2023-03-09 07:54:58
पिछले 5-7 सालों में एक बात अच्छी हुई है..... हम फिर से अपने त्यौहार मनाने लग गए हैं... और जोर शोर से मनाने लग गए हैं.
वरना पिछले 2 दशकों से चल रहे गुप चुप प्रोपेगंडा के कारण हम अपने त्यौहारो को भुला ही चुके थे.... टीवी फ़िल्में और अखबारो में बताई बातों को सुनते देखते यह सब त्यौहार हमें बेमानी से लगने लगे थे.
चाहे शिवरात्रि पर जल या दूध चढ़ाने को बुरा बताना हो... होली पर रंग गुलाल और पानी से खेलने को बुरा बताना हो..... दिवाली पर पटाखे से होने वाले प्रदूषण या जानवरो की तकलीफ हो...... रक्षाबंधन पर Equality Patriarchy का concept हो... चाहे करवाचौथ को कुरीति या महिला अधिकार विरोधी बताना हो...... एक वर्ग विशेष ने Media फिल्मों नाटकों आदि का सहारा ले कर इन सभी त्यौहारो की छवि को बिगाड़ने का काम किया.
याद कीजिए जब कोई भी त्यौहार आता था.. एकाएक मिलावटी मावा मिलने की ख़बरों से अखबार भर जाया करते थे...... लोगों के मन में यह Plant किया गया कि मावा तो नकली होता है... मीठा खाना है तो चॉकलेट खाइये.
मैं खबरों पर निगाह रखता हूँ.... दावे से कह सकता हूँ कि पिछले कुछ सालों से मिलावटी मावे की खबरे आना बहुत कम हो गई हैं....लेकिन इसी बीच चॉकलेट ने त्यौहार पर मिठाई का एक बड़ा market कब्ज़ा लिया है.
त्यौहारो पर भीड़ भाड़ के इलाकों में चेतावनी मिला करती थी.... बम विस्फोट हुआ करते थे... लोगों ने त्यौहारो के समय बाहर जाना, समारोहो में जाना बंद कर दिया था.
एक प्रोपेगंडा चला कर समाज में Guilt की भावना बैठा दी गई.... कि आप पानी से खेलेंगे तो कितना नुकसान होगा... आप पठाखे चलाएंगे तो वातावरण खराब होगा.... पत्नी से व्रत करवाएंगे तो महिला विरोधी कहलाएंगे.... बहन को रक्षा का वचन दे कर उसे दोयम दर्जे का होने का अहसास करायेंगे...... शिवरात्रि पर दूध चढ़ा कर आप ना जाने कौन सा पाप कर रहे हैं.
और धीरे धीरे यही guilt आपको त्यौहारो से दूर ले जाती गई...... यह प्रवृति और भी बढ़ती... लेकिन तभी आता है Social Media.... एक ऐसा माध्यम जिसमें हर इंसान की भागीदारी होती है... जो One-Way ना हो कर एक Hybrid model है.. जहाँ कोई भी अपने विचार रख सकता है...
लोगों ने त्यौहारो के पीछे छुपे विज्ञान और धार्मिक मान्यताओं को सामने रखना शुरू किया... तथ्यों को रखना शुरू किया... इससे जो प्रोपेगंडा चल रहा था, वह धीरे धीरे टूटना शुरू हुआ.... लोगों को समझ आया कि हम तो बेवजह Guilt में जी रहे थे.... और यही कारण है कि अब लोगों ने बढ़ चढ़ कर त्यौहारो और धार्मिक गतिविधियों में भाग लेना शुरू कर दिया है.
आज शहरों में हर सोसाइटी में त्यौहार मनाये जाते हैं.... बाकायदा Planning होती है.. पैसा इकठ्ठा किया जाता है... पूरे जोरशोर से किया जाता है... और सबसे अच्छी बात है कि हमारा 10 साल से लेकर 45 साल तक का जो वर्ग है.. उसका Participation बहुत ज्यादा होता है इन गतिविधियों में.
और यह सिर्फ त्यौहारो तक ही सीमित नहीं है....26 जनवरी और 15 अगस्त जैसे राष्ट्रीय पर्व भी कहीं अधिक जोर शोर से मनाये जाने लगे हैं... वहीं छठ, नवरात्री, लोहड़ी, जन्माष्टमी, गणेश चतुर्थी जैसे पर्व अब कहीं ज्यादा व्यापक स्तर पर मनाये जाते हैं.... और इसका प्रभाव अब टीवी सीरियल, OTT पर भी दिखता है... जहाँ इन त्यौहारो के समय स्पेशल एपिसोड बनाये जाते हैं... और उसमे इन त्यौहारो को अच्छे तरीके से चित्रित भी किया जाता है.
आपको जानकार अच्छा लगेगा कि राम जन्म भूमि के लिए चंदा जमा करने जैसे काम में सबसे ज्यादा भाग लिया था IT, Banking, Marketing, Education और private sector के लोगों ने.... बड़ी बड़ी कंपनियों में Director, GM, VP जैसे लोग भी इन गतिविधियों में खुल कर भाग ले रहे थे.
कुल मिलाकर बात यही है कि जो लोग हमारे त्यौहारो का विरोध किया करते थे... उनकी चाल उलटी पड़ चुकी है... और एक आम इंसान अब अपने धर्म और संस्कृती से कहीं ज्यादा जुड़ रहा है.... जो एक अच्छा trend है.
इस बड़े लेख का सारांश यही है... कि अपने त्यौहारो को पूरे मन से मनाएं.. कोई Guilt ना रखें.... उनके पीछे के Logic और विज्ञान को समझें... और अपने बड़े बूढ़े और बच्चों के साथ मिलकर इन्हे मनाएं.
@Hindu
1.7K viewsAha, 04:54