।

४. देह के पंचप्राणों को कार्यरत करना
ऐसे अन्न का सेवन करने पर देह के पंचप्राणों को कार्यरत कर तथा जठराग्नि को प्रदीप्त कर उसी में विलीन होकर देह को दीर्घकाल तक अपने पोषण संबंधी मूल्यों से लाभान्वित कराता है। इसी से मंद आंच पर अन्न पकाने का महत्त्व समझ में आता है।’

आगे : -  तरकारी (सब्जी) काटने की उचित पद्धति

Ref : hindujagruti.org/hindi/



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2023-01-06 06:56:41 प्रशासक समिति (Reg. E&SWS)

चाणक्य नीति

चाणक्य सूत्र : - ५४७

॥ साहसवतां प्रियं कर्तव्यम् ॥

भावार्थ : साहसी पुरुषों को अपना कर्त्तव्य प्रिय होता है।

साहसी पुरुष केवल अपने कर्त्तव्य की ओर ध्यान देते हैं। वे असत्य का सदैव विरोध करते हैं। असत्य का सहारा लेने वाला व्यक्ति कभी विश्वसनीय नहीं हो सकता। असत्य को सत्य से ही परास्त किया जा सकता है॥५४७॥

क्रमशः ...

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2023-01-06 06:29:03 प्रशासक समिति (Reg. E&SWS)

वेदपाठन - आओ वेद पढ़ें
 
ऋग्वेद

मंडल - प्रथम , सूक्त - १०५
मंत्र - १८ , १९ ; देवता - विश्वेदेव

अरुणो मा सकृद्वृकः पथा यन्तं ददर्श हि।
उज्जिहीते निचाय्या तष्टेव पृष्ट्यामयी वित्तं मे अस्य रोदसी॥१८॥

भावार्थ : लाल रंग के वृक ने मुझे एक बार मार्ग में जाते हुए देखा। वह मुझे देखकर इस प्रकार ऊपर उछला, जिस प्रकार पीठ की वेदना वाला काम करते-करते सहसा उठ पड़ता है। है धरती और आकाश ! मेरे इस कष्ट को जानो॥१८॥

एनाङ्गूषेण वयमिन्द्रवन्तोऽभि ष्याम वृजने सर्ववीराः।
तन्नो मित्रो वरुणो मामहन्तामदितिः सिन्धुः पृथिवी उत द्यौः॥१९॥

भावार्थ : घोषणा योग्य इस स्तोत्र के कारण इंद्र का अनुग्रह पाए हुए हम लोग पुत्र, पौत्रों आदि के साथ संग्राम में शत्रुओं को हरावें। मित्र, वरुण, अदिति, सिंधु, पृथ्वी एवं आकाश हमारी इस प्रार्थना का आदर करें॥१९॥

सूक्त १०५ समाप्त

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2023-01-06 05:56:43 प्रशासक समिति (Reg. E&SWS)

वेदपाठन

श्रीमद बाल्मीकि रामायणम

  बालकाण्ड:

॥ त्रिषष्टितमः सर्गः॥ (सर्ग ६३)

ब्रह्मणस्तु वचः श्रुत्वा विश्वामित्रस्तपोधनः॥१९॥

प्राञ्जलिः प्रणतो भूत्वा प्रत्युवाच पितामहम्।
ब्रह्मर्षिशब्दमतुलं स्वार्जितैः कर्मभिः शुभैः॥२०॥

यदि मे भगवन्नाह ततोऽहं विजितेन्द्रियः।

भावार्थ : ब्रह्माजी का यह वचन सुनकर तपोधन विश्वामित्र हाथ जोड़ प्रणाम करके उनसे बोले- 'भगवन् ! यदि अपने द्वारा उपार्जित शुभ कर्मों के फल से मुझे आप ब्रह्मर्षि का अनुपम पद प्रदान कर सकें तो मैं अपने को जितेन्द्रिय समझूँगा'॥१९-२०½॥

तमुवाच ततो ब्रह्मा न तावत् त्वं जितेन्द्रियः॥२१॥
यतस्व मुनिशार्दूल इत्युक्त्वा त्रिदिवं गतः।

भावार्थ : तब ब्रह्मा जी ने उनसे कहा - मुनिश्रेष्ठ! अभी तुम जितेन्द्रिय नहीं हुए हो इसके लिये प्रयत्न करो।' ऐसा कहकर वे स्वर्गलोक को चले गये २१½॥

क्रमशः ...



अहिंसा परमोधर्मः धर्म हिंसातथैव च:

अहिंसा मनुष्य का परम धर्म है, और धर्म की रक्षा के लिए हिंसा करना उससे भी श्रेष्ठ है..!!

जब जब धर्म (सत्य) पर संकट आये तब तब तुम शस्त्र उठाना
         
      
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2023-01-06 03:34:44
श्रीमद्भागवत गीता श्रवणामृत (मोक्षसन्यास योग)

अध्याय - १८ ; श्लोक - ४५

शुक्रवार, ०६/०१/२०२३, पौष, स्नान दान, पूर्णिमा

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