बसंत पंचमी पर कविता धरा पे छाई है हरियाली खिल गई हर इक डाली | Ayurveda Yoga Meditation आयुर्वेद
बसंत पंचमी पर कविता
धरा पे छाई है हरियाली खिल गई हर इक डाली डाली नव पल्लव नव कोपल फुटती मानो कुदरत भी है हँस दी छाई हरियाली उपवन मे और छाई मस्ती भी पवन मे उडते पक्षी नीलगगन मे नई उमन्ग छाई हर मन मे लाल गुलाबी पीले फूल खिले शीतल नदिया के कूल हँस दी है नन्ही सी कलियाँ भर गई है बच्चो से गलियाँ देखो नभ मे उडते पतन्ग भरते नीलगगन मे रंग देखो यह बसन्त मसतानी आ गई है ऋतुओ की रानी।