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ब्रह्मचर्य

टेलीग्राम चैनल का लोगो brahmacharyalife — ब्रह्मचर्य
टेलीग्राम चैनल का लोगो brahmacharyalife — ब्रह्मचर्य
चैनल का पता: @brahmacharyalife
श्रेणियाँ: गूढ़ विद्या
भाषा: हिंदी
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चैनल से विवरण

ब्रह्मचर्य ही जीवन है 🙏🏻
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@brahmacharya1
🚩🚩🚩🚩🚩🚩
#ब्रह्मचर्य
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#योग
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#धर्म

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नवीनतम संदेश 6

2022-06-17 18:58:39 सदाचार के आदर्श महर्षि दयानंद

एक बार चित्तौड़ में व्याख्यान देने के पश्चात ऋषि कुछ सरदारो व तीन - चार पण्डितो के साथ भ्रमण को निकले। राजस्थान में ग्रामीण लोग वृक्ष तले चबूतरा बांधकर लकड़ी खड़ी कर देते है और उसे देवता की स्थापना कहते है। भ्रमण करते हुए ऋषि ऐसे एक स्थान के समीप से निकले। वहां चार - पाच बच्चे खेल रहे थे। तथा प्रतिमा पूजन का खंडन कर रहे थे। जब वे उस स्थान पर आए तो रुक गए और शीश झुका कर आगे चल पड़े। वह पंडित यह देख कर मुस्करा दिया और बोला, "देखिए महाराज! आप कितनी भी युक्तियां क्यों न दे, देवता ने आपका सर झुका दिया।" स्वामी जी फिर एकदम खड़े हो गए। तथा अत्यंत आवेश से उन बच्चो में खेल रही एक चार वर्षीय बाला की ओर उंगली से संकेत करते हुए बोले, वह नारी जाति जिसने तुम्हे जन्म दिया।

यह सुनते ही उस समूह में सन्नाटा छा गया। डेरे पर पहुंचने तक किसी ने एक शब्द तक न कहा।
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2022-06-17 17:46:32 जी हाँ हम देखेंगे ..., जब आर्यावर्त की भूमि पर वेदों की ऋचाएँ गूँजेंगी #जय_आर्य #जय_आर्यावर्त

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2022-06-17 16:09:25 तूफान का रुख मोड़ दे, ऐसे वीर हैं हम

Nirbhayata
तूफान का रुख मोड़ दे, ऐसे वीर हैं हम


भारत जब अंग्रेजों के अधीन था तो सत्ता के मद में अंग्रेज भारतियों से बड़ा ही घृणित व्यवहार करते थे, भारतवासियों को बहुत ही नीची दृष्टि से देखते थे ।

गुरुकुल कांगडी (हरिद्वार) के कुछ छात्र अपनी गर्मियों की छुट्टियाँ बिताने धर्मशाला (हि.प्र.) नामक नगर में गये हुए थे । वहाँ पर गोरे फौजियों की छावनी थी । एक दिन प्रातः जब छात्र घूमने जा रहे थे तो सामने से कुछ फौजी आते हुए दिखायी दिये । समीप आने पर छात्रों ने सड़क के एक ओर होकर उन्हें रास्ता दे दिया लेकिन एक सिपाही वह रास्ता छोड़कर एक छात्र की ओर मुड़ा और धीरे-धीरे घोड़ा इतने समीप ले आया कि उसका उस छात्र के शरीर से स्पर्श होने लगा ।

गोरे सिपाही ने सोचा था कि यह छात्र या तो झुककर सलाम करेगा या फिर डर के भागेगा पर दोनों ही बातें नहीं हुई। इसके विपरीत छात्र वहीं दृढ़ता से खड़ा रहा ।
तब सिपाही चिढ़कर बोला : ‘‘सलाम कर !”
छात्र (निर्भीकता से) : ‘‘क्यों करें सलाम ?”
सैनिक इस आत्माभिमान भरे उत्तर से उत्तेजित हो उठा और अंग्रेजी में बोला : ‘‘तुम्हें चाहिए कि हर अंग्रेज को सलाम किया करो । “

