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* सूर्य चिकित्सा * *सृष्टि का सारा कार्य-व्यापार जगत को आलोकि | 🌹आश्रम स्वास्थ्य सेवा 🌹

* सूर्य चिकित्सा *

*सृष्टि का सारा कार्य-व्यापार जगत को आलोकित करने वाले भगवान सूर्यनारायण की कृपा से ही चलता है। सूर्य की किरणें मनुष्य को स्वस्थ एवं नीरोगी रखने में अपनी अहं भूमिका अदा करती हैं। यदि कुछ समय तक मनुष्य सूर्यस्नान करे तो अनेक रोगों से उसकी रक्षा होती है और यदि रोगी हो तो उसे नीरोगी होने में मदद मिलती है।*

* सूर्यनारायण की विधि *

*सूर्यस्नान के समय शरीर पर कम से कम वस्त्र होने चाहिए। शुरुआत में सूर्यस्नान पाँच से दस मिनट ही करना चाहिए। उसमें भी आधे-आधे समय आगे एवं पीछे के भाग पर धूप का सेवन करें। धीरे-धीरे शरीर के दोनों भागों पर एक-एक मिनट का समय बढ़ाकर आधे से एक घण्टे तक सूर्यस्नान करना उचित है। 3 से 4 घण्टे तक का समय बढ़ाया जा सकता है।*

*सूर्यस्नान के लिए उत्तम समय प्रातःकाल है। ग्रीष्म ऋतु में सुबह आठ बजे तक एवं शीत ऋतु में सुबह नौ बजे तक सूर्यस्नान करना लाभदायक है।*

*ऐसा कहा जाता है कि सूर्यस्नान करते समय आँखें एवं सिर ढँका हुआ होना चाहिए किन्तु ऐसा करने से तो नुकसान होता है। सूर्यप्रकाश तो बालों एवं नेत्रों के लिए लाभदायी है।*

*सूर्यस्नान करते समय हम शरीर को हिलाते-डुलाते रहें अथवा घूमते रहें तो बहुत अच्छा होगा। उस समय हम खायें तो भी कोई हानि नहीं है। सूर्यस्नान सुखकर होना चाहिए। यदि दुःखद लगता है तो समझना चाहिए कि सूर्यस्नान सीमा को पार कर गया है। अतः सूर्यस्नान का अतिरेक नहीं होना चाहिए।*

*सूर्यस्नान के बाद सिर दुःखे, थकान या पेट में गड़बड़ लगे तो समझ लें कि सूर्यस्नान में अतिरेक हुआ है। अतिरेक के परिणामस्वरूप त्वचा लाल हो जाती है अथवा जलन होती है। सूर्यस्नान से शरीर जले नहीं यह ध्यान रखना चाहिए। दुर्बल एवं संवेदनशील व्यक्तियों को सूर्यस्नान के अतिरेक के कारण थकान लगती है एवं नींद नहीं आती।*




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