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The Poem:- जल रहा हूँ मैं... करके गलतियां हज़ार, एक ही अग् | Brahmacharya™ (ब्रह्मचर्य) Celibacy

The Poem:-
जल रहा हूँ मैं...


करके गलतियां हज़ार, एक ही
अग्नि में पश्चाताप की
जल रहा हूँ मैं
अस्त हुआ हूँ कई बार तब भी
सूरज सा फिर निकल रहा हूँ मैं
...


शांत हूँ ,मौन हूँ तब भी
मन मे पल पल बोल रहा हूं मैं
छिन्न भिन्न होकर भी प्यारे
अभिन्न डोल रहा हूँ मैं...


नाकामिया क्यों मिली इतनी
बीती कड़ियों को खोल रहा हूँ मैं
क्या कहूँ अब
सफलता और असफलता के तराजू में
खुद को ही आज तौल रहा हूँ मैं
...


कितनी बार जाने
खुशियो का उपवन उजाड़ा
कली एक नई बनकर
फिर खिल रहा हूँ मैं
...
आंसुओ की धार से मन के ज़ख्मो पर
मरहम मल रहा हूँ मैं



टूटकर बुरी तरह से
क्षण क्षण बिखर रहा हूँ मैं
छोड़ी न आस  प्रार्थना
और संकल्पों पर अपने
इसी विश्वास से अब निखर रहा हूँ मैं
...


क्रुद्ध हूँ खुद के कारनामो से,
पर फिर खुद को आज
सहन करने को अड़ रहा हूँ मैं
मन ही मन इस मन के महाभारत में
पल पल धर्मयुद्ध लड़ रहा हूँ मैं
...


निराशा में चूर हूँ, न कोई रखता गुरुर हूँ
गुनाह करके भी सचमें   बेकसूर हूँ
अपने इस न्याय की खातिर
खुद से झगड़ रहा हूँ मैं
...
कांटो के इस लहुलुहान पथ पर भी
पुष्पों की तलाश में
धीमे ही सही पर
थोड़ा थोड़ा चल रहा हूँ मैं
...


चाहा जो कभी वो पाया नही,
और जो पाया वो कभी चाहा  नही
ऐसा क्यों?
इस प्रश्न का खोज हल रहा हूँ मै...
होता जो भी है, अच्छे के लिए होता है
क्यों मेरे प्यारे मन तू तब भी रोता है
बस
इस विश्वास पर रोज चल रहा हूं मैं
...


खण्ड खण्ड होकर भी अखंड हूँ,
हार कर भी गाता विजय का गीत हूँ
इस रवैये से खुद को
नितदिन बदल रहा हूँ मैं
...
हाँ ज्योति से ज्वाला बनने की आस में
पुंज से प्रकाश का महापुंज बनने के विश्वास में
दर्द की इस  भट्टी में जल रहा हूँ मैं

सँघर्ष इतना आसान है नही फिर भी
बस चल रहा हूँ मैं
कोयले से हीरा बनने की चाह में
बुरी तरह जल रहा हूँ मैं...

पर तब भी बस चल रहा हूँ मैं
हाँ जल रहा हूँ मैं
एक दहन हुआ रावण का
और एक यहाँ कर रहा हूँ मैं
लगाकर आग हर विकार में खुदके
उसकी तपिश में तप रहा हूँ मैं


हाँ जल रहा हूँ मैं,,,
खुद को ही अब बदल रहा हूँ मैं...


             धन्यवाद



शिक्षा:-
विजया दशमी का पर्व प्रत्येक उस व्यक्ति के लिये प्रेरणा है। जिसका विश्वास उच्च आदर्शों और मानवीय मूल्यों पर है। यह त्योंहार अन्याय पर न्याय की, असत्य पर सत्य की , अधर्म पर धर्म की ,  और निराशा पर आशा की विजय का प्रतीक है...

So Today's टास्क is:-


विजयादशमी के इस पावन अवसर पर मन मे छिपी हर बुराई का दहन करने का संकल्प करते है। तथा काम, क्रोध, ईर्ष्या, मद, मोह, व लोभ रूपी बुराई का त्याग करते है। आइए साथ मे मिलकर जीवन मे हम प्रेम और
खुशियो के रंग भरते है...

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