मेरी भावना अहंकार का भाव न रखूं, नहीं किसी पर क्रोध करूं, देख | अध्यात्म(ब्रह्मज्ञान)
मेरी भावना
अहंकार का भाव न रखूं, नहीं किसी पर क्रोध करूं, देख दूसरों की बढ़ती को कभी न ईर्ष्या-भाव धरूं, रहे भावना ऐसी मेरी, सरल-सत्य-व्यवहार करूं बने जहां तक इस जीवन में औरों का उपकार करूं।
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