वह छात्र अपने स्थान पर निर्भीक व अचल खड़ा रहा और उसी स्थिर मुद्रा में उसने फिर कहा : ‘‘ऐसा कोई कानून नहीं है जो हमें जबरदस्ती सलाम करने को बाध्य करे । “
उस बालक की दृढ़ता, निर्भीकता को देखकर गोरे सिपाही के हौसले पस्त हो गये। अब उसके पास दो ही विकल्प थे -या तो वह उस निर्भीक छात्र पर अपना घोड़ा चढ़ा दे या फिर अपनी हार मानकर वापस चला जाए ।

मन-ही-मन वह क्रोध से जला जा रहा था । किंतु छात्र के अदम्य साहस, निर्भीक मुखाकृति तथा दृढ़ संकल्पशक्ति के सामने उसे लौटने का ही निश्चय करना पड़ा और यह कहते हुए कि ‘‘टुम सलाम नहीं करटा ? अच्छा, देखा जायेगा और वह चला गया । वही छात्र आगे चलकर एक बड़ा साहित्यकार तथा ईमानदार सफल पत्रकार आचार्य इन्द्र विद्यावाचस्पति के नाम से प्रसिद्ध हुआ ।

#सीख : जिसके जीवन में अन्याय के खिलाफ आवाज उठाने की बुलंदी है, वह भले प्रारम्भ में कष्ट का सामना करता दिखायी दे, पर अंत में जीत तो उस अदम्य आत्मविश्वास से भरे वीर की ही होती है । न्याय का साथ देनेवाले और अन्याय से मरते दम तक लोहा लेनेवाले ऐसे वीर ही खुद की तथा परिवार, समाज व देश की सच्ची सेवा करने में सफल हो पाते हैं ।
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2022-06-17 15:58:01
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2022-06-17 15:35:10 *धारणा का फल=*मन को एक ही स्थान पर स्थिर करने के अभ्यास से ईश्वर विषयक गुण-कर्म स्वभावो का चिन्तन करने से (ध्यान में )दृढता आती है,अर्थात ईश्वर विषयक ध्यान शीघ्र नही टूटता | यदि टूट भी जाय तो दुबारा सरलतापूर्वक किया जा सकता है |

*७) ध्यान-* धारणा के स्थान पर मन  को लम्बे समय तक रोकना और उस समय ईश्वर के गुण-कर्म-स्वभाव का निरन्तर चिन्तन करना किन्तु बीच में किसी अन्य वस्तु का स्मरण न करना 'ध्यान 'कहलाता है |
*ध्यान का फल=*ध्यान का निरन्तर अभ्यास करते रहने से समाधि की प्राप्ति होती है तथा उपासक व्यवहार सम्बंधी समस्त कार्यो को दृढ़तापूर्वक,सरलता से सम्पन्न कर लेता है ।

*८) समाधि-* अपने स्वरूप का शून्यवत् अनुभव होना और केवल ईश्वर के आन्नद मे निमग्न होने की अवस्था को 'समाधि' कहते है |
*समाधि का फल=*समाधि का फल है,ईश्वर का साक्षात्कार होना | समाधि अवस्था मे साधक समस्त भय,चिन्ता,बन्धन आदि दुखो से छूटकर ईश्वर के आन्नद कि अनुभूति करता है तथा ईश्वर कि समाधि काल मे ज्ञान,बल,उत्साह,निर्भयता स्वतन्त्रा आदि की प्राप्ति करता है | इसी प्रकार बारम्बार समाधि लगाकर अपने मन पर जन्म जन्मान्तर के राग द्वेष आदि अविद्या के संस्कारो को दग्ध बीजभाव अवस्था मे पहुंचाकर (नष्ट करके)मुक्ति पद को प्राप्त कर लेता है |
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मुक्ति का मार्ग-
*मुक्ति का अर्थ है-* सभी प्रकार के दुःखों से छूटना और परम-आनन्द की प्राप्ति| परम आनन्द/मोक्षधाम/समाधि को प्राप्त होने के लिए उपासना के 8 अङ्गों का दृढ़ ईश्वर-निष्ठा पूर्वक, निरंतर, दीर्घकाल तक सेवन करना ही अष्टाङ्गयोग की साधना कहलाती है |
स तु दीर्घकालेन नैरन्तर्य सत्कारा सेवित: दृढभूमि: --योगदर्शन 1.14
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2022-06-17 15:35:10 महर्षि पतंजलि जी द्वारा प्रतिपादित
*॥अष्टांग योग॥*
(आर्य विचार)

