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स्पीकर पद की अहमियत/ महता:- सदन में बहुमत साबित करने या दलबद | RAMANSHU G.S. CLASSES OFFICIAL

स्पीकर पद की अहमियत/ महता:-

सदन में बहुमत साबित करने या दलबदल विरोधी क़ानून लागू होने की स्थिति में स्पीकर की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण होती है।
सदन में विवाद होने पर अध्यक्ष का फ़ैसला अंतिम होता है।

लोकसभा के प्रमुख के रूप में, स्पीकर सदन का प्रमुख और मुख्य प्रवक्ता होता है।

स्पीकर को सदन में व्यवस्था और मर्यादा बनाए रखना होता है और वह सदन की कार्यवाही स्थगित या निलंबित कर सकता है।

स्पीकर को भारत के संविधान के संसद से जुड़े प्रावधानों, लोकसभा की प्रक्रिया और संचालन करने के नियमों की अंतिम व्याख्या करने वाला माना जाता है, यानी सदन के संदर्भ में उसकी जो भी व्याख्या होगी वही मान्य होगी।

स्पीकर किसी सदस्य की अयोग्यता, संविधान के दसवीं अनुसूची के प्रावधानों के तहत दलबदल के आधार किसी सांसद की सदस्यता ख़त्म करने की शक्ति अध्यक्ष के पास होती है, हालाँकि, 1992 में सुप्रीम कोर्ट ने फ़ैसला सुनाया था कि स्पीकर का फ़ैसला न्यायिक समीक्षा के अधीन होता है।

स्पीकर के लिए चुनौती:-

18वीं लोकसभा की शुरुआत देखकर ये तो लग रहा है कि इस सत्र में बहस और ज़्यादा दिखेगी, असहमतियां दिखेंगी और सभी पार्टियों को एक आम सहमति पर लाने की कोशिशें भी दिखेंगी, यानी वो होता दिखेगा जो बीते दो लोकसभा में नहीं दिखा या बहुत कम दिखा, ऐसा इसलिए है कि बीजेपी अपने दम पर सरकार नहीं बना पाई है।