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हम अशुद्ध चेतना हैं हम अशुद्ध भी हैं और चेतना भी हैं। तुम ग़ | अध्यात्म(ब्रह्मज्ञान)

हम अशुद्ध चेतना हैं
हम अशुद्ध भी हैं और चेतना भी हैं।

तुम ग़लतियाँ करोगे, कई बार करोगे।
जितनी बार ग़लतियाँ करो
उतनी बार सुधार कर लेना।

*जितनी बार गिरो*
*उतनी बार उठ बैठना*
*गिरने पर लाज मत मानना।*