मेरे साथ कौन आता है? यह चुनौती नहीं है। क्योंकि चुनौती की भाषा | Posham Pa ― a Hindi literary website
मेरे साथ कौन आता है? यह चुनौती नहीं है। क्योंकि चुनौती की भाषा अब मुझसे बोली नहीं जाती। मैं इतने दिनों तक निस्तब्ध सोचता रहा हूँ कि मेरी आवाज़ भारी हो गई है और मुझसे सिवाय विनय के कोई दूसरी बे-पाखण्ड मुद्रा बाक़ी नहीं रह गई है। इसलिए मैं भरसक साधारण आवाज़ में पूछता हूँ मेरे साथ कौन आता है?