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हिंदी साहित्य का इतिहास-भक्तिकाल आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने संव | हिंदी व्याकरण साहित्य | Hindi Grammar Sahitya

हिंदी साहित्य का इतिहास-भक्तिकाल
आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने संवत् 1375 वि. से 1700 वि . तक के काल -खण्ड को भक्तिकाल कहा है। भक्ति शब्द का उल्लेख सर्वप्रथम श्वेताश्वतर उपनिषद् में किया गया. ‘भजसेवायाम् ‘ धातु में ‘ क्तिन ‘ प्रत्यय लगने से भक्ति शब्द निर्मित हुआ है , जिसका अर्थ है – सेवा।

अब यह शब्द भगवत प्रेम के अर्थ में रूढ हो गया है।भगवत प्रेम से अर्थ है ईश्वर के प्रति परम अनुराग।

ग्रियर्सन-
इन्होंने भक्तिकाल को ‘ धार्मिक पुनर्जागरण ‘ की संज्ञा दी है।
इन्होंने ही भक्तिकाल को ‘ स्वर्णकाल ‘ की संज्ञा दी है।
उन्होंने भक्तिकाल को ‘ बिजली की कौंध के समान ‘ त्वरित उत्पन्न माना है।
रामविलास शर्मा ने भक्तिकाल को ‘ लोकजागरण ‘ की संज्ञा दी है।

आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने भक्तिकाल को ‘ पूर्व मध्यकाल की संज्ञा ‘ दी है।

मिश्रबंधुओं ने भक्तिकाल को ‘ मध्यम काल ‘ की संज्ञा दी है।

आचार्य रामचंद्र शुक्ल ने “चिंतामणि भाग 1” के निबंध “श्रद्धा और भक्ति” में प्रेम तथा श्रद्धा के योग को *भक्ति कहां है.

प्रस्थानत्रयी में निम्नलिखित रचनाएं आती है–
१ उपनिषद
२ गीता
३ ब्रह्मसूत्र

इन तीनों में भागवत पुराण को जोड़कर प्रस्थान चतुष्टय का निर्माण किया गया

भागवत पुराण में भक्ति के नौ साधनों का उल्लेख है जबकि पति के पांच प्रकार है
१ वात्सल्य
२ सखा भाव
३ दास्य भाव
४ शांत भाव
५ माधुर्य भाव

आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार मुसलमानों के आगमन से भक्ति की शुरुआत हुई. जबकि आचार्य हजारी प्रसाद द्विवेदी के अनुसार यदि इस्लाम भारत में नहीं आया होता तो भी भक्ति का स्वरूप बारह आने ऐसा ही होता जैसा अब है.

जॉर्ज ग्रियर्सन ने भक्ति को इसायत की देन माना है. भक्ति आंदोलन की शुरुआत सातवीं शताब्दी में आलवार संतो ने दक्षिण भारत में की जो कि मद्रास तथा केरल के रहने वाले थे आलवार संतो की संख्या 12 व नयनवार संतों की संख्या 63 थी इनकी भाषा तमिल थी ये वैष्णव थे.
आलवर का शाब्दिक अर्थ है ईश्वरीय ज्ञान के मूलतत्व तक पहुंचा ज्ञानी या संत

इन संतो ने भजनों के माध्यम से भक्ति का प्रचार प्रसार किया इनके भजनों का आधार गीता, वेद, उपनिषद इत्यादि थे. आलवार संतो की संख्या 12 थी जिनमें एक महिला संत अंडाल (गोदा( थी.

इन के 4000 भजनों का संकलन दिव्य प्रबंधम् में नाथ मुनि ने किया था (9 वी शताब्दी में) आलवार संतो तथा नयन वार संतों का उद्देश्य दक्षिण भारत से “जैन धर्म तथा बौद्ध धर्म” का अंत करना था नयनवार शैव थे.

भज् धातु का सर्वप्रथम प्रयोग कर्ता मोवियर विलयम्स है. आण्डाल को दक्षिण की मीरा कहा जाता है
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