१) योग के प्रथम अंग 'यम' के पांच विभाग है- 

(क )अहिंसा    (ख )सत्य
(ग ) अस्तेय    (घ )ब्रह्मचर्य
(ड.)अपरिग्रह
यम के पाँच विभागों की सामान्य परिभाषा:-

*1.अहिंसा*- मन,वाणीऔर शरीर सब समय सभी प्राणियो के साथ वैरभाव त्याग कर प्रेमपूर्वक व्यवहार करना 'अहिंसा'कहलाती है |

*2.सत्य*-जैसा देखा हुआ,सुना हुआ,पढा हुआ,अनुमान किया हुआ ज्ञान मन में है,वैसा ही वाणी से बोलना और शरीर से आचरण करना 'सत्य' कहलाता है |

*3.अस्तेय*-किसी वस्तु के स्वामी की आज्ञा के बिना उस वस्तु को न तो शरीर से लेना,न लेने के लिए किसी को वाणी से कहना और न मन में लेने की इच्छा करना 'अस्तेय'कहलाता है |

*4.ब्रह्मचर्य*-मन तथा इन्द्रियों पर संयम करके  वीर्य की रक्षा करना |

*5.अपरिग्रह*-हानिकारक एवं अनावश्यक वस्तुओ तथा विचारो का संग्रह न करना 'अपरिग्रह कहलाता है |

*२) योग का दूसरा अंग नियम'के भी पांच भाग है:-*

(क)शौच     (ख)संतोष
(ग)तप       (घ)स्वाध्याय
(ड.)ईश्वर प्रणिधान

*1.शौच*-अर्थात स्वच्छता रखना यह दो प्रकार की होती है -
पहली बाहरी स्वच्छता दूसरी आन्तरिक स्वच्छता |
शरीर,वस्त्र,स्थान,खानपान पवित्र रखना बाहरी स्वच्छता है तथा
विद्याभ्यास,सत्य आचरण व सत्संग से अन्त:करण को पवित्र रखना आन्तरिक स्वच्छता है |

*2.संतोष*- पूर्ण परिश्रम करने के पश्चात् जितना भी धन-सम्पत्ति हो,उतने से ही सन्तुष्ट रहना,उससे अधिक की इच्छा न करना 'संतोष' कहलाता है |

*3.तप*- सत्य धर्म कि पालना करते हुए भूख,प्यास,सर्दी,गर्मी,हानि-लाभ,मान-अपमान
आदि द्वन्द्वों का प्रसन्नतापूर्वक सहन करना 'तप' कहलाता है |

*4.स्वाध्याय*-मोक्ष प्राप्ति के साधन वेद उपनिषद,आदि सदग्रन्थो का पढना, 'ओ३म्'
'गायत्री' आदि का जप करना तथा आत्मचिन्तन करना भी 'स्वाध्याय' कहलाता है |

*5.ईश्वर प्रणिधान*-शरीर,बुद्धि,बल विद्या,धनादि समस्त साधनो को ईश्वर प्रदत्त मानकर उनका प्रयोग मन, वाणी तथा शरीर से ईश्वर प्राप्ति के लिए ही करना,सांसारिक चीजें धन,मन यश आदि की प्राप्ति के लिए न करना, ईश्वर प्रणिधान कहलाता है |

(इन यम नियमो को स्मरण करे और इन्हें *जीवन मे अपनाने का ईमानदारी से प्रयास करे।*ईश्वर प्राप्ती के लिए यह अनिवार्य है।इनका बिना आपके सभी धार्मिक कर्म कांड सिर्फ दिखावा रह जाएगे।)

