*वैराग्य का सुगम पथ* कैसे हो वैराग्य उदय, समझ ये कैसे आएगा बड़ | Brahmacharya™ (ब्रह्मचर्य) Celibacy
*वैराग्य का सुगम पथ*
कैसे हो वैराग्य उदय, समझ ये कैसे आएगा
बड़ी विकट पहेली है, कहो कौन सुलझाएगा
दुर्लभ हुआ मेरे लिए, मार्ग मुक्ति का ये पाना
दुख से छुड़ाने वाला, समय ना देखा सुहाना
हर जन्म मन की पीड़ा, मुझको बहुत सताती
इससे छुटकारा पाने की, राह नजर ना आती
समझाया ईश्वर ने हमें, ये कार्य बड़ा आसान
पांच विकारों को देखो, विषधारी सर्प समान
जीवन पथ में जब कोई, ये विकार अपनाता
जन्म जन्म वो केवल, दुख पीड़ाएं ही पाता
मन के कुतर्क विचार ही, भवसागर कहलाते
इनमें डूबने वाले कभी, सुख शान्ति ना पाते
विकारों में पड़कर हमने, मनोरोग ही बटोरा
भिक्षुक होकर भटक रहे, लेकर हाथ कटोरा
इन्द्रियों के सहारे हमने, देखा ये सारा संसार
सबकुछ यहां विनाशी, समझ ना आया सार
जड़ वस्तुओं के पीछे, हमने मन को लगाया
लोभ के वश होकर, खुद को बहुत जलाया
विकारों का विष पीकर, आत्मभान खोया
जकड़ा जब कष्टों ने, तब फूट फूटकर रोया
तन के मोह में फंसकर, बन गए कितने दीन
ध्यान हटाकर इनसे, हो जाओ स्वयं में लीन
मन को उत्तेजित करे, वे विकार अब त्यागो
छोड़ो अज्ञान निंद्रा और, स्वचेतना से जागो
क्षमा, दया और सत्य का, रोज करो रसपान
संतोष सरलता का, सेवन करो अमृत समान
बनो सच्चे साधक, सात्विकता को अपनाओ
धारो श्रेष्ठ आचरण को, मन पर विजय पाओ
सत्यभाव श्रेष्ठकर्म को, बनाना सच्ची साधना
आत्मरूप की स्मृति ही, हो सच्ची आराधना
पंच तत्वों के मोह से, स्वयं को पूरा छुड़ाओ
वैराग्य के सुगम पथ पर, रोज चलते जाओ
देह का भान छोड़कर, आत्म चेतना जगाओ
सच्ची शान्ति देने वाला, गहन विश्राम पाओ
मुकेश कुमार मोदी , बीकानेर
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