* उचित और अनुचित * *'अंतरात्मा' में बैठा हुआ 'ईश्वर' हमें 'उच | अध्यात्म(ब्रह्मज्ञान)
* उचित और अनुचित *
*"अंतरात्मा" में बैठा हुआ "ईश्वर" हमें "उचित" और "अनुचित" की "निरन्तर" प्रेरणा देता रहता है। जो उसे "सुनेगा" और "समझेगा", उसे सीधे रास्ते पर चलने में कभी कोई "कठिनाई" नहीं होगी*
*हमारी "खुशी" हमारी "सोच" पर "निर्भर"करती है ,*
*हम "शिकायत" कर सकते हैं कि "गुलाब" की "झाड़ियों" में "कांटें" हैं या "खुश" हो सकते हैं कि "काँटों" की "झाड़ियों" में "गुलाब" हैं*
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