हम अशुद्ध चेतना हैं हम अशुद्ध भी हैं और चेतना भी हैं। तुम ग़लतियाँ करोगे, कई बार करोगे। जितनी बार ग़लतियाँ करो उतनी बार सुधार कर लेना। *जितनी बार गिरो* *उतनी बार उठ बैठना* *गिरने पर लाज मत मानना।* 170 views12:07