*अब योग के शेष छ:अंगो की परिभाषा बतायी जाती है*
(३)आसन (४)प्राणायाम (५)प्रत्याहार (६)धारणा (७)ध्यान (८)समाधि

*३) आसन-*ईश्वर के ध्यान के जिस स्थिति मे सुखपूर्वक,स्थिर होकर बैठा जाये उस स्थिति का नाम 'आसन' है | जैसे: पद्मासन,सिद्धासन आदि।
*आसन का फल=*आसन का अच्छा अभ्यास हो जाने पर योगाभ्यासी को उपासना काल मे तथा व्यवाहार काल में सर्दी-गर्मी,भूख-प्यास आदि द्वन्द्व कम सताते है,तथा योगाभ्यास की आगे की क्रियाओ को करने मे सरलता होती है |
१ घटिका = 24 मिनट तक निश्चल बैठने का अभ्यास सिद्ध हो जाने पर प्राणायाम का अभ्यास प्रारम्भ करना चाहिये।

*४) प्राणायाम-* किसी आसन पर स्थिरतापूर्वक बैठने के पश्चात मन की चञ्चलता को रोकने के लिए,श्वास-प्रश्वास की गति को रोकने के लिए जो क्रिया की जाती है ,उसे प्राणायाम कहते है | *महर्षि पतञ्जलि के अनुसार, प्राणायाम 4 प्रकार के होते हैं।*
1. वाह्य-वृत्ति-श्वास बहार छोड़कर, घबराहट होने तक रोकना
2. आभ्यान्तर-वृत्ति- श्वास अन्दर भरकर, घबराहट होने तक रोकना
3. स्तम्भ-वृत्ति
4. वाह्य-आभ्यान्तर
(प्रथम दो प्राणायाम का अभ्यास सरल है।शेष दोनों को प्रारंभ मे किसी प्रशिक्षक की निगरानी मे करे।)
*प्राणायाम का फल=*प्राणायाम करने वाले का अज्ञान निरन्तर नष्ट होता जाता है तथा ज्ञान की वृद्धि होती है | स्मरण शक्ति तथा मन एकाग्रता में आश्चर्यजनक वृद्धि होती है | वह रोग-रहित होकर उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त होता है |

*५) प्रत्याहार-* मन के रूक जाने पर नेत्रादि इन्द्रियो का अपने विषयो के साथ सम्बन्ध नही रहता। इंद्रियों को विषयों से हटाने का नाम ही प्रत्याहार है।आहार बाहर से होता है, प्रत्याहार अन्दर से होता है। इंद्रियाँ मनुष्य को बाह्यभिमुख किया करती हैं। प्रत्याहार के इस अभ्यास से साधक योग के लिए परम आवश्यक अन्तर्मुखिता की स्थिति प्राप्त होती है।
*प्रत्याहार का फल=*प्रत्याहार की सिद्धी होने से योगाभ्यासी का इन्द्रियों का अच्छा नियन्त्रण हो जाता है अर्थात वह अपने मन को जहाँ और जिस विषय मे लगाना चाहता है लगा लेता है तथा जिस विषय से मन हटाना चाहता है हटा लेता है।

*६) धारणा-* चित्त को एक स्थान विशेष पर केंद्रित करना ही धारणा है। ईश्वर का ध्यान करने के लिए आँख बन्द करके मन को मस्तक,भ्रूमध्य,नास्तिक,कण्ठ,ह्रदय,नाभि आदि किसी एक स्थान पर स्थिर करने या रोकना होता है |
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2022-06-17 14:38:06
पाश्चात्य दर्शन vs भारतीय दर्शन (ऋषियो द्वारा लिखित) जानिए कैसे संस्कार संचित होते है महत्वपूर्ण जानकारी मिलेगी अवश्य देखे और लोगो को भी शेयर कीजिए
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2022-06-17 13:48:31 35. मांसाहारी - इनके मल-मूत्र में दुर्गन्ध होती है।
शाकाहारी - इनके मल-मूत्र में दुर्गन्ध नहीं होती (मनुष्य यदि शाकाहारी है और उसका पाचन स्वस्थ है, तो मनुष्य के मल-मूत्र में भी बहुत कम दुर्गन्ध होती है।)

