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जिन पलों में हित साधकों के हित साधने का ज़रिया बनी रही ठीक उन्ह | Posham Pa ― a Hindi literary website

जिन पलों में हित साधकों के हित साधने का ज़रिया बनी रही
ठीक उन्ही पलों में कर सकती थी सृजन
मन के भीतर और बाहर के आह्लाद से
या
बेफ़िक्री की एक लम्बी नींद
को बुला सकती थी आँखों में…

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