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'काम विकार (वासना) का जन्म ही मत होने दो' एक मनुष्य ने शेर का | Brahmacharya™ (ब्रह्मचर्य) Celibacy



"काम विकार (वासना) का जन्म ही मत होने दो"

एक मनुष्य ने शेर का बच्चा पाला था। बच्चा बहुत गरीब था । एक दिन नींद में वह बच्चा मालिक का बाँया हाथ चाटने लगा। चाटते- चाटते दाँत लग जाने से हाथ का थोड़ा-सा खून निकला। अब बच्चा कान टेढ़ा किये खून चाटने लगा। तकलीफ के मारे मालिक जग पड़ा और अपना हाथ हटाना चाहा। किंचित हाथ हटाते ही शेर एकदम खड़ा हो गया और जाति स्वभावानुसार "गुर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्रर्र गर्जन कर उसने हाथ को पंजे के नीचे मजबूती से दबा लिया और फिर रक्त चाटने लगा। मालिक ने सोचा 'अरे बाप रे! अब तो मामला बड़ा बेढब है। यदि मैं इसको और प्यार करूँ तो यह मुझे फाड़ खाये बिना नहीं रहेगा।' उसने निश्चय किया और तुरन्त सन्दूक में से पिस्तौल मँगवाई। पिस्तौल मिलते ही 'रे नमकहराम' ऐसा कहकर तत्काल धड़ाके से गोली छोड़कर उसे मार डाला।

ओ मेरे प्यारे भाईयो और बहनों ! यदि कामरूपी शेर तुम्हारा शोषण करना चाहता हो तो तुम भी उसे फौरन मार डालो। कम से कम 30 वर्ष तक विषय से बिलकुल दूर रहो । उसका स्मरण तक मत करो। क्योंकि पूर्वोक्त नव मैथुनों में से प्रत्येक मैथुन ब्रह्मचर्य का नाशक है।

अन्धे को जैसे शीशा दिखलाना व्यर्थ है, वैसे ही कामान्ध पुरुष को भी उपदेश करना व्यर्थ है। उल्लू तो दिन ही में नहीं देख सकता किन्तु कामान्ध पुरुष डबल उल्लू होता है।

जो विषय अत्यन्त प्रिय व मधुर मालूम होता है और जो परमार्थ मनुष्य का इसी जीवन में अमृत तुल्य फल शान्ति देने वाला और अन्त में मुक्तिप्रद है तथा जिसका आधार ब्रह्मचर्य के ऊपर ही मुख्यतः निर्भर करता है: वह परमार्थ उन्हें विष के समान कडुआ मालूम होता है। जो वास्तव में विष है, उसे अमृत समझना और जो प्रत्यक्ष अमृत है उसे विष समझना, ये घोर पाप के लक्षण है!

यह बात निःसन्देह सत्य है कि जिसे साँप काटता है, उसको मिर्च भी तीती नहीं लगती है और न नीम कड़वी लगती है। परन्तु चीनी उसे बहुत कड़वी लगती है। ठीक यही हालत विषय रूपी सर्प से दंशित पुरुषों की भी समझिये। उन्हें सब उलटी ही बातें सूझती हैं और उनकी दृष्टि में पाप ही पाप भरा रहता है। सभी स्त्रियों की ओर पाप दृष्टि से देखते और इस प्रकार व्यर्थ पाप के भागी बन अन्त में नरक को जाते हैं।

आज, बड़े-बड़े देवस्थानों में भी नाच रङ्ग व व्यभिचार घुस गया है। कई मन्दिरों पर तो भद्दे चित्र भी खुदे हुए हैं। हा! पापी पुरुष क्या नहीं करेंगे। गंगा जी में गर्दन तक डूबे रहने पर भी उनकी पाप-दृष्टि नहीं जाती। देव-दर्शन के बहाने मन्दिरों में और वायु-सेवन के मिस से घाट पर तथा जगह-जगह कई गीध बैठे हुए नित्य दिखाई देते हैं। - धिक्कार है ऐसे नारकी जीवों को!

आभार : ये लेख स्वामी शिवानंद जी द्वारा लिखी गई बुक "ब्रह्मचर्य ही जीवन है !"से लिया गया है ।

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