36. मांसाहारी - इनके पाचन संस्थान में पाचन के समय ऊर्जा प्राप्त करने के लिये अलग प्रकार के प्रोटीन उपयोग में लाये जाते हैं, जो शाकाहारियों से भिन्न हैं।
शाकाहारी - इनके ऊर्जा प्राप्ति के लिये भिन्न प्रोटीन प्रयोग होते हैं।

37. मांसाहारी - इनके पाचन संस्थान, जो एन्जाइम बनाते हैं, वे मांस का ही पाचन करते हैं।
शाकाहारी - इनके पाचन संस्थान, जो एन्जाइम बनाते हैं, वे केवल वनस्पतिजन्य पदार्थों को ही पचाते हैं।

38. मांसाहारी - इनके शरीर का तापमान कम होता है, क्योंकि मांसाहारियों का BMR (Basic Metabolic Rate) शाकाहारियों से कम होता है।
शाकाहारी - मनुष्य के शरीर का तापमान शाकाहारियों के आस-पास होता है।

39. मांसाहारी - दो बर्तन लें, एक में मांस रख दें और दूसरे में शाकाहार रख दें, तो मांसाहारी जानवर मांस को चुनेगा।
शाकाहारी - मनुष्य का बच्चा शाकाहार को चुनेगा।

उपर्युक्त तथ्यों के अनुसार मनुष्य शरीर की बनावट बिना किसी अपवाद के शत-प्रतिशत शाकाहारी शरीरों की बनावट से मेल खाती है और भोजन को बनावट के अनुसार निश्चित किया जाता है, तो मनुष्य का भोजन शाकाहार है, मांसाहार कतई नहीं। हमें निश्चिन्त होकर शाकाहार करना चाहिये और मांसाहार से होने वाली अनेक प्रकार की हानियों से बचना चाहिये।

शाकाहार में मानव का कल्याण है और मांसाहार विनाशकारी है। प्राकृतिक सिद्धान्त की उपेक्षा करके होने वाले विनाश से बचने का कोई मार्ग नहीं है।

डाॅ. भूपसिंह, रिटायर्ड एसोशिएट प्रोफेसर, भौतिक विज्ञान
भिवानी (हरियाणा)
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2022-06-17 13:48:31 9. मांसाहारी - मुँह की लार अम्लीय होती है। (acidic)
शाकाहारी - मुँह की लार क्षारीय होती है। (alkaline)

10. मांसाहारी - पेट की बनावट एक कक्षीय होती है।
शाकाहारी - पेट की बनावट बहुकक्षीय होती है। मनुष्य का पेट दो कक्षीय होता है।

11. मांसाहारी - पेट के पाचक रस बहुत तेज (सान्द्र) होते हैं। शाकारियों के पाचक रसों से 12-15 गुणा तेज होते हैं।
शाकाहारी - शाकाहारियों के पेट के पाचक रस मांसाहारियों के मुकाबले बहुत कम तेज होते हैं। मनुष्य के पेट के पाचक रसों की सान्द्रता शाकाहारियों वाली होती है।

12. मांसाहारी - पाचन संस्थान (मुँह से गुदा तक) की लम्बाई कम होती है। आमतौर पर शरीर लम्बाई का 2.5 - 3 गुणा होती है।
शाकाहारी - पाचन संस्थान की लम्बाई अधिक होती है। प्रायः शरीर की लम्बाई का 5-6 गुणा होती है।

13. मांसाहारी - छोटी आंत व बड़ी आंत की लम्बाई-चैड़ाई में अधिक अन्तर नहीं होता।
शाकाहारी - छोटी आंत चैड़ाई में काफी कम और लम्बाई में बड़ी आंत से काफी ज्यादा लम्बी होती है।

