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The Poem: हमारी 'माँ' प्रकृति प्रतिक् | Brahmacharya™ (ब्रह्मचर्य) Celibacy

The Poem: हमारी "माँ" प्रकृति





प्रतिक्षण सूरज तो जल कर भी
भर भर देता हमे उजाला है
ठंड में जब कुड़ कुड़ हांड कंपे
तब मिहिर ताप ने संभाला है...

चांद भी कुछ कम तो नही है
उसकी शीतलता हमें सुहाती है
करवा चौथ जब आता है तो
सुहागनें  दर्शन उसके चाहती है...

सागर भी तो नदियो को विविध
गहरे अंतर मे ही अपने समाता है
मिलजुलकर रहना सीखो
सहिष्णुता का वो राज़  बताता  है...

पर्वत भी अविचल से स्थित होकर
हमे रहना अटल सीखाते है
जो होते है शांत और गम्भीर
जगत में वही उत्तम फल पाते है


सरिताएं भी बहुत बड़ी दानी है
मीठा पानी सबको करती वितरण
और मार्ग बनालेती  खुदका
ऐसी बड़ी स्वाभिमानी है

दरिया भी खुद्दार बड़े है
मार्ग स्वयं का खुद बनाते है
सतत रूप से बस बढ़ना है आगे
आत्मनिर्भरता का ही गीत सुनाते है

कुसुम जैसे तुम खिलना  सीखो
और गुंजन भँवरो का तुम्हें चुराना है
वर्तमान को जी भर के जी लो
भुलादो वो किस्सा,
जो हो चुका पुराना है


भूमि में अन्न का उत्पादन होता
अनाज से सबका
उदर यह भरती है
रासायनिक कीटनाशक अच्छे नही है
इनसे संकट में हमारी  धरती है...

जीव जन्तु भी शोभा है इसकीं
रक्षण करके उनका
हमे अपना दायित्व निभाना है
पृकृती का ध्यान रखकर ही
जैव विविधता को बचाना है...

हरियाली है फसलों से यहाँ और
मीठे जल की नदियां
कल कल कर है बहती
रखना होगा ध्यान हमें
सम्भल पाएगी तभी पृकृती

शीतल जल से लेकर प्राणवायु तक
माँ पृकृति  हमे उपलब्ध कराती है
संसाधनों से भरकर झोली हमारी
अपनी ममता हम पर लुटाती है

अंधाधुंध  प्रगति पथ की आड़ में
पृकृती को नज़रंदाज़ नही करना है
सम्विधान के कर्तव्य से अधिकार तक
पर्यावरण का आदर हमको करना है..


धारणीय विकास की ज्योत जलाकर
भोगवादी संस्कृति को आग लगाकर
वृक्ष एक एक हमे बचाना है
स्वच्छ पर्यावरण सिर्फ खुद को नही
बल्कि भावी पीढ़ी को दिलाना है...

चाह रखते तो है, सभी भानु सा चमकने की पर कौन उसकी तरह जलना चाहता है
बाधा रूपी बादल तो आएंगे ही
पर कौन धीरज धर चलना चाहता है


भास्कर का यह नियम जो अपनाएगा
वही एक दिन ऑस्कर से भी आगे जाएगा
अतः
चलते रहिये नदी की तरह
और जलते रहिये सूरज की तरह


फितरत जो हमारी ऐसे बदलेगी
और आदतें जब सुधर जाएंगी
तब आएगा मनोवृति में परिवर्तन
और 
यह पृकृती भी निखर जाएगी

यह पृकृती भी निखर जाएगी




                धन्यवाद


शिक्षा:-
प्यारे युवा साथियों पृकृती हमारी माता की तरह हमारा लालन पालन करती है। हमें स्वच्छ हवा और निर्मल जल देती है। किंतु उसके संरक्षण और सतत विकास के अभाव में आज विश्व पर जीवन का संकट मंडराने लगा है।

ऐसे मैं हम सभी जितना अधिक हो सके पर्यावरण के प्रति सजग रहेंगे। और यह पृकृती रक्षा का गुण ख़ुद में धारण करते हुए, एक व्यक्ति को जागरूक अवश्य करेंगे...

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