अकसर पुरुष सोचता है.. स्त्री के तन को जीत लिये तो वो जीत गया,,...
नहीं यह सिर्फ और सिर्फ उसकी भौतिक जीत तक ही सीमित,, जो उसे सिर्फ विजेता होने का भ्रम करवाता है..
बिलकुल अगर सही विजेता बनना तो स्त्री के ह्रदय को जीतिए..
जो एक आध्यात्मिक जीत होगी और यही हकीकत में जीत भी है
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