14. मांसाहारी - इनमें कार्बोहाईड्रेट नहीं होता, इस कारण मांसाहारियों की आंतों में किण्वन बैक्टीरिया (Fermentation bacteria) नहीं होते हैं।
शाकाहारी - इनकी आंतों में किण्वन बैक्टीरिया (Fermentation bacteria) होते हैं, जो कार्बोहाइडेªट के पाचन में सहायक होते हैं।

15. मांसाहारी - आंते पाईपनुमा होती है अर्थात् अन्ददर से सपाट होती हैं।
शाकाहारी - आंतों में उभार व गड्ढे (grooves) अर्थात् अन्दर की बनावट चूड़ीदार होती है।

16. मांसाहारी - इनका लीवर वसा और प्रोटीन को पचाने वाला पाचक रस अधिक छोड़ता है। पित को स्टोर करता है। आकार में बड़ा होता है।
शाकाहारी - इनके लीवर के पाचक रस में वसा को पचाने वाले पाचक रस की न्यूनता होती है। पित को छोड़ता है। तुलनात्मक आधार में छोटा होता है।

17. मांसाहारी - पैंक्रियाज (अग्नाशय) कम मात्रा में एन्जाईम छोड़ता है।
शाकाहारी - मांसाहारियों के मुकाबले अधिक मात्रा में एन्जाईम छोड़ता है।

18. मांसाहारी - खून की प्रकृति अम्लीय (acidic) होती है।
शाकाहारी - खून की प्रकृति क्षारीय (alkaline) होती है।

19. मांसाहारी - खून (blood) के लिपो प्रोटीन एक प्रकार के हैं, जो शाकाहारियों से भिन्न होते हैं।
शाकाहारी - मनुष्य के खून के लिपो प्रोटीन (Lipo - Protein) शाकाहारियों से मेल खाते हैं।

20. मांसाहारी - प्रोटीन के पाचन से काफी मात्रा में यूरिया व यूरिक अम्ल बनता है, तो खून से काफी मात्रा में यूरिया आदि को हटाने के लिये बड़े आकार के गुर्दे (Kidney) होते हैं।
शाकाहारी - इनके गुर्दें मांसाहारियों की तुलना में छोटे होते हैं।

21. मांसाहारी - इनमें (रेक्टम) गुदा के ऊपर का भाग नहीं होता है।
शाकाहारी - इनमें रेक्टम होता है।

22. मांसाहारी - इनकी रीढ़ की बनावट ऐसी होती है कि पीठ पर भार नहीं ढो सकते।
शाकाहारी - इनकी पीठ पर भार ढो सकते हैं।

23. मांसाहारी - इनके नाखून आगे से नुकीले, गोल और लम्बे होते हैं।
शाकाहारी - इनके नाखून चपटे और छोटे होते हैं।

24. मांसाहारी - ये तरल पदार्थ को चाट कर पीते हैं।
शाकाहारी - ये तरल पदार्थ को घूंट भर कर पीते हैं।

25. मांसाहारी - इनको पसीना नहीं आता है।
शाकाहारी - इनको पसीना आता है।

26. मांसाहारी - इनके प्रसव के समय (बच्चे पैदा करने में लगा समय) कम होता है। प्रायः 3-6 महिने।
शाकाहारी - इनके प्रसव का समय मांसाहारियों से अधिक होता है। प्रायः 6 महिने से 18 महिने।

27. मांसाहारी - ये पानी कम पीते हैं।
शाकाहारी - ये पानी अपेक्षाकृत ज्यादा पीते हैं।

28. मांसाहारी - इनके श्वांस की रफ्तार तेज होती है।
शाकाहारी - इनके श्वांस की रफ्तार कम होती है, आयु अधिक होती है।

29. मांसाहारी - थकने पर व गर्मी में मुँह खोल कर जीभ निकाल कर हाँफते हैं।
शाकाहारी - मुँह खोलकर नहीं हाँफते और गर्मी में जीभ बाहर नहीं निकालते।

30. मांसाहारी - प्रायः दिन में सोते हैं, रात को जागते व घूमते-फिरते हैं।
शाकाहारी - रात को सोते हैं, दिन में सक्रिय होते हैं।

