Get Mystery Box with random crypto!

हिंदी व्याकरण परिचर्चा

टेलीग्राम चैनल का लोगो hindigrammarstudy — हिंदी व्याकरण परिचर्चा
टेलीग्राम चैनल का लोगो hindigrammarstudy — हिंदी व्याकरण परिचर्चा
चैनल का पता: @hindigrammarstudy
श्रेणियाँ: शिक्षा
भाषा: हिंदी
ग्राहकों: 1.08K
चैनल से विवरण

हिंदी व्याकरण से जुड़ी अध्ययन सामग्री / महत्त्वपूर्ण जानकारी और बहुविकल्पी प्रश्नों के लिए।

Ratings & Reviews

1.00

2 reviews

Reviews can be left only by registered users. All reviews are moderated by admins.

5 stars

0

4 stars

0

3 stars

0

2 stars

0

1 stars

2


नवीनतम संदेश 70

2021-07-19 10:23:19 पहले *भटूरे* को फुलाने के लिये उसमें *ENO* डालिये

फिर *भटूरे* से फूले पेट को पिचकाने के लिये *ENO* पीजिये

*जीवन के कुछ गूढ़ रहस्य आप कभी नहीं समझ पायेंगे*

*पांचवीं* तक *स्लेट* की बत्ती को *जीभ* से चाटकर *कैल्शियम* की कमी पूरी करना हमारी स्थाई आदत थी
*लेकिन*
इसमें *पापबोध* भी था कि कहीं *विद्यामाता* नाराज न हो जायें ...!!!

*पढ़ाई* के *तनाव* हमने *पेन्सिल* का पिछला हिस्सा चबाकर मिटाया था ...!!!

*पुस्तक* के बीच *पौधे की पत्ती* और *मोरपंख* रखने से हम *होशियार* हो जाएंगे ... ऐसा हमारा *दृढ विश्वास* था

*कपड़े* के *थैले* में *किताब-कॉपियां* जमाने का *विन्यास* हमारा *रचनात्मक कौशल* था ...!!!

हर साल जब नई *कक्षा* के *बस्ते बंधते* तब *कॉपी किताबों* पर *जिल्द* चढ़ाना हमारे जीवन का *वार्षिक उत्सव* मानते थे ...!!!

*माता - पिता* को हमारी *पढ़ाई* की कोई *फ़िक्र* नहीं थी, न हमारी *पढ़ाई* उनकी *जेब* पर *बोझा* थी ...
*सालों साल* बीत जाते पर *माता - पिता* के *कदम* हमारे *स्कूल* में न पड़ते थे ...!!!

एक *दोस्त* को *साईकिल* के बिच वाले *डंडे* पर और *दूसरे* को *पीछे कैरियर* पर *बिठा* हमने कितने रास्ते *नापें* हैं, यह अब याद नहीं बस कुछ *धुंधली* सी *स्मृतियां* हैं ...!!!

*स्कूल* में *पिटते* हुए और *मुर्गा* बनते हमारा *ईगो* हमें कभी *परेशान* नहीं करता था दरअसल हम जानते ही नही थे कि, *ईगो* होता क्या है

*पिटाई* हमारे *दैनिक जीवन* की *सहज सामान्य प्रक्रिया* थी
*पीटने वाला* और *पिटने वाला* दोनो *खुश* थे,
*पिटने वाला* इसलिए कि हमे *कम पिटे* *पीटने वाला* इसलिए *खुश* होता था कि *हाथ साफ़* हुवा ...!!!

हम अपने *माता - पिता* को कभी नहीं बता पाए कि हम उन्हें कितना *प्यार* करते हैं, क्योंकि हमें *"आई लव यू"* कहना आता ही नहीं था ...!!!

आज हम *गिरते - सम्भलते*, *संघर्ष* करते दुनियां का हिस्सा बन चुके हैं, कुछ *मंजिल* पा गये हैं तो कुछ न जाने *कहां खो* गए हैं ...!!!

हम दुनिया में कहीं भी हों लेकिन यह सच है, हमे *हकीकतों* ने *पाला* है, हम सच की दुनियां में थे ...!!!

*कपड़ों* को *सिलवटों* से बचाए रखना और *रिश्तों* को *औपचारिकता* से बनाए रखना हमें कभी आया ही नहीं ... इस मामले में हम सदा *मूर्ख* ही रहे ...!!!

अपना अपना *प्रारब्ध* झेलते हुए हम आज भी *ख्वाब* बुन रहे हैं, शायद *ख्वाब बुनना* ही हमें *जिन्दा* रखे है वरना जो *जीवन* हम *जीकर* आये हैं उसके सामने यह *वर्तमान* कुछ भी नहीं ...!!!

हम *अच्छे* थे या *बुरे* थे पर हम सब साथ थे *काश* वो समय फिर लौट आए ...!!!

"एक बार फिर अपने *बचपन* के *पन्नो* को पलटिये, सच में फिर से जी उठेंगे”...

और अंत में ...

हमारे *पिताजी* के समय में *दादाजी* गाते थे ...

*मेरा नाम करेगा रोशन जग में मेरा राज दुलारा*

हमारे *ज़माने* में हमने गाया ...

*पापा कहते है बड़ा नाम करेगा*

अब हमारे बच्चे गा रहे हैं …

बापू सेहत के लिए ... तू तो हानिकारक है

सही / वास्तव में हम कहाँ से कहाँ आ गए ...???

एक बार मुड़ कर तो देखिये ...


711 views𝑃𝑎𝑤𝑎𝑛 𝐽𝑦𝑎𝑛𝑖, edited  07:23
ओपन / कमेंट