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प्रारब्ध (पिछले कर्म) और पुरुषार्थ दो भेड़ों की तरह आपस में लड़त | अध्यात्म(ब्रह्मज्ञान)

प्रारब्ध (पिछले कर्म) और पुरुषार्थ दो भेड़ों की तरह आपस में लड़ते हैं। उनमें से जो शक्तिशाली होगा वही जीतेगा।

जैसे युवक द्वारा बालक जीत लिया जाता है, उसी प्रकार वर्तमान के सद्प्रयास पिछले कर्मों को जीत जाते हैं। जैसे किसानों द्वारा सालभर कमाई गई खेती को बदल एक दिन में समाप्त कर डालता है, यह बादलों का पौरुष है, उसी प्रकार अधिक प्रयत्न करने वाला ही जीतता है।

संतों की संगति का फल है उनके जैसे स्वभाव की प्राप्ति, और शास्त्रों के अभ्यास का फल है उनके अर्थ का ज्ञान, बुद्धि से शास्त्र-अभ्यास के सही गुण प्राप्त होते हैं तथा शास्त्र-अभ्यास से बुद्धि भी कुशाग्र होती है।


जिसके लिए मनुष्य सर्वाधिक प्रयास करता है, उसी में वह विजयी होता है। अतः व्यक्ति को पुरुषार्थ का आश्रय लेकर शास्त्रों के अभ्यास एवं सही संगति से बुद्धि को पावन बनाकर जगतरुपी समुद्र से अपना उद्धार करना चाहिए।

जिन कर्मों से आनंद की प्राप्ति और दुःख का निवारण होता है, उन कार्यों में यत्नपूर्वक सदा लगे रहने को विद्वान 'परम पुरुषार्थ' कहते हैं।