31. मांसाहारी - क्रूर होते हैं, आवश्यकता पड़ने पर अपने बच्चे को भी मार कर खा सकते हैं।
शाकाहारी - अपने बच्चे को नहीं मारते और बच्चे के प्रति हिंसक नहीं होते।

32. मांसाहारी - दूसरे जानवर को डराने के लिए गुर्राते हैं।
शाकाहारी - दूसरे पशु को डराने के लिए गुर्राते नहीं।

33. मांसाहारी - इनके ब्लड में रिस्पटरों की संख्या अधिक होती है, जो ब्लड में कोलेस्ट्राॅल को नियन्त्रित करते हैं।
शाकाहारी - इनके ब्लड में रिस्पटरों की संख्या कम होती है। मनुष्य के ब्लड में भी संख्या कम होती है।

34. मांसाहारी - ये किसी पशु को मारकर उसका मांस कच्चा ही खा जाते हैं।
शाकाहारी - मनुष्य जानवर को मारकर उसका कच्चा मांस नहीं खाता।
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2022-06-17 13:48:31 मनुष्य मांसाहारी या शाकाहारी?

हवा-पानी-भोजन सभी जीवधारियों के जीवन आधार हैं। हवा-पानी साफ हों प्रदूषित न हों, यह भी सर्वमान्य है। मनुष्य को छोड़ कर शेष सभी शरीरधारी अपने भोजन के बारे में भी स्पष्ट हैं उनका भोजन क्या है? यह कितनी बड़ी विड़म्बना है कि सबसे बुद्धिमान् शरीरधारी मनुष्य अपने भोजन के बारे में स्पष्ट नहीं है। मैं अपने मनुष्य बन्धुओं से यह बात कहते हुए क्षमा चाहूँगा कि भोजन के निर्णय में मनुष्य की स्थिति एक गधे से भी नीचे है। मनुष्य को भोजन के बारे में बताने वाले डाॅक्टर, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री, धर्मगुरु दोगली बातें करते हैं। स्पष्ट निर्णय किससे लें? भोजन के बारे में स्पष्ट निर्णय हमें सिद्धान्त से ही मिल सकता है, क्योंकि सिद्धान्त सर्वोपरी होता है। हम यह निर्णय करें कि मनुष्य का भोजन क्या है?, कुछ आधारभूत बातों के आधार पर करेंगे। ये आधारभूत बातें इस प्रकार हैं -

1. किसी मशीन के बारे में जानकारी, प्रयोग करने वाले से बनाने वाले को अधिक होती है।
2. मशीन का ईंधन और शरीर का भोजन उसकी बनावट के अनुसार निश्चित होता है।
3. उपयुक्त (बनावट के अनुसार) ईंधन वा भोजन से मशीन वा शरीर अच्छा काम करेंगे व देर तक कार्य करेंगे अन्यथा ईंधन या भोजन से कम काम करेंगे और शीघ्र खराब हो जायेंगे।
4. ईंधन या भोजन वह पदार्थ है, जिससे मशीन कार्य करे और शरीर जीवित रहे। जिस पदार्थ को शरीर में भोजन रूप में डाला जाये और शरीर जीवित न रहे, वह भोजन नहीं हो सकता।
5. सभी शरीर (आस्तिकों के लिए) ईश्वर ने बनाए या (नास्तिकों के लिए) प्रकृति ने बनाये। एक भी शरीर किसी डाॅक्टर, वैज्ञानिक, अर्थशास्त्री या धर्मगुरु ने नहीं बनाया।
6. हम सृष्टि में अपने चारों ओर दो प्रकार के शरीर देख रहे हैं - मांसाहारी और शाकाहारी।

यहाँ हम 1, 2, 5 और 6 के आधार पर निर्णय करेंगे कि मनुष्य का भोजन मांसाहार है या शाकाहार है?

सभी शरीर ईश्वर या प्रकृति ने बनाये, ईश्वर या प्रकृति की जानकारी मनुष्य से अधिक है और भोजन बनावट के हिसाब से होता है। हमारे सामने दो प्रकार के शरीर मांसाहारी (शेर, चीता, तेंदूआ, भेड़िया आदि) और शाकाहारी (गाय, बकरी, घोड़ा, हाथी, ऊँट आदि) उपस्थित हैं, तो सबसे आधारभूत बात है कि भोजन शरीर की बनावट के हिसाब से शरीर बनाने वाले ईश्वर या प्रकृति ने निश्चित किया है और ईश्वर या प्रकृति की बात मनुष्य के मुकाबले ज्यादा ठीक होगी, इस आधार का प्रयोग करके हम मनुष्य का भोजन निश्चित करेंगे। उस निर्णय के लिये हम शाकाहारी और मांसाहारी के शरीरों की बनावट की तुलना करते हैं और देखते हैं कि मनुष्य शरीर की बनावट किससे मेल खाती है? मनुष्य शरीर की रचना शाकाहारी शरीरों जैसी है, तो मनुष्य का भोजन शाकाहार और यदि रचना मांसाहारी शरीरों से मेल खाती है, तो मनुष्य का भेाजन मांसाहार होगा। यह अन्तिम निर्णय होगा और हमें किसी धर्मगुरु, वैज्ञानिक या डाॅक्टर से पूछने की आवश्यकता नहीं हैं, क्योंकि ईश्वर या प्रकृति के मुकाबले इनकी कोई औकात नहीं होती और वैसे भी मनुष्य का निष्पक्ष होना बड़ा मुश्किल होता है। निम्न. तालिका में मांसाहारी-शाकाहारी शरीरों की रचना की तुलनात्मक जानकारी दी जा रही है -

1. मांसाहारी - आँखें गोल होती हैं, अंधेरे में देख सकती हैं, अंधेरे में चमकती हैं और जन्म के 5-6 दिन बाद खुलती हैं।
शाकाहारी - आँखे लम्बी होती हैं, अंधेरे में चमकती नहीं और अंधेरे में देख नहीं सकती और जन्म के साथ ही खुलती हैं।

2. मांसाहारी - घ्राण शक्ति (सूंघने की शक्ति) बहुत अधिक होती है।
शाकाहारी - घ्राण शक्ति मांसाहारियों से बहुत कम होती है।

3. मांसाहारी - बहुत अधिक आवृत्ति वाली आवाज को सुन लेते हैं।
शाकाहारी - बहुत अधिक आवृत्ति वाली आवाज को नहीं सुन पाते हैं।

4. मांसाहारी - दांत नुकीले होते हैं। सारे मुँह में दांत ही होते हैं, दाढ़ नहीं होती हैं और दांत एक बार ही आते हैं।
शाकाहारी - दांत और दाढ़ दोनों होते हैं, चपटे होते हैं और एक बार गिर कर दोबारा आते हैं।

5. मांसाहारी - ये मांस को फाड़ कर निगलते हैं, तो इनका जबड़ा केवल ऊपर-नीचे चलता है।
शाकाहारी - ये भोजन को पीसते हैं, तो इनका जबड़ा ऊपर-नीचे और बायें-दायें चलता है।

6. मांसाहारी - मांस खाते समय बार-बार मुँह को खोलते व बन्द करते हैं।
शाकाहारी - भोजन करते समय एक बार भोजन मुँह में लेने के बाद निगलने तक मुँह बन्द रखते हैं।

7. मांसाहारी - जीभ आगे से चपटी, व पतली होती है और आगे से चैड़ी होती है।
शाकाहारी - जीभ आगे से चैड़ाई में कम व गोलाईदार होती है।

8. मांसाहारी - जीभ पर टैस्ट बड्ज (Teste Buids), जिनकी सहायता से स्वाद की पहचान की जाती है, संख्या में काफी कम होते हैं (500 - 2000)
शाकाहारी - जीभ पर टैस्ट बड्ज की संख्या बहुत अधिक होती है (20,000 - 30,000) मनुष्य की जीभ पर यह संख्या (24,000 - 25,000) तक होती है।
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